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“विकास के नाम पर 10 सालों में मेरे शहर के पहाड़ों को तोड़ दिया गया”

मुझे याद है बचपन के दिनों में जब भी बारिश होती थी, तब मेरे शहर दुमका में जन्नत का नज़ारा होता था। पहाड़ों से आने वाली ठंडी-ठंडी हवाएं, बारिश की बूंदे और हर तरफ हरियाली। मतलब मज़ा ही आ जाता था एकदम! मेरे दोस्त या रिश्तेदार जब अलग-अलग शहरों से हमारे शहर आते थे, तो उन्हें यहां का सुहाना मौसम बहुत अच्छा लगता था।

धीरे-धीरे बदलते वक्त के साथ प्रकृति का वह खूबसूरत नज़ारा लुप्त हो गया। आज बारिश के दिनों में यूं लगता है जैसे धरती के अंदर से आग निकल रही हो। पहले की तुलना में आज के दिनों में उतनी बारिश होती भी नहीं है।

जब हम आस-पास के ज़िले जैसे- देवघर, धनबाद, गोड्डा, बोकारो या हज़ारीबाग जा रहे होते थे, तब हर तरफ हरियाली छाई रहती थी। घने वृक्ष, सूरज की तपिश को आप तक पहुचंने नहीं देते थे मगर आज आलम कुछ और ही है।

पहले के दिनों में जिस तरीके से पहाड़ दिखाई पड़ते थे, अब औसत पड़ाह छोटे-छोटे चट्टान बन गए हैं। सुना है शिकारीपारा प्रखंड के पास धड़ल्ले से पहाड़ तोड़े जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि बीते 10 सालों में माफियाओं ने मेरे शहर के पहाड़ों को लूट लिया।

मुझे बहुत अफसोस होता है कि हमारी सरकारों के इलेक्शन मैनिफेस्टो में ‘Climate Change’ ज़रूरी मसला क्यों नहीं होता है। शिक्षा, रोज़गार, महंगाई, नक्सलवाद और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों के बीच ‘Climate Change’ का मसला कहीं गुम हो जाता है। मैं इस विषय पर इसलिए भी चिंतित हूं, क्योंकि मैंने अपने शहर में ‘Climate Change’ होते बहुत करीब से देखा है।

मैंने महसूस किया है कि साल 2002 तक जिस तरीके से बारिश होने पर मौसम का सुहाना रूप हम देख पाते थे, अब वे सपना ही रह गए हैं। यदि लगातार पेड़ों की कटाई होगी, पहाड़ों को तोड़े जाएंगे और गंदगी फैलाई जाएगी फिर तो पर्यावरण के दोहन के लिए हम ही ज़िम्मेदार हो सकते हैं।

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी। फोटो साभार- Getty Images

मुझे याद है झारखंड गठन के बाद जब बाबुलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने पूरे शहर और आस-पास के इलाकों में वृक्ष लगाए थे। हम जैसे-जैसे बड़े हुए, उन वृक्षों ने भी विशाल रूप ले लिया मगर अभी हाल ही में जब दुमका के विभिन्न जगहों पर सड़कों के चौड़ीकरण का कार्य हुआ, तब धड़ल्ले से बाबुलाल मरांडी के कार्यकाल में लगाए गए पेड़ों की कटाई कर दी गई।

मैं मानता हूं कि विकास बेहद ज़रूरी है मगर हमें यह भी सोचना होगा कि जब बाबुलाल मरांडी के कार्यकाल में वृक्ष लगाए गए थे, उस वक्त हमने सोचने की ज़हमत क्यों नहीं उठाई कि आने वाले वक्त में जब सड़कों का चौड़ीकरण किया जाएगा, तब इन वृक्षों की कटाई करनी होगी।

हम जब भी योजना स्तर पर काम करते हैं, तब हमारी तैयारी अच्छी क्यों नहीं होती है? हमारे देश में सड़क बन जाने के बाद उन्हीं सड़कों की खुदाई क्यों करनी पड़ती है? क्यों सड़क बनने से पहले विभिन्न विभागों से एनओसी नहीं लिया जाता कि अगले पांच सालों तक उन्हें सड़कों की खुदाई करनी है या नहीं।

इन सबके बीच मैं यही कहना चाहूंगा कि मेरे लिए ‘Climate Change’ बहुत बड़ा मसला है, जिसके लिए हम सबको अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो आज अवैध खनन का अड्डा बना है मेरा शहर दुमका, क्या पता कल आपके शहर के भी ऐसे ही हालात हो जाएं।

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