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कविता : मुश्किलों से तुम मत घबराना

कविता : मुश्किलों से तुम मत घबराना

लोगों का तो काम है कहना
बढ़ते सर की टांगें खींचना
लेकिन तुम मत घबराना
अपने कदम को आगे बढ़ाना

अगर जो फिर भी हताशा हो तो
अपने दिल को खूब समझाना
लोग तो बिल्कुल सटीक कहते हैं
बेकार है उनसे बहस लड़ाना

तुम मत उनकी बातों में मत आना
अपने संकल्प को सोच बनाना
मेहनत को हथियार बनाकर
खूब पसीने में नहाना

गिरना उठना और फिर गिरना
गिरकर शीश कभी ना झुकाना
फिर कहता हूं मत घबराना
अपने कदम को आगे बढ़ाना

उठकर तुम फिर दौड़ लगाना
अगर तुम थक जाओ दौड़कर
फिर चल कर खुद को बढ़ाना
फिर हो और मुश्किल बढ़ पाना
तो रेंग कर रेखा पार है जाना
बस फिर कहता हूं तुम मत घबराना
अपने कदम को आगे बढ़ाना

जब तक हासिल ना हो दाना
पानी, घर और दो वक्त खाना
खूब जम कर पसीने बहाना
और हक से दो पैसे कमाना

ना भागना पीछे बेईमानी के
फिर चाहे भूखे एक वक्त सो जाना
जिंदगी में बहुत दूर है जाना
कभी रोना है कभी मुस्कुराना
फिर कहता हूं मत घबराना

अपने कदम को आगे बढ़ाना ।

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