Site icon Youth Ki Awaaz

UP: अवैध खनन कर रहा है शाहजहांपुर की पहचान के साथ खिलवाड़

अवैध खनन कोई नया खेल नहीं है। यह बहुत पुराना खेल है। इसमें नीचे से लेकर ऊपर तक हर अधिकारी की मिली-भगत होती है, ऐसा लोग कहते हैं। कभी-कभी प्रशासन की चुप्पी इस ओर इशारा करती भी है।

ऐसा नहीं है कि यह अवैध खनन सिर्फ एक जनपद की समस्या है, जबकि यह अमूमन उन हर जनपद की समस्या है, जो कि नदियों के किनारे बसे हुए हैं। ऐसे ही कुछ हालात शाहजहांपुर जनपद की पहचान गर्रा नदी के भी हैं।आइए जानते हैं गर्रा नदी का इतिहास।

नदी का इतिहास

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

शाहजहांपुर गजेटियर के अनुसार, मुगल बादशाह के सिपहसालार बहादुर खां, दिल्ली से बिहार प्रांत हाथी खरीदने के लिए जा रहे थे। इधर से गुज़रने पर बहादुर खां ने मल्लाह से नदी पार कराने का हुक्म दिया। इस पर मल्लाह ने साफ इंकार करते हुए कहा हम तो सिर्फ एक ही राजा, राजा दयाराम सिंह यादव को जानते हैं।

अगर आप इतने ही बड़े राजा हो तो पुल बनवा लो। इस तरह बात-बात में नाविक के मुंह से निकली बात ने इस शहर का इतिहास ही बदल दिया। यह बात सन् 1600 के आसपास की है। राजा दयाराम, राजा भोला सिंह महीपत यादव के सामंत थे।

भोला सिंह का राज्य बदायूं, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, फर्रुखाबाद तक फैला हुआ था। पुल निर्माण के बाद दयाराम और बहादुर खां के बीच कई संग्राम हुए। इसके बाद यहां मुगल साम्राज्य स्थापित हो गया। इस तरह नदी ने इस शहर के इतिहास को ही पलट दिया था।

गर्रा का वास्तविक नाम देवहूति है, जो कपिल मुनि की माँ मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि माँ देवहूति की अत्यधिक तपस्या के कारण उनका शरीर गल-गलकर पानी बन गया। बाद में इसे ही गर्रा नदी के नाम से जाना जाने लगा। गर्रा नदी पीलीभीत ज़िले की एक झील से निकली है। रौसर कोठी के पीछे गर्रा व खन्नौत नदियों का मिलन होता है।

अपने वजूद के लिए लड़ती गर्रा

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

अवैध खनन माफियाओं ने गर्रा नदी को नाले के स्वरूप में बदलकर रख दिया है। तमाम समाजसेवियों द्वारा समय-समय पर आंदोलन किए जाते रहे हैं मगर नतीजा शून्य रहा है। ना प्रशासन की नींद टूटी है और ना ही सरकार में बैठे नुमाइंदों की! हर कोई इतंज़ार में है कि कब हमारा दांव लग जाए और हम गर्रा नदी के गर्भ से अपार धन अर्जित कर लें।

कुछ दिन पूर्व क्षेत्र के विधायक मानवेन्द्र सिंह ने इस अवैध खनन पर कार्रवाई हेतु आवाज़ बुलंद की थी मगर नतीजा क्या हुआ? जांच के नाम पर कमिटी बनी और उसकी रिपोर्ट कब आई या आई भी या नहीं, किसी को नहीं पता।

गर्रा के साथ यह कोई प्रथम बार नहीं हुआ है। अक्सर उसके अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष किया जाता है मगर संघर्ष बिना किसी परिणाम पर जाकर आत्मसमर्पण कर देता है। इन अवैध खनन को लेकर न्यायालय भी समय-समय पर आंखें करेरता रहा है मगर प्रशासन कागज़ी कार्रवाई करके इतिश्री कर लेता है।

आवश्यक है कि नदियों को न्याय मिलने के लिए भी कठोर कानून बनाए जाएं। अवैध खनन कर रहे लोगों पर भी हत्या का मुकदमा पंजीकृत हो, यह समय की मांग है। जब तक नदियों के संरक्षण हेतु कठोर फैसले नहीं लिए जाएंगे, तब तक न्याय की उम्मीद करना बेईमानी है। अपराधियों में कार्रवाई का भय होना बेहद आवश्यक है, अन्यथा गर्रा जैसी तमाम नदियां दम तोड़ती जाएंगी।

Exit mobile version