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“मेरे शहर के स्कूल में पर्यावरण की रक्षा करने की बातें करने वाले शिक्षक स्वयं प्लास्टिक बैग यूज़ करते हैं”

सितंबर 2019 जब भी ज़हन में आता है, तो पर्यावरण की बातें ताज़ी हो जाती हैं। आप पूछिएगा ऐसा क्यों? तो मेरे शहर दुमका में साल 2019 में एक पखवाड़े तक चलने वाले ‘स्वच्छता ही सेवा है’ कार्यक्रम के तहत, नैशनल स्कूल के बच्चों ने अपने शिक्षकों के मार्गदर्शन में एक जागरूकता रैली निकाली थी।

यह रैली विद्यालय के पोषक क्षेत्रों के अंतर्गत पॉलिथीन के दुष्प्रभावों के बारे में आम लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से निकाली गई थी। उस वक्त मुझे लगा था कि बच्चे कितने जागरुक हो गए हैं। लोग भी पर्यावरण को लेकर कितने सजग दिख रहे हैं मगर क्या वाकई ऐसी बात थी? इसी लेख में आगे जानेंगे।

जल वर्षा को बचाने का दिया संदेश

रैली में जाने से पूर्व बच्चों को संबोधित करते हुए विद्यालय के प्रधानाचार्य सुभाष चंद्र सिंह ने कहा,

वर्षा की प्रत्येक बूंद बेहद कीमती है। इसे सहेजकर रखना हम सभी का नैतिक दायित्व है।

उन्होंने बताया कि जल के बिना जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है। दिनों-दिन बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयुक्त मात्रा में जल का होना बहुत ज़रूरी है मगर विद्यालय में आय दिन जल की बर्बादी हम सभी देखते हैं।

उन्होंने आगे कहा,

प्रकृति से जल प्राप्त होने का एकमात्र स्रोत वर्षा जल है, जिसे हर हाल में बहकर बर्बाद होने से बचाया जाना चाहिए मगर सच्चाई तो यह है कि रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को लेकर विद्यालय का कोई प्लान ही नहीं है।

बच्चों को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा,

प्लास्टिक के उपयोग से हमें बचना चाहिए। यह हमारे पर्यावरण को दूषित करने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के रोग जैसे कैंसर, डायबिटीज़ तथा तंत्रिका संबंधी कई व्याधियों का कारण बनते जा रहा है मगर सच्चाई तो यह है कि स्कूल में जो भी चीज़ें आती हैं, उनमें प्लास्टिक का प्रयोग ही सर्वोपरि होता है।

इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक मदन कुमार ने भी बच्चों को संबोधित किया और कहा,

हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्षा ऋतु में प्रकृति हमें पर्याप्त मीठा जल प्रदान करती है लेकिन पॉलिथीन का उपयोग कर जब हम इसे यत्र तत्र फेंक देते हैं, तो वह मिट्टी की परतों में जाकर वर्षा जल को भूमि के अंदर जाने से रोक देता है, जिसके कारण भौम जलस्तर गिरता जा रहा है।

मगर शिक्षक मदन कुमार शायद यह भूल गए कि जब शाम को वो सब्ज़ी लेकर अपने घर जाते हैं, तो उनके हाथ में एनवॉयर्नमेंट फ्रेंडली झोला नहीं होता है, बल्कि प्लास्टिक का बैग ही होता है।

फोटो साभार- नंद बैद

बच्चों ने पॉलिथीन के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी

रैली के दौरान बाल सांसदों ने विद्यालय के पोषक क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले तमाम तोले-मोहल्ले में जाकर विभिन्न नारों के साथ, आम लोगों को पॉलिथीन के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी तथा पृथ्वी को बचाने के लिए पॉलिथीन का प्रयोग ना करने की गुहार लगाई। अब बच्चे तो बच्चे हैं!

बाल सांसदों ने अपनी बात रखते हुए कहा कि पॉलिथीन की जगह कपड़े या जूट के बने थैले का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए मगर आप खुद सोचिए कि जूट के बने थैलों को आप कितने दिन प्रयोग करेंगे? सच तो यह है कि हमें आदत हो गई है पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ों के प्रयोग की!

खैर, बच्चों ने मोहल्ले के दुकानदारों से भी पॉलिथीन में किसी ग्राहक को कोई भी सामान ना देने की गुज़ारिश भी की। इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक राजीव कुमार, बसंत कुमार, रामचंद्र मुर्मू, संदीप कुमार चौधरी, ग्लैडसन सोरेन,अभिजीत मल्लिक, सलीमुद्दीन, सुदिप्ता किस्कू, मेरी अग्नेस मुर्मू, मीरू सोरेन, रूबी कुमारी आदि शिक्षक शिक्षिकाएं मौजूद थे।

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