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आज़ादी के 75 साल बाद भी देश का आम जनमानस भुखमरी से पीड़ित क्यों है?

आज़ादी के 75 साल बाद भी देश का आम जनमानस भुखमरी से पीड़ित क्यों है?

बेहतर स्वास्थ्य होना ना केवल एक आधारभूत बुनियादी ज़रूरत है बल्कि एक आम नागरिक का अधिकार भी है, जब एक आम नागरिक शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ होगा, तभी वो देश की उन्नति में अपना योगदान दे पाएगा।

इसके साथ ही महामारी के बीते दो सालों ने ना केवल आम नागरिकों को बल्कि सरकार को भी यह बता दिया है कि देश में लोगों की मज़बूत रोगप्रतिरोधक क्षमता का होना बहुत ज़रूरी है, जब बात मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता की आती है, तो इसका सीधा सम्बन्ध हमारे खानपान की स्थिति से है, क्योंकि सही पोषणयुक्त खानपान ही हमारे शरीर को मज़बूत बना सकता है लेकिन यहां एक बड़ा सवाल यह भी आता है कि क्या हमारे देश में हर एक नागरिक को पोषणयुक्त भोजन मिल पाता है?

क्या हर वो इंसान जो चौक-चौराहों पर भटकता रहता है और गरीबी रेखा से भी नीचे के स्तर पर बड़ी मुश्किलों से अपना जीवनयापन करता है, क्या उस इंसान को सही प्रकार से तीन समय का भोजन नसीब भी हो पाता है? तो इसका जवाब है नहीं, क्योंकि एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की 8.9 फीसदी आबादी भूखे पेट सो रही है और वर्ष 2030 तक भूखे पेट सोने वालों का यह आंकड़ा 84 करोड़ हो जाएगा।

दुर्भाग्य यह है कि वर्ष 2014 के बाद दुनियाभर में भूखे पेट सोने वाले लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है साथ ही भारत में खाने के अभाव के कारण हर दिन भूखे पेट सोने वाले लोगों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है। हमारे देश में यह स्थिति तब है, जब देश में हर साल पैदा होने वाला 40 फीसदी खाद्य पदार्थ रखरखाव या आपूर्ति की अव्यवस्था के कारण खराब हो जाता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत में औसतन हर साल 68,760,163 टन खाना बर्बाद होता है।

भोजन का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून द्वारा स्थापित सिद्धांत है। यह सदस्य राज्य के लिए खाद्य सुरक्षा के अधिकार के सम्मान, संरक्षण और पूर्ति हेतु दायित्व का निर्धारण करता है। खाद्य सुरक्षा के सामान्य सिद्धांत के अंतर्गत चार प्रमुख आयामों यथा- पहुंच, उपलब्धता, उपयोग और स्थिरता को शामिल किया जाता है।

खाद्य सुरक्षा को लेकर समय-समय पर बदलाव हुए हैं। सबसे पहले 14 जनवरी, 1945 को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पीडीएस अर्थात पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को लांच किया गया था। इसे फिर जून 1947 में भी जारी रखा गया था। उसके बाद साल 1951 में भी पीडीएस समाज कल्याण योजना के तरह चलता रहा।

साल 1965 में Food Corporation Of India and Agriculture Prices Commission को लाया गया। साल 1997 में पीडीएस सिस्टम में बदलाव करते हुए इसे बीपीएल अर्थात गरीबी रेखा के नीचे, एपीएल अर्थात गरीबी रेखा के ऊपर और टीपीडीएस अर्थात Targeted Public Distribution System में बांट दिया गया।

पीडीएस में गरीबी रेखा के ऊपर के लोगों को राशन दिए जाते हैं और टीपीडीएस में गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को राशन  मुहैया कराया जाता है।

साल 2001 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भोजन के अधिकार को जीने के अधिकार के अंतगर्त शामिल कर दिया और उसके बाद साल 2013 में NFSA अर्थात National Food Security Act वजूद में आया।

NFSA ने चार सिद्धांतों को जोड़ते हुए इस भोजन के अधिकार को बांट दिया।

1 . TPDS (Targeted Public Distribution System)  इसके तहत बीपीएल अर्थात गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों को राशन मुहैया कराया जाता है, जिसमें चावल, गेंहू, अनाज आदि लोगों को दिए जाते हैं।

2 . ICDS (Integrated Child Development Service)  इसके तहत आंगनवाड़ी में 6 महीने तक के बच्चों को 6 साल तक के लिए खानपान की वस्तुएं प्रदान की जाती हैं।

3 . MDM (Mid Day Meal Programme)  इसके तहत सरकारी स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के प्रति आकर्षित करने के लिए कक्षा 8 तक के बच्चों को स्कूलों में भोजन प्रदान किया जाता है।

4. IGMSY (Indira Gandhi Matritav Sahyog Yojna) – इसके तहत माँओं को 6 महीने तक हर महीने 6000 रुपये प्रदान किए जाते हैं, ताकि माँएं अपना ख्याल रख सकें साथ ही माँओं को एक हॉट मील भी दी जाती है, जिसकी अवधि बच्चे के जन्म होने के बाद 6 महीनों तक की होती है।

NFSA के आने के बाद अनेक बदलाव भी हुए लेकिन NFSA के तहत ग्रामीण इलाकों में 75 प्रतिशत की सब्सिडी पर खाद्य पदार्थ दिए जाने लगे। वहीं शहरी क्षेत्र में 50 प्रतिशत की सब्सिडी के साथ लोगों को खाद्य पदार्थ दिए जाने लगे।

टीपीडीएस और पीडीएस के बाद साल 2000 के दिसंबर में अंत्योदय अन्न योजना को लाया गया, जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से भी नीचे के लोगों को राश्न मुहैया कराना था। इसके तहत लगभग 1 करोड़ की भूखी जनता को 3 रुपये किलो के दाम पर चावल और 2 रुपये किलो के आधार पर गेहूं प्रदान किए जाते हैं। हालांकि, अंत्योदय अन्न योजना में समय-समय पर काफी बदलाव भी हुए, ताकि हर एक इंसान को भोजन का निवाला नसीब हो सके।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के 2019 आंकड़ों के अनुसार, जिसे इंडिया डाटा पोर्टल की मदद से लिया गया है। उसके अनुसार मुजफ्फरपुर के 1832 ग्रामीण इलाकों की कुल 56,79024 जनसंख्या की आबादी में से 26,18894 महिला ओर 30,60130 पुरुषों को अंत्योदय अन्न योजना का लाभ मिला है।

इस कड़ी में कुछ लोगों से हकीकत और आंकड़ों का जायजा लेने के लिए बातचीत की गई, तब एक घरेलू कामगार महिला शोभा देवी ने बताया कि उन्हें अंत्योदय अन्न योजना का लाभ मिलता है, जिसके तहत उन्हें कम कीमतों पर राशन का सामान मिल तो जाता है लेकिन कभी-कभी राशन खराब भी मिल जाता है।

 

वहीं एक रिक्शा चालक नागेंद्र महतो ने बताया कि राशन मिल तो जाता है लेकिन कभी-कभी बिचोलियों के कारण देरी हो जाती है साथ ही मुज़फ्फरपुर के ग्रामीण इलाके के रहने वाले बीपीएल राश्न कार्ड धारक फल विक्रेता लाल बाबू बताते हैं कि राशन में उन्हें चावल, गेहूं, नमक और चीनी मिलता है। यह उन्हें समय से मिल जाता है और साथ ही सरकार द्वारा हेल्थ कार्ड भी मिला हुआ है, जिससे उन्हें अपने स्वास्थ्य की जांच करवाने में मदद मिलती है। 

हालांकि, उन्होंने बताया कि उनके घर में कोई प्रेंगनेंट महिला और किशोर उम्र की लड़की नहीं है। उनके महीने की आमदनी 8000-10,000 हज़ार रुपये है साथ ही मुज़फ्फरपुर के पॉश इलाके लक्ष्मी नारायण नगर के पास बसे रिफ्युजी कॉलोनी में लोगों को समय से राशन नहीं मिल पाता है।

राशन कार्ड बनवाने में आला-अधिकारी घूस मांगते हैं। वहां रहने वाले लोगों के पास कोई निश्चित रोज़गार नहीं है, जिसके कारण उनकी खानपान की स्थिति बेहद बदहाल है और इसके साथ ही वहां कुछ महिलाएं गर्भवती भी हैं लेकिन उन्हें किसी योजना के तहत लाभ नहीं मिल पाता है। वहीं उनके पतियों का रोज़गार भी अस्थाई है, जिस कारण से खानपान में कमी होने का डर मंडराते रहता है।

मधु की उम्र महज़ 21 साल है और उनकी गोद में एक 6 माह की छोटी बच्ची है, जो स्वयं कुपोषण का शिकार है। उनके पास सही से खाने का इंतज़ाम नहीं है और ना ही उनके पति के पास कोई स्थाई रोज़गार, जिस कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहां रहने वाली संगीता देवी की हालत भी कुछ ऐसी ही है।

देखा जाए, तो केवल कुछ लोगों से बात करके हकीकत का अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है लेकिन कुछ लोगों की बातचीत से भी कई खामियां उजागर हो जाती हैं। कमोबेश अगर किसी अधिकारी से बात करने की कोशिश भी होती है, तो कोई संतोषप्रद जवाब नहीं मिल पाता है।

NFHS के ताजा सर्वे के मुताबिक, बिहार में लगभग 88 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की चपेट में हैं, जिसका एक मात्र कारण उनको सही प्रकार से पौष्टिक भोजन ना मिल पाना है। इसमें भी एनीमिया का प्रतिशत नवविवाहित महिलाओं में ज़्यादा है।

ऐसा ज़रूरी नहीं है कि हर एक महिला को राशन मिलने पर भी समुचित खानपान मिल सके, क्योंकि आज भी महिलाएं सबके खाने के बाद ही निवाला अपने मुंह में डालती हैं साथ ही घर परिवारों में भी बच्चियों के साथ भेदभाव किया जाता है, जब उनके पसंद के भोजन की जगह पुरुष अर्थात पति, भाई आदि के पसंद का भोजन बनाया जाता है।

एक साधारण-सा उदाहरण है, जिस परिवार में लोग नॉनवेज खाना पसंद करते हैं, वहां भी पसंद किए जाने वाला पीस लड़कियों को नहीं मिलता और हो सकता है कि ये एक छोटी बात हो लेकिन आमतौर पर अधिकांश घरों में ऐसा होता है।

केवल राशनकार्ड का विभाजन कर देने मात्र से परेशानी का हल नहीं निकल सकता, क्योंकि जब तक लोग जागरुक नहीं होंगे, तब तक महिलाओं समेत अन्य लोगों के भोजन में परिवर्तन नहीं आ पाएगा। मात्र चावल, दाल या आटे से भोजन पूरा नहीं हो जाता, क्योंकि ये केवल पेट की भूख मिटा सकते हैं अंतर्मन अर्थात शरीर को समुचित पोषण मिलने के लिए पौष्टिक भोजन लेना बहुत ज़रूरी है जैसे- दूध, फल, अंडा, साफ पानी, विटामिन-सी से भरपूर डाइट, विटामिन-बी 12 से भरपूर भोजन आदि।

देश में गर्भवती महिलाओं की सेहत का ध्यान रखने के लिए भले बदलाव हो गए हैं लेकिन कोई भी महिला केवल इसलिए योजना का लाभ नहीं ले पाती, क्योंकि उसे केवल अपनी भूख की चिंता नहीं रहती। भले सरकारी योजनाओं के तहत गर्भवती महिलाओं को भोजन दिए जाते हो लेकिन वह अपने खाने से ज़्यादा अन्य परिवार के सदस्यों के खाने की फिक्र करती है। एक महिला जो पांच महीने की गर्भवती है, उसे अपने से ज़्यादा परिवार के खाने की फिक्र सताती रहती है, जिस कारण वह अपने ही भोजन में कटौती कर देती है।

ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां महिलाओं को पोषण वाला भोजन नसीब ही नहीं होता, कई ऐसे घर परिवार भी हैं, जिन्हें समुचित राशन तक नहीं मिल पाता है।

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा मई 2022 में ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ को पूरे देश में शुरू करने की बात कही जा रही है। इस योजना के अंतर्गत जिन व्यक्तियों के पास राशन कार्ड है, वे उसे केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोटेबिलिटी कराकर अन्य राज्यों की राशन की दुकानों / उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) से भी राशन खरीद सकेंगे। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मई 2022 से इस योजना को पूरे राष्ट्र में लागू किया जा सकता है।

यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है लेकिन अधिकांश ग्राणीण लोगों को इसकी जानकारी तक नहीं है। इसके लिए सबसे पहले लोगों को इसके बारे में जागरुक करना होगा लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रुरी है कि लोगों की ना केवल भूख बल्कि ज़रूरतों को देखकर ही राशन कार्ड में बदलाव किए जाएं, ताकि लोग अपनी भूख नहीं बल्कि नागरिकों के सहयोग से भारत कुपोषण से भी लड़ सके।

नोट- यह आलेख Newslaundary और India Data Portal फेलोशिप के तहत प्रकाशित किया जा रहा है साथ ही इस लेख में शामिल बार ग्राफ के आंकड़े IDP से लिए गए हैं।

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