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क्या आज हिंदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है?

तुम जितनी सरल हो उतनी ही खूबसूूरत भी। कहीं तुम्हारा नाम (हिंदी) तो नहीं। हिंदी हमारी अस्मिता है, हमारा गुरुर, हमारा मान है। मैं हिन्दी बोलता हूं, लिखता हूं और सही मात्राओं और उच्चारण की हिन्दी सीखने में मैंने मेरे दिन रात दिए हैं।

आज भी मैं नए-नए शब्द सीखने के लिए पहले की तरह ही आतुर रहता हूं और मौका मिलते ही उसका इस्तेमाल भी करता हूं। हिन्दी मेरे दिल में है इसलिए आज मेरे साथ इतने सारे लोग दिल से जुड़े हैं।

लेकिन हिंदी दिवस मनाना हिंदी का श्राद्ध है। हिंदी मरी नहीं है, घायल है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। अभी जीवन बाकी है। मैं यह भी नहीं कहता कि हिंदी अजर अमर (immortal) है। बदलाव के इस युग में जब इंसान “प्रकृति” जैसी खूबसूरत नियामत को नहीं बख्श रहा तो अंत तो किसी भी चीज़ का हो सकता है। बाकि बदलते इस युग में हिंदी को आत्मसात करना एक पीढ़ी को कठिन लग रहा है।

“Hey bro” अधिक प्रभावशाली लगता है “कैसा है मेरे भाई ” प्रभावहीन सा मालूम पड़ता है। “What’s up bro” ज़्यादा प्रभवशाली मालूम पड़ता है और “क्या हाल चाल है भाई” कम प्रभवशाली मालूम पड़ता है।

कैफे में “नींबू पानी” मंगवाइये तो जवाब मिलेगा नहीं है, थोड़ा सी भाषा परिवर्तित कर “virgin mojito” मंगवाइये तो फट से आ जायेगा। सुअर निकृष्ट शब्द है, pig एक जानवर है। हिंदी में पारिवारिक शब्दावली की गाली बकेंगे तो अनपढ़ कहलाएंगे। टेक्स्ट करते समय लिखेंगे “oye B.C” तो स्टाइलिश कहलायेंगे। अनार pomegranate बन चुका है और पपीता को papaya कहना पड़ेगा।

ससुराल पिछड़ा शब्द है, “in laws” का उच्चारण कीजिये। धर्मपत्नी को प्रिय या संगिनी बुलाएंगे तो वह ऐसे देखेगी जैसे कोई अपराध किया हो। “Baby, Honey, Sweetheart” का प्रयोग उचित रहेगा। धन्यवाद सुरीला नहीं लगता “ThankS” कहना सीखिए। वो चश्मा नहीं “spectacles” हैं और वो तकिया नहीं “pillow” है।

हां , जिसपर तुम पैर पसार के सोए हो वह चादर नहीं “bedsheet” है और उसके नीचे गद्दा नहीं “matress” है। कलम नहीं “pen” बोलना सीखो। पर्ची नहीं “slip” होता है। गत्ता क्या है? “cardboard” नहीं बोलना आता? संगीत शास्त्रीय होता होगा, music बोलो music। ये “धुन” क्या होता है, “its the tune” । लफ्ज़, अल्फ़ाज़ नहीं “its the lyrics” ! अरे कविता नहीं उसे poem कहते हैं।

उदहारण देते-देते शायद मैं थक जाऊंगा। फिर भी इतने वार सहकर हिंदी जीवित है घायल है परन्तु जीवित है। मेरे जैसे असंख्य हिंदी प्रेमियों के “दिल के किसी कोने में” जीवित है।

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