कई आदिवासियों समुदायों के लिए साल का वृक्ष बड़ा महत्वपूर्ण है। यह पेड़ आदिवासी संस्कृति और जीवन शैली से जुड़ा हुआ है। इस भूरे और लम्बे पेड़ को कई आदिवासी क्षेत्रों में पूजा भी जाता है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की मान्यता है कि साल के वृक्ष में आदिवासियों के भगवान अर्थात देवी देवता विराजमान होते है।
साल पेड़ के कई उपयोग
साल के पेड़ से बहुत ही सुंदर खुशबूदार सुनहरे रंग का गोंद निकलता है, जिसको छत्तीसगढ़ी में धूप कहते है। इस धूप का प्रयोग हमारे आदिवासी क्षेत्र में अधिकतर पूजा- पाठ के समय आग में डालकर किया जाता है। इसका प्रयोग अगरबत्ती की जगह भी किया जाता है। यह धूप सभी वृक्षों में नहीं पाया जाता, यह साल वृक्ष की ख़ासियत है। इस धूप को आदिवासी इकट्ठा कर के बाज़ार में बेचते है।
यह धूप निकालने के लिए साल के वृक्ष में 1 इंच का गड्ढा खोदा जाता है। उसे फिर छीला जाता है। गड्ढा खोदकर छाल निकालने के 4 से 5 दिन के बाद उस साल के वृक्ष से हल्के सुनहरे रंग का बहुत ही खुशबूदार गोंद निकलना शुरू हो जाता है। यह गोंद सूखने के बाद ही निकाला जाता है, जब गोंदिया धूप परत दर परत एक मोटी चमड़ी के समान दिखाई देने लगता है। इसे फिर आसानी से हाथों से ही निकाला जाता है।
अगर किसी साल के वृक्ष से धूप ना निकले, तो उसे किसी धारदार हथियार के सहारे छील छीलकर निकालना पड़ता है। कभी-कभी साल के वृक्ष से हल्के सुनहरे रंग के धूप के साथ साथ हल्के गुलाबी रंग का भी धूप निकलता हैं। इस गोंद को अगर पीसा जाए, तो यह आटे के सामान चिकना हो जाता है और आग में डालने पर बहुत ही खुशबू के साथ धुआ निकलता है।
प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ में इस धूप का उपयोग हो रहा है। राजा महाराजाओं के समय रानी और पटरानियाँ इस धूप के द्वारा अपने घरों और बालों को खुशबूदार बनती थी। उसी प्रकार आज भी वनांचल आदिवासी क्षेत्रों में इस साल के धूप से घरों को सुगंधित करते है और देवी-देवताओं को प्रसन्न करते है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के सभी त्योहारों में इस धूप का प्रयोग किया जाता है।
पत्ते, लकड़ी और बीज का तेल
इस पेड़ के अलग अलग भागों के कई उपयोग है। साल के पत्तों का प्रयोग पत्तल और दोना बनाने में किया जाता है, जिसका उपयोग शादी- विवाह और कार्यक्रमों में किया जाता है। पत्तों के साथ साथ इसकी लकड़ियों और बीजों से निकाले जाने वाले तेल बहुत ही उपयोगी होते हैं और इनमें कई औषधि गुण होते है।
इसकी लकड़ी का प्रयोग इंधन के रूप में और फ़र्निचर बनाने के लिए भी किया जाता है। लकड़ी से आदिवासी घर के लिए बर्तन भी बनाते है। साल की लकड़ियों का आदिवासी शादी कार्यक्रम में भी बड़ा महत्व होता है।
छाल, फूल और बीज
अगर किसी को पेचिश की परेशानी हो, तो साल के छाल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके फूलों और बीजों का उपयोग लघु उपज के रूप में किया जाता है। साल के बीजों को कूटकर बेचा भी जाता है।
इस तरह साल के पेड़ का आदिवासी के साथ घना रिश्ता है। इस पेड़ से कई आदिवासियों का जीवन यापन होता है, जहाँ आदिवासी साल के गोंद और पत्तों को बेचते है। छत्तीसगढ़ के ज़्यादातर आदिवासी गाँव में यह पेड़ आपको ज़रूर देखने मिलेगा।
नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।