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” द कश्मीर फाइल्स ” कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि एक दर्दनाक सच है

” द कश्मीर फाइल्स ” कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि एक दर्दनाक सच है जो उन लाखों कश्मीरी हिन्दू पंडितों के खून से सनी है। मैं यहाँ कोई फिल्म समीक्षा नहीं लिख रही हूँ , मैं कौन होती हूँ की मैं किसी के दर्द का रिव्यु कर सकु। 

शुरू कहाँ से करू ये समझ में नहीं आ रहा क्योंकि कुछ लिख पाऊँगी और कुछ रह जाएगा। अब जब कश्मीर की बात हो रही है तो कश्मीर से ही शुरू करती हूँ , कुछ रह जाये तो माफ़ कीजियेगा ? 

हम सभी जानते है कि कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा था। ये धरती कला , संस्कृति और ज्ञान की जननी थी , पंचत्रंत भी इसी धरती पर लिखी गयी जो की महान पंडित विष्णु शर्मा जी ने लिखी थी। ऋषि – मुनियों और बुद्धिजीवियों की नगरी हुआ करती थी ये। कश्मीर के सभी मूल निवासी हिंदू थे। कश्मीरी पंडितों की संस्कृति लगभग 60000 साल पुरानी है और वे ही कश्मीर के मूल निवासी माने जाते हैं। 14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आए एक क्रूर मंगोल मुस्लिम आतंकी दुलुचा ने 60,000 लोगों की सेना के साथ कश्मीर पर आक्रमण किया और कश्मीर में धर्मांतरण करके मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की थी। 

कश्मीर के हजारों हिंदुओं को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। सैकड़ों हिंदू जो इस्लाम कबूल नहीं करना चाहते थे, उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। कई वहां से अपनी जान बचाकर निकल गए थे। जम्मू, कश्मीर पहले हिंदू शासकों और फिर बाद में मुस्लिम सुल्तानों के अधीन रहा। वर्ष 1756 से अफगान शासन के बाद वर्ष 1819 में यह राज्य पंजाब के सिख साम्राज्य के अधीन हो गया। वर्ष 1846 में रंजीत सिंह ने जम्मू क्षेत्र को महाराजा गुलाब सिंह को सौंप दिया। 

कश्मीर की बात तो सभी किया करते हैं पर इसके इतिहास के बारे में बहुत कम लोग ही चर्चा करते हैं न ही स्कूल के किसी किताब में ये बताया जाता है की कश्मीर क्या है ? बचपन से आज तक हमने अपने किताब में यही पढ़ा की कश्मीर किसी विशेष कौम का है , हिन्दू का तो कही जिक्र ही नहीं किया गया कभी। 

अगर आपको कश्मीर का इतिहास , उसका कल्चर और बाकि चीजों को सही मायने में जानना है तो नीलमत पुराण ज़रूर पढ़े इससे आपको समझ में आएगा की वास्तव में कश्मीर है क्या ?  

कश्मीरी पंडित का दर्द मैं इस लैपटॉप के कीबोर्ड पर नहीं समेट पाऊँगी , कैसा मंजर होगा जब उन्हें उनके ही घर से बहार निकाल फेंका होगा। 32 साल तक हमसे ये सच छुपा रहा और अब जब ये बाहर निकाल कर आया है तो कई लोग इसे प्रोपेगंडा और नफरत फ़ैलाने के लिए किया गया ढोंग कह रहे है। आप कैसे 1990  के उस नरसंहार को झूठ कह सकते है , आप कैसे बहु बेटियों की लूटी गयी इज्जत को काल्पनिक कहानी कह सकते है , वो हमारे अपने थे और क्या हम इतने खुदगर्ज हो गए है ये हमारा इतना ब्रेन washed कर दिया गया है की हम खुद के लोगों का दर्द भी नहीं समझ पा रहे। 

कई लोग लिख रहे है की किसी विशेष और बेचारे समुदाय के लोगों के खिलाफ नफरत का बीज बोने के लिए ये झूठी कहानी बनाई गयी है , मुझे ये बताये की ऐसा आपके बोलने से आप महान इंसान हो जायेंगे , आप उन्हें ये भले दिखा पाएंगे की आप उनसे सहानभूति रखते है पर आप इंसानियत को क्या मुँह दिखाएंगे ?  

इंसानियत का सही मतलब है की आप सच और सही का साथ दे , गलत को गलत और सही को सही बोलना सीखे और इतना तो गट्स रखे। आपको लगेगा की मुझे मुसलमानों से नफरत है या मैं उन्हें गलत कह रही हूँ , इसके जवाब में मैं यही कहूँगी की मुझे नफरत नहीं है पर जो उन्होंने किया वो गलत था और रहेगा और मुझे उस गलती से नफरत है। 

कश्मीरी पंडित हमारे अपने थे और उनके साथ जो हुआ उसकी कोई माफ़ी नहीं है , उन्हें तो आज तक न्याय ही नहीं मिला। आज का युथ जिस जस्टिस की बात करता है क्या उनको लगता है की कश्मीरी पंडितों को जस्टिस मिला है , फिल्म के ज़रिये सिर्फ उनके सच को दिखाया गया है जिसपे पर्दा किया था उस समय के सरकार , नेता और मीडिया ने। अगर उस वक़्त किसी ने भी इनके सच को दिखाया होता तो तब कहानी कुछ और ही होती। 

( ऊपर एक लेटर है जहाँ एक हिन्दू एक मुस्लिम miltants से अपील कर रहा है की उसके पिता के अंतिम क्रिया के लिए उसे हरिद्वार जाने की आज्ञा दे , चित्र ट्वीटर से ली गयी है )

आखिर कश्मीरी हिन्दू पंडितों के नरसंहार का कौन था जिम्मेवार ?

जब 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ अन्याय हो रहा था तब उस वक़्त विश्वनाथ प्रताप सिंह जी माननीय प्राइम मिनिस्टर थे , ( ये वो वक़्त था जब मैं पैदा भी नहीं हुई थी तो इसके बारे में मैं इंटरनेट पर ही पढ़ पायी ) राष्ट्रीय मोर्चे दल से उन्होंने चुनाव लड़ा था और एक साल ( 2 दिसम्बर 1989 से 10 नवम्बर 1990 ) से भी कम समय के लिए वो प्रधान मंत्री के पद पर आसीन हूए। उस वक़्त फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे जो की कश्मीर छोड़ भाग गए थे , और जब घाटी से पंडितों का पलायन हुआ, तब मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे।  

सत्ता में रहने वाले नेताओं ने आँखे मूँद ली थी , पत्रकार सच के जगह झूठ दिखाने लगे , प्रशासन डरती थी फारूक अहमद डार उर्फ़ बिट्टा कराटे और उसके आका यासीन मलिक से जिन्होंने खुलेआम पंडितों का कत्लेआम किया , बेटी बहुओं का बलात्कार किया , छोटे मासूम बच्चों को गोलियों से भून दिया। स्थानीय मुसलमानों ने भी इन्ही आतंकवादियों का साथ दिया डर से या अपनी मर्ज़ी से ये तो नहीं कह सकती पर साथ दिया , जिस वजह से बचे हूए पंडितों को उनके ही घर से जान बचाके भागना पड़ा। 

सरकार के पास कोई सटीक आंकड़ा ही नहीं है जो यह बता सके की जो genocide हुआ उसमे कितने पंडित की हत्या हुई , कितने पलायन किये , कितने को इस्लाम में कन्वर्ट किया। 32 साल पहले जो हुई वो मजहबी क्रूरता का एक नंगा सच था , जिसे कोई भी नहीं नकार सकता। कहते है उस वक़्त वो काफिर ये नारा लगाते थे की , ” बदल जाओ , भाग जाओ या मर जाओ ” 

लोग तो कुछ भी मानेंगे ऐसा कहने वाले बहुत है , गुजरात दंगा तो सबने याद रखा पर कश्मीरी पंडितों का जो नरसंहार हुआ उसे क्यों दबा दिया गया तब ये सेक्युलर और लिबरल वादी कहा थे ? 

अगर कश्मीर फाइल्स झूठ है तो क्या ये सब भी झूठ है – 

1990 मुंबई ब्लास्ट
1998 कोयंबटूर बम ब्लास्ट
2001 गोधरा काण्ड
2002 अक्षरधाम अटैक
2002 जम्मू अटैक
2003 मुंबई ब्लास्ट

2005 अयोध्या अटैक
2005 जौनपुर बोम्बिंग
2005 दिल्ली ब्लास्ट
2005 IIsc अटैक
2006 वाराणसी बोम्बिंग
2006 मुंबई ट्रैन बोम्बिंग

2008 जयपुर ब्लास्ट
2008 रामपुर अटैक
2008 बेंगलुरु ब्लास्ट
2008 अहमदाबाद ब्लास्ट
2008 दिल्ली ब्लास्ट
2008 अगरतल्ला ब्लास्ट
2008 इम्फाल ब्लास्ट
2008 आसाम ब्लास्ट
2008 मुंबई अटैक 

2009 गुवाहाटी ब्लास्ट
2009 असम ब्लास्ट
2010 पुणे बॉम्बिंग
2010 वाराणसी बॉम्बिंग
2011 मुंबई हमला
2011 दिल्ली बम विस्फोट 

2012 पुणे ब्लास्ट
2013 हैदराबाद ब्लास्ट
2013 श्रीनगर ब्लास्ट
2013 बेंगलुरु ब्लास्ट
2013 बोधगया बोम्बिंग
2013 पटना सिलसिलेवार बम धमाके
2013 जलपाईगुड़ी बॉम्बिंग
2014 बर्धमान ब्लास्ट
2014 चेन्नई ट्रैन ब्लास्ट

2015 गुरदासपुर अटैक 

2016 पंपोर अटैक
2016 उड़ी अटैक
2017 अमरनाथ यात्रा अटैक
2019 पुलवामा अटैक
2020 उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे
2020 बंगलुरु दंगे 

ये तो बस एक छोटी सी लिस्ट है जिसमे आर्मी के जवान , पुलिस , बुड्ढे , बच्चे , औरतें , मंदिर जाने वाले अनगिनत श्रद्धालु , ट्रैन में यात्रा करने वाले यात्री ये सब मरे। किसने किया ये सब , जवाब हम सभी को पता है बस इस बात का डर है की बोलेंगे तो कही लोग कट्टर हिन्दू ना बोल दे या आरएसएस के चमचे ना बोल दे। मुझे तो हसीं लोगों के इस मानसिकता पर आती है की जब इस्लामिक कॉर्पोरेशन सही हो सकता है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को क्यों गलत कहा जाता है क्योंकि लिबरल का जो चोंगा हमने पहना है वो कही उतर न जाये बस इसी बात का डर है इसलिए गलती होने के बावजूद हम सच का साथ ना देकर बस बातों को घुमाते है और जो सच बोलता है उसको मोदी भक्त या कुछ और कह दिया जाता है। 

खैर बात यहां कश्मीरी पंडित की हो रही है और हम आज चाहे भी तो भी उनके दर्द को कम नहीं कर सकते , घर की याद क्या होती है ये उनको पता होता है जिनसे उनका सब कुछ छीन गया हो। द कश्मीर फाइल्स दिल दहला देती है ये सोचकर की कैसे एक पंडित औरत का सबके सामने गैंगरेप करके उसे ज़िंदा मशीन पर डाल कर काट दिया जाता है , कैसे एक पंडित औरत को उसके ही पति के खून से सने हूए चावल खाने को मजबूर किया जाता है , की कैसे एक मासूम बच्चे को मार दिया जाता है जो गर्भ से बाहर भी नहीं आया। और ये कोई कहानी नहीं एक कड़वा सच है।

जिहाद के नाम पर बेकसूर लोगों को मारना सही है ? यासीन मलिक और राधिका मेनन जैसे लोग जो आज़ादी शब्द का गलत इस्तेमाल कर लोगों को गुमराह करते है वो सही है ? जो आर्मी के जवान इतने ठण्ड में अपने परिवार को छोड़ हमारी रक्षा में खड़े रहते है उनपे ये इलज़ाम लगाना की वो कश्मीर में रहनेवाले मुस्लिम औरतों का रेप करते है ये सही है ?

मेरा लेख पढ़ रहे तमाम पाठकों से जो चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो या किसी भी धर्म से हो उनसे मैं एक विनती करूंगी की सच का साथ दें ना कि दोषी का , हिन्दू ने गलत किया तो वो भी गलत है उसे सजा मिले और साथ ही किसी और धर्म के लोगों ने गलत किया तो विक्टिम कार्ड खेल कर उनकी गलतियों को ढककर उन्हें और भी बढ़ावा ना दे। 

हो सकता है कि पढ़ने वाले कुछ लोग मुझे बुरा भला बोले मुझे फर्क नहीं पड़ता सच कहने पर या लिखने पर मुझे गालियां भी सुननी मिली तो क्या दिक्कत है आखिर किसी को तो बोलना पड़ेगा !

ये याद रखिये की  “forgive but never forget ” 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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