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जानिए कैसे बनाते हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी केंचुए से पर्यावरण के अनुकूल जैविक खाद

आजकल यह सामान्य ज्ञान है कि रासायनिक उर्वरक लंबे समय में खेत की मिट्टी को नुकसान पहुंचाते हैं। इतना ही नहीं, रासायनिक उर्वरक वायु प्रदूषण का भी कारण बन सकता है।

ऐसे नुकसान से बचने के लिए यह सलाह दी जाती है कि अधिक-से-अधिक किसान अपनी फसलों के लिए जैविक खाद का ही उपयोग करें। केंचुए की मदद से यह जैविक खाद आप अपने घर के आंगन में तैयार कर सकते हैं।

केंचुए से खाद का निर्माण सुलभ और इको फ्रेंडली

छत्तीसगढ़ के ग्राम पंचायत कोड़गार के रहने वाली तारा सोरठे ने केंचुए द्वारा जैविक खाद बनाने कि ट्रेनिंग ‘एकल विद्यालय’ संस्था से ली है। तारा ने हमें बताया कि केंचुए से बनाए गए जैविक खाद निगले हुए पदार्थ जैसे कि गोबर, घास- फूस, जैविक कचरा आदि से बनता है।

केचुआ इन पदार्थों को निगलने के बाद इनको अपनी पाचन तंत्र से पीसकर जब बाहर निकालता है, तो वह मलमूत्र खाद का रूप लेता है। केचुआ से खाद बनाने के लिए छायादार व नम वातावरण की आवश्यकता होती है। इसलिए घने छायादार पेड़ के नीचे या हवादार छप्पर के नीचे केचुआ खाद बनानी चाहिए।

जैविक खाद मतलब रसायनों से छुटकारा

तारा अब अपने घर में ही जैविक खाद बनाती हैं। यह प्रक्रिया वह अन्य ग्रामीणों को भी सिखाती हैं। उन्होंने बताया कि जैविक खाद से खेत की फसलों को कोई भी नुकसान नहीं होता  है। हमने काबू बहरा की एक और महिला, सुख्कुवर से जैविक खाद के बारे में पूछा।

उन्होंने हमें जैविक खाद के बारे में बताते हुए कहा कि जैविक खाद पौधों के लिए बहुत ही लाभदायक है। इस खाद का उपयोग अधिकतर आदिवासी क्षेत्रों में किया जाता है।

जैविक खाद को बनाने के लिए कैसे वातावरण की आवश्यकता होती है

गाँव के लोग गाय, बैल, भैंस, बकरी से गोबर इकट्ठा करके खाद बनाते हैं। इनके मल मूत्र को अपने घर की बाड़ी में लोग इकट्ठा करते हैं और अगर बाड़ी में इकट्ठा ना करें तो इसे गाँव से बाहर एक गड्ढा खोदकर माल मूत्र को उसी गड्ढे में रखते हैं।

आखिर में जब बरसात शुरू हो जाती है, तब इसे अपने-अपने खेतों पर ले जाकर रखते हैं लेकिन सीधे तौर पर इस मल- मूत्र को खेत में डालने से ज़मीन उपजाऊ नहीं होती, इसे जैविक खाद के रूप में बदलकर उपयोग में लाया जाता है।

जानते हैं जैविक खाद बनाने की विधि

केंचुए से खाद बनाने के लिए आवश्यक सामग्री

खाद बनाने की प्रक्रिया

पहले कम्पोस्ट पिट में हरी पत्तियों को बिछाया जाता है। जितन बड़ा पिट, उतनी ज़्यादा पत्तियों की ज़रूरत पड़ेगी। फिर एक बेसिन में गोबर इकट्ठा करके, उसमें थोड़ा पानी डालकर एक साथ मिलाते हैं। इस घोल को तैयार किए गए पिट में डाला जाता है।

पिट में गोबर डालने के बाद उसमें केंचुए छोड़ दिए जाते हैं। केंचुए गाँव में आसानी से प्राप्त हो सकते हैं। इसके बाद ऊपर पत्तों की और एक परत बिछाई जाती है। इसमें आप घर का ऑर्गेनिक कचड़ा डाल सकते हैं। ध्यान रहे कि कोई भी प्लास्टिक कचड़ा पिट में ना जाए। आखिर में थोड़ा सा ठंडा पानी डाला जाता है।  ठंडा पानी डालने के बाद कम्पोस्ट पिट को छाया में रख देते हैं।

छाया के लिए किसी पॉलिथीन शीट का प्रयोग कर सकते हैं। पिट को सीधे-सीधे ढ़कना नहीं है। उसे कम-से-कम 4 इंच ऊपर बना कर पॉलिथीन से ढकें या फिर बड़ी-बड़ी हरी पत्तियों के द्वारा उस पिट को ढकें। ताकि बाहर से कोई भी चिड़ियां उसमें रखे हुए केंचुए को निकाल ना पाए और उन केंचुए को ठंडक मिले।

जैविक खाद एक और लाभ अनेक

आज कल खेती-बाड़ी में बाड़ी मात्रा में रासायनिक खाद इस्तेमाल होता है, जो मृदा और हमारे और पर्यावरण के लिए हानिकारक है। अक्सर गाँव में जैविक खाद का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह खाद बहुत ही जल्दी खेतों को उपजाऊ बना देता है। यह खाद बंजर ज़मीन को भी उपजाऊ बना देता है। इस जैविक खाद का प्रयोग करने से फसल बहुत अधिक मात्रा में प्राप्त होती है।

जैविक खाद का प्रयोग हम अपने खेतों में धान, गेहूं, चना, मक्का, ज्वार इत्यादि फसलों में करते हैं। यह जैविक खाद मिट्टी को भुरभुरा बना देती है और उपजाऊ शक्ति की मात्रा बढ़ जाती है। इन सभी तत्वों का प्रयोग पौधे करते हैं, जिससे फसल बहुत अच्छी होती है।

हमें पौष्टिक फसल प्राप्त होती है। जैविक खाद का प्रयोग सिर्फ गाँव में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी किया जाता है लेकिन शहर में इन्हें पैकेट में तैयार करके बेचा जाता है। गाँव में इन्हें आसानी से घर पर ही बनाकर इस का प्रयोग किया जाता है।

जैविक खाद से फसलों को कोई नुकसान नहीं होता और ज़्यादा-से-ज़्यादा किसानों को जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए। जैविक खाद का उपयोग करके हम पर्यावरण को प्रदूषण व मृदा प्रदूषण से हमारी पृथ्वी को बचा सकते हैं।


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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