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“लॉकडाउन ने दिया माँ-पापा के साथ वक्त बिताने का मौका”

“माँ , बहुत भूख लगी है…खाना दो”

“हां बेटी, रुक”

“पापा बना रहें हैं क्या ? पापा!”

सुनने में यह कितना अच्छा और अलग लग रहा है। जी हां, वो इसलिए क्योंकि आजकल पापा अपनी परी के लिए अपने हाथों से खुद खाना बनाते हैं। एक वक्त था जब हम पापा का इंतज़ार करते रहते थे और ज़िद रहती थी कि सब एक साथ बैठकर खाना खाएं लेकिन जिन्दगी की इस भागदौर में पापा इतना व्यस्थ हो गए थे कि सुकुन के दो पल भी साथ नहीं बिता सकती थी। माँ दिनभर कामों में लगी रहती थी जिसे केवल रात में कुछ घण्टों की नींद ही मिलती पाती थी। मैं सुबह से शाम तक कॉलेज में ही रहती थी।

इस लॉकडाउन में मेरे जैसे ना जाने कितने ही लोगों को घरों में रहकर अपने परिवार के साथ भरपूर मस्ती से भरा पल बिताने का मौका दिया। यह कहानी मेरी यानी एक कॉलेज के छात्रा की है जो हमेशा अपने पढ़ाई में ही लगी रहती थी लेकिन अब पढ़ाई के साथ-साथ अपने परिवार के साथ वक्त बिताने का यह बेहद ही अच्छा मौका मिला है जिसको मैं हमेशा याद रखूंगी।

लॉकडाउन में सुकून के पल

आज दुनिया भर में कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी से लोखों लोग संक्रमित हैं और लाखों लोगों की मौत भी हो चुकी है जो बेहद चिंताजनक है। इसी को देखते हुए हमारे देश में भी पिछले लगभग 50 दिनों से लॉकडाउन है। हमने इस तालाबंदी को सकारात्मक तौर पर लिया। लॉकडाउन शुरू होने के बाद से मेरे परिवार में हर रोज़ एक नई सुबह होती है जो कई खुशियां, हंसी और मस्ती के साथ शुरु होती है।

अब सुबह उठकर कॉलेज जाने की टेंशन नहीं होती, ना ही अब मां को सुबह उठकर पापा का टिफिन बॉक्स तैयार करना पड़ता है। अब हर दिन मेरे पापा मेरे लिए नाश्ता बनाते हैं, जिसमें मैं भी पापा की मदद करती हूं। फिर हम बाप-बेटी एक साथ घर के आंगन में खुले आसमान के नीचे बैठकर नाश्ता करते हैं और साथ ही पापा के पसंदीदा गानों को सुनते हैं। वहीं शाम होते-होते माँ के हाथों की चाय और बारिश होने पर पापा का माँ से मस्ती करते हुए यह कहना कि अरे! पकौड़े होते तो मज़ा ही आ जाता, चलो चाय ही सही।

इसी मस्ती मज़ाक में अब दिन का पता ही नहीं चलता कि कैसे गुज़र जाता है। रात में पापा के हाथों से बना स्वादिष्ट खाना खाने के लिए जिस बेसब्री से मम्मी और मैं इंतज़ार करते हैं मानो किसी पांच सितारा होटल में अपने खाने का इंतज़ार कर रहे हों। फिर तीनों एक साथ बैठकर हंसी मज़ाक में खाने के पीछे वो मस्ती वाली लड़ाई करते हैं कि कौन अच्छा बनाता है? इसमें मैं समझ नहीं पाती किसकी तारीफ करुं और किसकी नहीं? मैं तो बस यही सोचती रहती हूं? इस लॉकडाउन ने मुझे मेरा बचपन याद दिला दिया।

एक खुश परिवार: प्रतीकात्मक तस्वीर

परिवार के साथ वक्त बिताना है बेहद ज़रूरी

एक तरफ उम्मीद है कि वायरस जल्द ही खत्म हो और हम सब स्वस्थ रहें लेकिन एक तरफ दुआ भी कि इस लॉकडाउन में जो मैंने अपने परिवार के साथ बहुत ही अच्छी यादें बिता रही हूं वो आगे भी बना रहे। बहुत दिनों बाद पापा को इतना खुश देख रही हूं, जो कुछ वक्त के लिए अपनी टेंशन, थकान और काम को भूलकर माँ को भी वक्त देते हैं।

मेरे साथ हर दिन कुछ-न-कुछ नई बातें करते हैं। कभी अपनी बनाई गई पेंटिंग दिखाते हैं, तो कभी अपने कुछ जीवन के रोचक अनुभवों का ज़िक्र करते हैं। अब तो घर के कामों में मैंने भी हाथ बटाना शुरू कर दिया है। इससे माँ को भी थोड़ा आराम भी मिल जाता है।

मैं बहुत खुश हूं इसलिए नहीं कि लॉकडाउन हो गया है, सिर्फ इस वजह से कि आजकल के बच्चे अपने मां-बाप को भी वक्त नहीं देते थे। स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई में इतना मग्न हो जाते हैं कि परिवार के साथ खाना खाने के लिए भी वक्त नहीं निकालते। बस अपने कमरे में ही पढ़ाई, दोस्तों और मोबाईल को अपने परिवार का सदस्य मान लेते हैं।

मैं खुद को बहुत खुश नसीब समझती हूं कि मुझे यह मौका मिला जहां मैं अपने पापा-मम्मी के साथ यह अच्छे दिन बिता रही हूं। आजकल कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो घर में रहना पसंद नहीं करते। जिनको मां-बाप के साथ रहना मानो मजबूरी लगती हो। जैसे वे किसी जेल के कैदी बन गए हो।

लॉकडाउन के चलते कुछ बच्चों के लिए यह सजा जैसी होगी, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपने घर से दूर पढ़ाई के लिए किसी नए शहर, नए माहौल में रह रहे हैं और इस कठिन समय में भी अपने परिवार से दूर होने का क्या अनुभव होता है और कितना बुरा लगता है, इसका एहसास कर रहे हैं।

कोरोना वायरस वर्तमान और भविष्य

इस महामारी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है या फिर यूं कहें कि दुनिया की तेज़ गति को रोक दिया। आज हम इस भाग दौर भरी ज़िन्दगी में खुद और अपने परिवार के लिए समय तक नहीं निकाल पाते थे, जिससे हमारे संबंधों में दूरियां होने लगी थीं। इस लॉकडाउन ने हमें अपने परिवार के साथ वक्त बिताने का मौका दिया जिससे हम अपने रिश्तों को दोबारा मजबूत बना पा रहे हैं।

काश! ऐसा हो कि मुझे हर साल कुछ महीने सिर्फ अपने परिवार के साथ वक्त बिताने का मौका मिलता, जहां सिर्फ मम्मी-पापा और मैं साथ रह पाते। शायद यह लॉकडाउन का होना मेरे और मेरे जैसे करोड़ों लोगों के लिए एक सुनहरा मौका या कुदरत की ओर से एक तोहफा जैसा है।

इस तोहफे को मैं हमेशा अपने साथ रखना चाहूंगी और उम्मीद करती हूं कि यह लॉकडाउन हमारे देश और दुनिया में कुछ दिनों के लिए एक उत्सव के रूप में मनाया जाए। जिससे हम सब को अपने परिवार के साथ सुकून के कुछ पल बिताने का अवसर मिल सके। साथ ही साथ हमारा पर्यावरण भी कुछ साफ हो सके जिसे हमने प्रदूषित कर रखा है।

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