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“पाखण्ड” के हिस्से वाह-वाही है!

सालगिरह
सिगरेट-नोश के जुमलों पर, मय-खवरों की वाह-वाही..
या मेरे मौला, तूने ये कैसी दीन-ओ-दुनिया बनाई?
 
मोहब्बत के अदद अलिफ़, बे, पे की जिन्हें समझ नहीं..
उन्हें तूने शोहरत की झूठी हरूफ-ए-तहजी सुझाई..
 
वहीँ फिर क्यों, आखिर क्यों अपने शागिर्दों को तूने..
वैशियत और बेपरवाही की गर्द दिखाई?
 
मसला ये नहीं कि शबाब और तम्बाकू का अज़ाब दोनों उसका इश्क़ हैं..
मसला ये भी नहीं की वह बेहद बेमुरव्वत है, निहायती बेफिक्र है..
 
या मौला, मसला तो तेरी “रहनुमाई” है..
जहाँ “प्रीत” के हिस्से रुसवाई और “पाखण्ड” के हिस्से वाह-वाही है!
© प्रीति महावर
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