सफेद पर्दे पर
एक रंगीन फिल्म देखने के बाद
एक दर्शक ने कहा
कश्मीरी पंडित मारे गए।
दूसरा दर्शक बोला
गुजराती मुस्लिम मारे गए।
वहां एक तीसरा दर्शक भी था
उसने धीमी आवाज़ में कहा
“हिंसा का कोई मज़हब नहीं होता।”
चुनाव के बाद पता लगा
पहले दो दर्शकों के घर की रोटी
राजनीतिक चूल्हों से तपकर आती थी
और वो तीसरा दर्शक
भूखमरी की यातना से उत्पीड़ित
बेरोज़गार था।
(पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से प्रेरित)