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शुद्ध मनोरंजन का सारा तड़का मौजूद है फिल्म RRR में

RRR रिव्यू

मौजूदा दौर में सजय लीला भंसाली के बाद एसएस राजामौली उन निर्देशकों में से एक हैं, जो अपनी कहानी को भव्यता के आवरण में शानदार तरीके से प्रस्तुत करते हैं। उनकी यह प्रस्तुती दर्शकों के ज़हन में अटक कर रह जाती है।

एसएस राजामौली की आरआरआर

एसएस राजामौली में एक और खास बात ये है कि वो दर्शकों को इमोशनली  बांध लेते हैं, जिसमें वह विज़ुअल इफेक्ट और एक्शन का भी भरपूर सहारा लेते हैं।

एसएस राजामौली और के. विजयेंद्र प्रसाद ने अपनी नई ब्लॉकबस्टर फिल्म आरआरआर(राइज़ रोर रिवोल्ट) में यही किया है। अपनी कहानी के कंटेंट को इमोशन, विज़ुअल इफेक्ट और किरदारों के अभिनय को ना सिर्फ ग्लोरिफाई किया बल्कि उसको जस्टिफाई भी किया हैअपनी कहानी के कंटेंट को इमोशन, विज़ुअल इफेक्ट और किरदारों के अभिनय को ना सिर्फ ग्लोरिफाई किया बल्कि उसको जस्टिफाई भी किया है।

क्या कहती है फिल्म आरआरआर की कहानी?

बेहद समान्य सी कहानी में किरदारों के चरित्र को जल, जंगल और ज़मीन की थीम पर इतनी खूबसूरती के साथ पिरोया गया है की बस! साथ ही किरदारों के संवाद को इतनी संजीदगी से लिखा गया है कि दर्शकों को उससे प्यार हो जाए।

1920 के दशक में दो क्रांतिकारियों के जीवन के आस-पास घूमती कहानी, जहां दोनों ही मुख्य किरदार की कहानी अंग्रेंजी हुकूमत के ज़ुल्मों से बदला और आज़ादी के लिए संघर्ष करते हुए राम और भीम के रूप में उभरती है। कहानी में पात्र इस तरह सामने आते हैं कि वो समय की सच्ची कहानी की तरह दिखने लगते हैं।

भारत की स्वाधीनता के नायक

हालांकि कहानी कुमारम भीम और अल्लुरी के संघर्षों की कहानी! जिसके बारे में सरकारी दस्तावेजों में कुछ और जनसमान्य के बीच नायकों के रूप में मौजूद है के करीब भी लगती है। कुमारम भीम और अल्लुरी सीताराम राजू कभी मिले थे इसका कोई प्रमाण नहीं है मगर भारत के स्वाधीनता में वो भी एक नायक थे, इससे कोई इंकार नहीं है।

एसएस राजामौली और के. विजयेंद्र प्रसाद ने  जनसमान्य के बीच मौजूद कहानी को देशभक्ति के उरूज़ और शानदार भव्यता के साथ प्रस्तुत किया है, जो किसी भी समय दिल-ओ-दिमाग में बोझिल होती हुई नहीं लगती है। मनोरंजन के साथ-साथ देशप्रेम की भावना को तरोताज़ा कर देती है।

क्या कहती है फिल्म?

फिल्म RRR का एक दृश्य। फोटो साभार- ट्विटर

पूरी फिल्म में जिस तरह से कहानी सुनाई गई है, वो दर्शकों की पसंद बन रही है। मध्यांतर के पहले तक कहानी दोनों प्रमुख पात्रों को जिस तरह दर्शकों  के सामने ले जाती है वो रोचक है।

छोटे-छोटे प्रसंगों से कहानी दूसरे हाफ में थोड़ी ठहरती है पर क्लाईमेक्स में फिर दर्शकों को बांध लेती है। खासकर रामचरण का भगवान राम की  तरह अंग्रेज़ों पर बाणों की वर्षा करना, दर्शकों को मोह लेता है और मनोरंजन को नई उंचाई पर ले जाता है।

एनटीआर जूनियर और रामचरण ने भीमा और राम राजू के किरदार में जान फूंक दी है। वहीं, लगता है अजय देवगन और आलिया भट्ट को हिंदी पट्टी के दर्शकों को खीचने के लिए रखा गया है मगर दोनों ने ही दमदार और परिपक्व अभिनय किया है। अंग्रेज़ों के किरदार में मार्क बेनिंगटन, ओलिविया मांरिस, रे स्टीवनसन और एलिसन डूडी ने भी अच्छा काम किया है।

ज़हरीले सांप के काटने से एक व्यक्ति मर जाता है। नायक मुक्का मार कर दीवार तोड़ देता है। किसी का पैर टूटा है तो वो कंधे पर चढ़कर भागता है और फिर हवा में छलांग लगाता है? इनके तार्किक जवाब के बारे में नहीं सोचें, तब शानदार विजुअल इफेक्ट्स और कैमरा का काम फिल्म में जान डाल देता है।

फिल्म देखी जाए या नहीं?

अपने रिलीज के बाद मात्र तीन दिन में फिल्म ने जितनी कमाई दर्ज की है, वो बताती है कि दर्शकों ने फिल्म को भरपूर प्यार दिया है। के. विजयेन्द्र और एस.एस.मौली ने जिस तरह से कहानी को प्रस्तुत किया है, उससे फिल्म का कमज़ोर पक्ष छुप जाता है।

देखा जाए तो कहानी ना ही ऐतिहासिक रूप से सटीक है और ना ही तार्किक रूप से! दर्शक के रूप में बस लोड एम एंड शूट के मोड में मज़ा लिया जा सकता है। राजामौली ने अपनी क्षमता का बेस्ट तो नहीं दिया है मगर आरआरआर दर्शकों को कहीं से निराश नहीं करती है इसलिए फिल्म को एक बार देखा जा सकता है।

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