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पत्रकारिता जगत के पूर्वाग्रहों को तोड़ रही हैं, ये उभरती हुईं युवा महिला पत्रकार

पत्रकारिता जगत के पूर्वाग्रहों को तोड़ रही हैं, ये उभरती हुईं युवा महिला पत्रकार

आज से एक-दो दशक पहले तक मीडिया में हमें गिनी चुनी महिलाओं की ही भागीदारी देखने को मिलती थी, लेकिन आज स्थिति पहले से बहुत अधिक भिन्न है। आज मीडिया जगत की ऐसी कोई कार्यश्रेणी नहीं है, जहां महिलाएं अपने आत्मविश्वास और दक्षता से मोर्चा ना संभाल रही हों।

विगत वर्षों में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट पत्रकारिता के क्षेत्र में महिला स्वर प्रखर होकर उभरे हैं। इस समाविष्टि की एक अहम वजह यह है कि पत्रकारिता के लिए जिस वांछित संवेदनशीलता की ज़रूरत होती है, वह महिलाओं में नैसर्गिक रूप से पाई जाती है।

पत्रकारिता में एक विशिष्ट संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है, जिसे कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त करने की ज़रूरत होती है और संवाद, संवेदना और समाज के समावेश के सुनियोजित सम्मिश्रण का नाम ही प्रभावी पत्रकारिता है।

विगत वर्षों में मीडिया में महिलाओं ने एक और भ्रम को प्रथम सिरे से खारिज किया है या कहें कि पूर्णतः ध्वस्त कर दिया है। एक सामान्य अवधारणा यह भी थी कि पत्रकार होने के लिए यह ज़रूरी है कि महिलाएं पुरुषों की ही तरह कपड़े पहनें या बस ‘आदेशों’ का पालन करने वाली लड़कियां हीं पत्रकार हो सकती हैं। इन खोखले और पितृसत्तात्मक संप्रत्ययों को अस्तित्व विहीन करते हुए महिलाओं ने यह साबित कर दिया, कि अपने नारीत्व का सम्मान करते हुए और कभी शालीन तो कभी आक्रामक रहते हुए और अपने काम के प्रति गौरव कायम रखते हुए भी सशक्त पत्रकारिता की जा सकती है।

लाडली मीडिया और विज्ञापन पुरस्कार मीडिया में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए ‘पॉपुलेशन फर्स्ट’ द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है। ‘पॉपुलेशन फर्स्ट’ द्वारा लाडली मीडिया अवार्ड्स 2021 की घोषणा 19 नवंबर को की गई थी। 10 भाषाओं के 98 विजेताओं को यह पुरस्कार ‘जेंडर सेंसिटिविटी’ के क्षेत्र में काम करने वाले मीडियाकर्मियों को दिया गया है।

प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया के लिए दिए जाने वाले पुरस्कारों में संपादकीय, लेख, फीचर आदि सहित 10 से अधिक श्रेणियां शामिल हैं। यह अपने आप में एक बहुचर्चित और प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसे अर्जित करना भारतीय महिला मीडियाकर्मियों के लिए एक गौरव का विषय है।

इस लेख में मेनस्ट्रीम मीडिया से परे कुछ ऐसी महिला पत्रकारों के विषय में चर्चा है, जो अपनी कलम और सोच के सौजन्य से भारतीय पत्रकारिता का उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित कर रहीं हैं।

गाँव कनेक्शन’ की नीतू सिंह को पहला लाडली अवार्ड उन्हें वेब श्रेणी में लिखी स्टोरी पर मिला है, जो कि एक पंचर बनाने वाली तरन्नुम की कहानी है। यह मल्टीमीडिया स्टोरी ‘मदर्स ऑफ इंडिया’ गाँव कनेक्शन की विशेष श्रृंखला में का हिस्सा थी, जिसमें कुछ ऐसी माँओं की कहानियां हैं, जो अपने परिवार के लिए समाज की बनी हुई सामाजिक रूढ़ियों की दहलीज़ लांघकर, ‘सामान्य’ से हटकर काम कर रही हैं।

‘गाँव कनेक्शन’ की पत्रकार नीतू सिंह

उन्हें दूसरा अवार्ड इन्वेस्टिगेटिव श्रेणी में मिला है। इस श्रृंखला में ऐसी दलित महिलाओं की कहानियां हैं, जो आज भी मैला उठाने को मज़बूर हैं। इसी मीडिया हाउस की पूर्णिमा साह को वेब फीचर श्रेणी में उनकी स्टोरी के लिए अवार्ड मिला है, जिसमें पश्चिम बंगाल की महिलाओं की सुरक्षा के लिए 24/7 टॉल-फ्री हेल्पलाइन खराब है।

फेमिनिज्म इन इंडिया (हिंदी) पर छपे लेख ‘महिला-विरोधी है ऑनलाइन शिक्षा’ के लिए हिना फातिमा, लेख ‘महिलाओं के ओर्गेस्म पर चुप्पी नहीं, बात करना ज़रूरी है’  के लिए ऐश्वर्य विजय राज,  लेख ‘नवरूणा केस: अब अपनी बेटी के अवशेष का इंतज़ार कर रहे हैं माता-पिता‘ के लिए सौम्या ज्योत्सना जैसे युवा पत्रकारों को भी लाडली अवार्ड्स दिए गए हैं। इनके छपे लेख के शीर्षक ही इस बात की गवाही देते हैं कि ये महिलाएं महिलाओं के मुद्दों को लेकर कितनी मुखर हैं।

सौम्या ज्योत्सना, युवा पत्रकार

द प्रिंट‘ की ज्योति यादव ने भी यह पुरस्कार जीता है। उन्होंने अपनी स्टोरीलॉकर रूम बॉयज टू आईटी सेल मेन: इंडियाज रेप कल्चर ग्रो विद शेम ऑर कॉन्सीक्वेंसेस‘ के लिए यह पुरस्कार जीता है। उन्हें अपनी दो खबरों के लिए ‘जूरी एप्रीसिएशन साइटेशन’ से भी सम्मानित किया गया जो ‘कैसे एक महिला अधिकारी ने एक साल से टॉयलेट में बंद 38 वर्ष रामरती को किया रेस्क्यू और ‘ग्रामीण भारत: घूंघट के भीतर से कैसी दिखती है डिजिटल दुनिया’ शीर्षक से छपी थीं।

द प्रिंट की युवा पत्रकार ज्योति यादव

इन पत्रकारों के जैसे और कई नाम हैं, जिन्होंने अपने कार्यक्षेत्र में अपनी कुशलता और प्रभावी पत्रकारिता के दम पर अपने आप को साबित किया है। भारत में मीडिया जगत पर फतह करने के लिए ऐसी हज़ारों बेटियां अपने स्कूल, कॉलेजों में अपने ज्ञान और कौशल को निखार रही हैं और अब वह दिन दूर नहीं जब मीडिया जगत में डेस्क से लेकर फील्ड तक आधी आबादी अपना कलम का कौशल दिखाएगी।

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