Site icon Youth Ki Awaaz

*बाबा साहेब की मुक्ति*

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

तारों वाली रात में, पापा किस्सा कहते

‘बाबा साहेब महामानव थे’

‘हम लोग बाबा साहब की बदौलत हैं’

और मैं ठानती रहती

एक दिन मिलूंगी ज़रूर, पापा के बाबा साहेब से

एक दिन उनका पता खोजूंगी ज़रूर !

एक नाम सुनते बढ़ा बचपन

किशोरा में आया रोमांच

और साहस की मुट्ठियां भिंचीं

आगाज़-ए-जवानी में, उसी ‌नाम के भरोसे

लड़ते रहे इसी ताबीज़ के बल

कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में

जाति के चबूतरों और उनके पंडों से,

लेकिन बचपन की पहेली,

जो बड़ी हो रही थी मेरे ही साथ

मांगने लगी मुझसे अपना हक और मुझे करना पड़ा

महाभिनिष्क्रमण

सुविधाओं के महल से

‘दलितों’ के बाबा साहेब की खोज में

मैं अंबेडकर को ढूंढने लगी, उन किताबों में

जो उनकी हैं या उनके बारे में

उन जगहों में जो अब स्मृति स्थल हैं

उन सरकारी कार्यक्रमों में

जहां उनके लोग सिर्फ पानी ढोते हैं

उन नेताओं के यहां

जो मालदार हुए, जपकर ‘बाबा साहेब’ का माला

उन अफसरों के यहां भी

जो अपने ही लोगों की रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पाते

उन बुद्धि जीवियों के यहां भी

जिन्होंने अंबेडकर का नाम लेकर जीने की बुद्धि कमा ली है

पर शिनाख्त थी कि यहां हो तो मिले

थक हार कर हमने रिपोर्ट दर्ज करा दी

उनके नाम के पोस्टर लगवाए

गुमशुदगी की मुनादी करा दी

वर्षों की खोज का नतीजा निकला

लेकिन हाय !क्या निकला?

मेरा कलेजा, धक्क से कर के बैठ गया

प्राण मुंह को आ गए

और मैं पछाड़ खा रोने लगी

जब मैंने जाना कि ‘बाबा साहेब बंदी हैं’

सब मिटे जा रहे थे,बचपन से जोड़े सपने

और जवानी के देखे ख्वाब!

जिंदगी घूमती रही, जिस एक नाम की धुरी पर

काम आया जो हर गाढ़े पर

अपनी सबसे बड़ी ‘एप्रोच’ था वो नाम

उसके इस हाल की सूचना !!!

इस देश में सब कुछ बदला

पर कभी सरकार ना बदली

चाहे तब की रही हो, चाहे अब की

बम से अधिक डरती आई

‘अंबेडकर’ और उनके लोगों, अंत में मैंने यही सोचा

जो है अब अपने भरोसे करना पड़ेगा

उनकी किताबों में, कहे उनके कथन

उन पर बीती विपदाएं, उनके अपार संघर्ष

और सबसे बढ़कर

अपने लोगों के लिए, अतुलनीय प्रतिबद्धता

को याद करके मैंने शुरू कर दी है एक दूसरी यात्रा

उनकी मुक्ति की

बुन लिया है एक नया ख्वाब

जो मुकम्मल होगा

तो बाबा साहेब के लोगों के लिए

बाबा साहेब की मुक्ति पर

यह नहीं है बात अकेले मेरे बस की

पर अब तक मिले हैं मुझे हज़ारों लोग

जिनके काम आते रहे हैं बाबा साहेब

मेरे ही जैसे बचपन से, मेरी सारी अपील मेरे अपनों से है

साथियों,

मैं बाबा साहेब को

मूर्तियों से मुक्त कराना चाहती हूं

जिनमें रहना

वे जीते जी कभी स्वीकार ना  करते

मुक्त करा देना चाहती हूं

उन तमाम अलंकारों से जिनमें जड़े जाना

उनकी देह को, कील ठोंक कर

दीवार पर चस्पा करना है, जिसमें आत्मा नहीं है

मैं बाबा साहेब को

विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरियों से निकाल कर

उनके लोगों को दे देना चाहती हूं

मैं उन्हें ले जाना चाहती हूं

उड़ीसा के कंधमाल और कालाहांडी

उत्तर प्रदेश के हाथरस और सोनभद्र

राजस्थान के दौसा और अलवर

मैं उन्हें फिर से पहुंचा देना चाहती हूं

मध्य प्रदेश के महू,

महाराष्ट्र के सतारा, नासिक, नागपुर और बंबई

और हर उस जगह, जहां वो जाना चाहते

जहां उनकी सबसे अधिक ज़रूरत है

जब उनके अंतिम हथियार

संविधान को खत्म करने की साज़िशें हो रही हैं

आजादी के अमृत महोत्सव में हमारी आज़ादी के पिता

प्यारे बाबा साहेब को

मैं आज़ाद कराना चाहती हूं।

Exit mobile version