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पत्रकारिता छोड़ बने प्रधान, अब बदल रहे है गांव की सूरत

दुनिया में अपने लिए काम करने वाले बहुत सारे लोग मिल जाएंगे, लेकिन अपने लक्जरी जीवन को छोड़ कर समाज में बदलाव के लिए खासकर गांव के विकास के लिए काम करें ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है। आज हम आपको ऐसे ही युवा की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर अपने पूरे गांव की तस्वीर ही बदलकर रख दी। पेशे से पत्रकार रहे अमित कुमार झा, लगभग साढ़े छह वर्ष तक NDTV, DD न्यूज़, Outlook जैसे संस्थान में काम करने के बाद अब ग्राम पंचायत के राजनीति में सक्रिय हैं। जब हम देश की आज़ादी की 75वीं वर्षगाठ मना रहे हैं। जिसे हमारी सरकार ने आज़ादी का अमृत महोत्सव के तौर पर मनाने का फैसला लिया है तब ये और महत्वपूर्ण हो जाता है कि अमित कुमार झा जैसे युवा जो देश के विकास में लगे हों और खासकर हमारे देश कि आत्मा कहे जाने वाले गांव के विकास के लिए प्रतिबद्ध हों, ऐसे युवाओं की कहानी को देश के सामने लाया जाना चाहिए।

अमित बताते हैं कि दिल्ली में रहते हुए उन्हें लगभग साढ़े ग्यारह साल हो गये थे। साथ ही साढ़े छह वर्षो तक विभिन्न मीडिया संस्थानों के साथ काम करने के बाद उन्हें लगा कि समाज समाज में बदलाव लाना है जो पत्रकारिता के माध्यम से संभव नहीं है। समाज में बदलाव लाने के लिए सबसे सशक्त माध्यम है विधायिका, इसलिए उन्होंने तय किया कि अब अपने सपने के अनुरूप यानी समाज में बदलाव लाने के लिए सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनेगें। फिर उन्होनें नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और सबसे पहले ये फैसला अपने कुछ खास दोस्तों को बताया। उनके दोस्त उनके स्वाभाव से परिचित थे। उन लोगों ने इस फैसले को सराहा। अंत में उन्होनें नौकरी छोड़ कर अपने सपने के अनुरूप काम करना शुरू कर दिया।

जब अमित कुमार झा नौकरी छोड़ने के बाद गांव आए तब उनके ज़ेहन में पंचायत चुनाव लड़ने का कोई ख्याल दूर-दूर तक नहीं था। किंतु गांव में उस समय पंचायत चुनाव होने वाले थे। गांव में चुनाव की ज़ोर शोर से चर्चा शुरू हो चुकी थी। इसके बाद परिस्थिति कुछ ऐसी बनी की चुनाव लड़ना पड़ा। चुनाव लड़ने की सबसे बड़ी वजह यह बनी कि पंचायत में सबसे भ्रष्ट व्यक्ति चुनाव लड़ रहे थे। जो उनके गांव से 8-9 किलोमीटर दूर किसी दूसरे गांव से मेरे गांव में चुनाव लड़ने आए थे। जिसका परिवार पंचायत की राजनीति को अपना जागीर समझता था, जो पिछले 5 साल में किसी भी तरह से वोट को जोड़-तोड़ कर चुनाव जीत जाया करते थे। तब उन्हें लगा कि “जब मैं पत्रकारिता के माध्यम से पूरे देश के लोगों लिए लड़ता हूँ तो क्यों ना अपने गांव के लिए, भ्रष्टाचार से मुक्त राजनीति के लिए लड़ा जाए। साथ ही मैंने ये भी तय किया कि इसकी शुरुआत मैं अपने गांव से ही करुँ।”

अमित बताते हैं कि पंचायत चुनाव के लिए नामांकन करने के बाद उन्होनें पंचायती राज एक्ट को विस्तार से पढ़ा फिर अपने दिल्ली में रह रहे प्रोफेसर मित्र एवं नौकरशाही में कार्यरत मित्र जो गंभीर पठन-पाठन में लगे हुए थे, उन सब लोगों की सलाह से गांव के विकास के लिए 16-17 बिंदुओं पर मैनिफेस्टो तैयार किया गया। मैनिफेस्टो देख कर गांव के लोग आश्चर्यचकित हुए। उन्हें नहीं पता था कि पंचायत चुनाव में भी ऐसा हो सकता है। क्योंकि इससे पहले पंचायत चुनाव में लोग इस तरह से मेनिफेस्टो नहीं बनाते थे।

अमित ने चुनाव जीतने के तुरंत बाद से ही अपने मेनिफेस्टो के अनुरूप काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने सब से पहले अपने ग्राम पंचायत के स्कूल में पठन-पाठन की व्यवस्था सुदृढ़ रूप से चले इसके लिए काम करना शुरू किया। बच्चों के लिए उनके मन के अनुरूप मिड-डे मील की व्यवस्था करवाई। जिसमें बच्चों के स्वास्थ का भरपूर ख्याल रखा गया। महीने में तीन चार बार अण्डे, पनीर, फल, मिठाई एवं दूध की व्यवस्था करवाई। साथ ही उनका ज़ोर सबसे अधिक इस बात पर रहा कि सरकारी विद्यालय में ज़्यादा से ज़्यादा बच्चें कैसे पुनः वापस पढ़ने आएं। जिन बच्चों ने स्कूल की खराब व्यवस्था के कारण स्कूल छोड़ कर निजी विद्यालयों में दाखिला ले लिया था। तब अमित ने अपने दोस्तों के सहयोग से अपने पंचायत के विद्यालयों में गर्मी को देखते हुए कूलर की व्यवस्था की। वे सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। इसी तरह से उन्होंने गांव के जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

उन्होंने पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री स्वर्गीय अनिल माधव दवे जो कि एक पर्यावरण प्रेमी थे। उनकी मृत्यु के बाद देश में उनके द्वारा कहे गए कुछ शब्द सामने आए थे। जिसमें उन्होंने लिखा था कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी याद में कोई स्मृति चिन्ह या सीमेंटेड टीले नहीं बनाए जाए बल्कि पेड़-पौधे लगाए जाएं। इसी से प्रेरित होकर अमित ने उनकी स्मृति में अपने पंचायत के लोगों से ही पैसे इकट्ठे कर एक पार्क डेवलप किया है। उन्होंने बताया इस कदम से हम पंचायतवासियों ने पर्यावरण प्रेमी स्वर्गीय अनिल माधव दवे जी को श्रद्धांजलि अर्पित की है। साथ ही हमने अपने मेनिफेस्टो के अनुरूप पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम बढ़ाया। यह कदम पूरे उत्तरप्रदेश में एक मिसाल के तौर पर जाना जाता है।

अमित ने बताया कि पहले जो ग्राम पंचायत में जन प्रतिनिधि चुनकर आते थे। उनके लिए विकास का मतलब सिर्फ सीमेंटेड वर्क नालियां एवं सड़क बनवाना था। अगर सड़के हैं भी फिर भी उस पर सीमेंट डलवाना होता था। नए निर्माण पर जोड़ देना, पुरानी चीज़ का उपयोग में न लाना। यही सब मुख्य कारण थे जो उनको भारी भरकम कमीशन मिला करती थी। जिससे वो ज़्यादातर इसी तरह के काम करते थे। लेकिन मेरे लिए विकास का मतलब इन सब कार्यों के आलावा जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है पर्यावरण, जल संरक्षण, बच्चों के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की व्यवस्था, लोगों को रोज़गार कैसे मिले ज़्यादा से ज़्यादा इन सब विषयों पर काम करना है। गांव में रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराना। मैंने जो वृक्षारोपण का कार्य किया है, वो पूरे उत्तर प्रदेश के पंचायतों के लिए एक उदाहरण है।

उन्होंने अपने पंचायत के लोगों को स्वरोज़गार प्रदान करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं। वे बताते हैं कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार दोनों ही महिला स्वरोज़गार के लिए स्वयं सहायता समूह चलाते हैं। लेकिन हमारे पंचायत में अब तक सिर्फ कागज़ पर इस तरह की योजनाएं लागू थीं। इसमें अब तक 18 लोग ही शामिल थे। लेकिन मेरे प्रयास के बाद से अब इस योजना के अंतर्गत 90 लोग जुड़ चुकी हैं और उम्मीद है कि इसमें और लोगों को जोड़ेंगे। सभी ग्रुप में 15,000 रुपये आ चुके है। किंतु अभी गांव में खेती का समय है जिस वजह से काम शुरू नहीं हो पाया है। लेकिन जल्द ही हम काम शुरू करने के प्रयास करेंगे।

अमित जी को उनके द्वारा उन्हीं के ग्राम पंचायत में किए कार्यों के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। जिसमें अभी हाल में ही उन्हें आईआईएमसी के एलुमिनाई एसोशिएशन ने इस वर्ष समाज सेवा के लिए इमका (immca ) अवार्ड से सम्मानित किया है। इसके अलावा इन्हें 2018 में भी इमका अवार्ड मिल चुका है। इसके अलावा ग्राम पंचायत के राजनीती में बदलाव लाने के लिए हरी कृष्ण द्विवेदी युवा पत्रकार प्रोत्साहन पुरस्कार भी मिल चुका है।

अमित अपने अच्छे खासे करियर को छोड़कर ग्राम पंचायत की राजनीती में सक्रिय हैं। लेकिन अमित को सरकार एवं समाज से कईं शिकायतें भी हैं। अमित बताते हैं कि ग्राम पंचायत के राजनीति में पढ़ें लिखें युवा नहीं आना चाहते हैं। जिसका मुख्य कारण बच्चों को स्कूल के समय से ये बता दिया जाता है कि राजनीति गंदी चीज़ है इसमें अच्छे एवं पढ़ें लिखें लोग नहीं जाते है। इसी वजह से पढ़ें लिखें युवा राजनीति खासकर ग्राम पंचायत के राजनीति में नहीं आते। दूसरी शिकायत सरकार से यह है कि ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों का वेतन सम्मानजनक नहीं मिलता है। प्रतिनिधियों को वेतन उतना भी नहीं मिलता कि वो अपनी जीविका चला सके, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि भ्रष्टाचार में संलिप्त पाये जाते है। अमित इस संबंध में सरकार से हर मंच से यह माँग करते है कि जीवन जीने के लिए लोगों को पैसे कि ज़रुरत होती है। ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों का वेतन भी लोकसभा सांसद और विधायक के वेतन की तरह सम्मानजनक मिले। जिससे वे भ्रष्टाचार मुक्त होकर बिना लोभ लालच के खुलकर काम कर पाएं और पढ़े लिखें युवा को अगर इस क्षेत्र में करियर दिखे तो ज़रूर वो समाज सेवा के लिए ग्राम पंचायत राजनीति में आएँगे।

अमित बताते है कि सरकार को ग्राम पंचायत के काम-काज करने के तरीके में बदलाव लाने की ज़रुरत है। जिसमें सबसे पहला तरीका जो सबसे अधिक ग्राम पंचायत के विकास में बाधक है वह यह है कि ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों को जो काम करने के अधिकार मिले हैं, लगभग बराबर अधिकार सरकार के द्वारा नियुक्त अधिकारियों को भी मिले हैं। यह लोकतंत्र की मूल भावना को चोट पहुचां रहा है। लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों को अधिक अधिकार मिलना चाहिए। उनका सरकार से आग्रह है कि इसमें बदलाव हो और ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों को ज़्यादा से ज्यादर अधिकार मिलें जिससे वो अपने अधिकार का प्रयोग कर विकास कार्यों को और तेज़ गति से बढ़ा सकें।

अमित ने बताया इस वर्ष देश अपनी आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है, जिसे अमृत महोत्सव के तौर पर पूरे देश में मनाया जा रहा है। इन 75 वर्ष के दौरान सरकार एवं पूर्व के ग्राम पंचाय जनप्रतिनिधि के सहयोग से पंचायत में विकास हुआ है। किंतु जिस तरह से देश के अन्य क्षेत्रों का विकास हुआ है उस तरह का विकास ग्राम पंचायतों में नहीं हो पाया है। गाँधी जी की जो ग्राम स्वराज्य की अवधारणा थी उससे हम अभी काफी दूर हैं। अमित देश के युवा से हाथ जोड़ कर निवेदन करते हुए कहते हैं कि युवा लोग भारत को बदलने के लिए एक रिस्क उठाएं और ग्राम पंचायत की राजनीति में ज़्यादा से ज़्यादा सक्रिय हों। अगर आप ये मानते हैं कि राजनीति गंदी चीज़ है, तब आप एक खाली जगह छोड़ रहे हैं। जिसमें गंदे लोग आकर जमा होंगे और वह आप पर शासन करेंगे। इसलिए आप जिन महापुरुषों को आदर्श मानते हैं उनको आदर्श मानते हुए ग्राम पंचायत की राजनीति को बदलने के लिए या जैसा आप समाज बनाना चाहते हैं उस तरह का समाज बनाने के लिए राजनीति में आइये। भारत में नए बदलाव लाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में आइये और ग्राम पंचायत और देश की राजनीति में बदलाव लाइए।

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