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बालकराम और मलूकी की कहानी…..

ये कहानी उत्तर प्रदेश के एक मध्यवर्गीय  परिवार की है जिसके मुखिया खेती-किसानी के साथ नौकरी भी करते थे। मुखिया का नाम बालकराम और उनकी पत्नी का नाम मलूकी था। बालकराम और मलूकी का बाल-विवाह हुआ था। इन दोनों से कुल दो संतानें पैदा हुई-एक लङका और एक लङकी। लङकी का नाम कामिनी था और लङके का मंगल चूंकि बालकराम सरकारी नौकरी करते थे इसलिए उसका तबादला अक्सर एक जगह से दूसरी जगह होता रहता था। मलूकी बच्चों की पढाई को लेकर बहुत चिंतित रहती थी। इसलिए उसने अपने बेटे मंगल को पढाई-लिखाई हेतु अपने मायके भेज दिया। शायद उसको पता था कि उसके पति में इतनी क्षमता नहीं है कि वह अपने बच्चों की परवरिश अच्छी तरह से कर सके। मलूकी ने कामिनी को अपने पास ही रखा। उसने कामिनी को पढाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह पढाई के प्रति गंभीर नहीं थी। मंगल को धनाभाव के कारण इंजीनियरिंग की पढाई बीच में ही छोङनी पङी थी. वह नाना के घर पर रहकर अपनी पढाई कर रहा था।

इसी बीच कामिनी गलत सौहबत में पङ गई और उसने एक छोटी जाती के लङके से, जिसका नाम शैतान सिंह था ,घर से भागकर चुपचाप शादी कर ली। कामिनी के इस क्रत्य से खानदान की इज्जत समाज में थोङी कम हुई। लेकिन बालकराम और मलूकी अपनी बेटी की खुशी के लिए घटना को भुला देते हैं। कामिनी अपने पति के साथ ससुराल चली गई। एक-दो साल तो सब कुछ ठीक चलता है लेकिन फिर कामिनी और शैतान सिंह के बीच में मतभेद पैदा हो गए। शादी के कुछ दिन बाद ही यह पता लग गया था कि कामिनी का पति निकम्मा और शराबी है, पर वह अपने पति के रंग में रंग गई। इस मामले को लेकर मलूकी चिंतित रहती थी उसे हर वक्त कामिनी के भविष्य की चिंता रहती थी। कामिनी और शैतान सिंह के अनाप-शनाप खर्चों के कारण वे आर्थिक तंगी में रहने लगे। कामिनी, शैतानसिंह पर कमाने के दबाव बनाने के बजाय, घर का खर्च चलाने के लिए अपने मायके से पैसे की मांग करने लगी। इससे कामिनी के पति को घर बैठकर खाने की लत लग गई और वह समय-समय पर कामिनी के माध्यम से अपने ससुराल पक्ष से और अधिक पैसे की मांग करने लगा। मलूकी सदैव ही कामिनी की मांग का समर्थन करती। इसका नतीजा यह हुआ कि कभी कामिनी मां से, तो कभी पिता से, कभी भाई से पैसे मांगती रहती थी। मलूकी का दबाव पूरे परिवार पर रहता कि वे सभी यथा संभव कामिनी की आर्थिक मदद करें।

कामिनी का भाई मंगल शहर आ गया और एक छोटी सी नौकरी कर ली जिससे मलूकी और बालकराम को घर चलाने के लिए कुछ आर्थिक मदद मिलने लगी। पुत्री और दामाद के मोह से उसके माता-पिता कभी ऊभर नहीं पाये इसलिए उन्होंने उसका कभी ठीक से ध्यान नहीं रखा। कई बार वह काम से आकर बिना पंखे के गर्मी में भूखा सो जाता था। दिल्ली में नौकरी करते हुए मंगल को एक लङकी, जिसका नाम पदमा था, से प्यार हो गया। पदमा पढी-लिखी, हंसमुख, एक सुसंस्कृत नौकरी-पेशा लङकी थी। मंगल ने पदमा का परिचय अपने घर बालों से करवा दिया तो उनको ये जानकर खुशी हुई कि लङकी काबिल है। लेकिन मंगल ने अपनी बहन के विवाह से संबंधित बातें और कुछ पुराने किस्से पदमा से छुपा कर रखे। 

इसी बीच कामिनी ने अपना असली चरित्र दिखाना शुरू कर दिया। उसने पदमा से भी पैसे मांगने शुरु कर दिए।  पदमा क्या करती, रिश्तेदारी जुङने जा रही थी, मना करने में उसे शर्म आती थी। वह ये भी सोचकर कामिनी को पैसे दे देती थी कि न देने पर कहीं मंगल बुरा ना मान जाये। खैर पदमा और मंगल की शादी हो गई लेकिन कामिनी ने अपना चरित्र नहीं बदला, वह लगाता अपने भाई मंगल से और पैसे मांगती रहती थी।  उधर कामिनी का पति शराब पीना शुरु कर देता है और पी कर कामिनी के साथ गाली-गलौच और मार-पीट करता है। कामिनी की जिंदगी नर्क बन जाती है।

इसी बीच कामिनी के एक लङका भी पैदा हो गया। सभी को उम्मीद थी कि उसे अब कुछ जिम्मेदारी का एहसास होगा। लेकिन ढाक पर तीन पात ही निकले। कामिनी से अब भी मायके से उधार मांगने को कहता। बालकराम, मंगल और नई-नबेली बहू पदमा कामिनी के इस आचरण से थक गए थे। अब इन तीनों का धैर्य भी जबाव दे गया था और जब ये पैसे देने से इंकार करते तो मलूकी कहती कि अगर हम ही कामिनी की मदद नहीं करेंगे तो कोंन करेगा। इस तरह वह हमेशा कामिनी की तरफदारी करती रहती और कामिनी का पति दिन ब दिन पैसों के लिए अपने ससुराल बालों पर आश्रित होता गया।

अचानक कामिनी ने अपने मायके के पुराने किस्से को छेङा और फिर लाखों रुपयों की मांग की। दरअसल समय पर उस किस्से को परिवार के सामने ना लाने की वजह से कामिनी पर लाखों का कर्ज हो गया था। लेकिन कामिनी की इस बात पर परिवार के किसी सदस्य ने यकीन नहीं किया क्योंकि बार-बार पैसे मांगने के कारण वह परिवार में अपना विश्वास खो देती है। परिवार से मदद ना मिलने के कारण वह चचेरे, मौसेरे भाईयों के पास पैसे उधार मांगने जाती है। मंगल को जब यह बात पता चलती है तो वह अपनी मां मलूकी से कहता है कि कामिनी को परिवार के बाहर मांगने की क्या जरूरत है, इससे परिवार की बदनामी होती है। इस पर भी मलूकी कामिनी का ही पक्ष लेती है और कहती है कि हम अपनी पुश्तैनी जमीन को बेच देते हैं और कामिनी का सारा कर्ज अदा कर देते हैं। मलूकी के इस प्रस्ताव से घर के सदस्यों के बीच मत-भेद उत्पन्न हो जाते हैं लेकिन वे अनमने मन से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं। हालांकि बालकराम ने बहुत पहले कभी कहा था कि मैं मंगल के साथ-साथ कामिनी को भी कुछ पैसे दूंगा। लेकिन उसको यह नहीं पता था कि उसे कामिनी की जिद के आगे झुकना पङेगा और अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर उसे पैसे देने पङेंगे।

इस कहानी से ये सीख मिलती है कि अपने बच्चों को सदैव अच्छे संस्कार देने चाहिये। उनकी शिक्षा में उचित ध्यान देना चाहिये। बच्चों को उनके पैरो पर खङा होना सिखाना चाहिये ना कि किसी का आश्रित बनाना चाहिये।

नोट-कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं, इनका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है।

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