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“स्मार्ट सिटी के बरसाती नाले जो किसी की भी जान ले सकते हैं”

भारत में कई ऐसे बड़े शहर है जो स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल तो हैं, लेकिन ज़मीन पर वह स्मार्ट नज़र नहीं आते हैं। भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजना स्मार्ट सिटी स्थानीय विकास को सक्षम और प्रौद्योगिकी की मदद से नागरिकों के बेहतर विकास, जीवन की गुणवत्ता में सुधार तथा आर्थिक विकास को गति देने के लिए एक नायाब पहल है, जिसके ज़रिए बुनियादी चीज़ों को नए सिरे से मज़बूत और बेहतर करने की कोशिश है।

क्या वाकई शहर स्मार्ट बन गए हैं?

नहीं! इन सबके बीच कई शहर आज भी स्मार्ट नहीं हुए हैं। वजह साफ है कि किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और तत्परता की ज़रूरत पड़ती है।

बिहार के मुज़फ्फरपुर शहर भले ही स्मार्ट बनने वाली सूची में हैं, परंतु ऐसा लगता है कि यहां अब तक स्मार्ट बनाने की सारी कवायद ठंडी पड़ गई है। मुख्य सड़क से लेकर गली-मुहल्लें की सड़के बरसात में देखने लायक रहती हैं।

पानी और कचरों के बीच प्रस्तावित स्मार्ट सिटी के लोग व्यवस्था को दोषी ठहराते हैं। प्रमुख क्षेत्र भगवानपुर, बीबीगंज, माड़ीपुर, जूरन छपड़ा, स्टेशन रोड, मोतीझील, मिठनपुरा, कन्हौली, रामनगर से लेकर मुशहरी तक सड़कें क्षतिग्रस्त बनी हुई हैं। थोड़ी सी वर्षा होते ही लोगों का चलना दुश्वार हो जाता है। वर्षा के दिनों में मोटरसाइकिल सवार व राहगीर सड़क पर बने गड्डे में गिरकर हाथ-पांव तोड़ लेते हैं और कई बार उनकी जान चली जाती है।

हाल ही में मिठनपुरा में एक युवक की गड्ढे में गिरकर जान चली गई। पानी भरने के बाद सड़कें बिलकुल नदी बन जाती हैं।

बारिश में शहरों में नज़ारे

बरसात के दौरान शहर का वातावरण नारकीय बन जाता है। चारों तरफ कूड़े-कचरे की वजह से बदबू आने लगती है। वातावरण बिलकुल दूषित और दम घुटने वाला हो जाता हैइस संबंध में लक्ष्मीनगर में रहने वाले हरिशंकर पाठक कहते हैं कि बरसात आते ही हमारे मुहल्ले की सड़क पर लगभग 5 फीट पानी भर जाता है, जिससे चलना-फिरना बहुत मुश्किल हो जाता है।

लोग सब्ज़ी व राशन लेने के लिए स्वनिर्मित नाव बनाकर मुख्य सड़क पर आते हैं। आने-जाने में सदा नाव डूबने का भय बना रहता है। बरसात के समय शहर के सभी नाले भर जाते हैं और उनमें से बदबू आने लगती है, पूरा वातावरण प्रदूषित और उबाऊ हो जाता है। वह आगे बताते हैं कि इसके लिए सरकारी मशीनरी तो दोषी है ही, साथ ही मुहल्लेवासी भी दोषी हैं, जो अपने घरों को चकाचक तो रखते हैं लेकिन घर के कूड़े-कचरे को सड़क और नाले में फेंक देते हैं।

शहर का कचरा किसका?

बीबीगंज का एक दृश्य।

उनके घर का काॅरिडोर व बालकोनी फूलों से सजा रहता है और सड़क पर सारे कचरे फैले रहते हैं। बीबीगंज निवासी राॅबिन रंगकर्मी कहते हैं कि आने-जाने में असुविधा तो बनी रहती है, वहीं कूड़े-कचरे की वजह से साल भर मच्छर का आतंक भी रहता है। बहुत जगह कूड़ेदान भी नहीं हैं।

जहां, कुछ जगह नगर निगम ने कूड़ेदान भी रखे हैं पर, लोगों की आदत ऐसी हो गई है कि वे कूडे़दान में कचरा नहीं डालकर बाहर ही फेंक कर चले जाते हैं। जून से लेकर अक्टूबर महीने तक जल व हवा दोनों प्रदूषित हो जाते हैं। वर्षा जनित रोगों का आतंक बढ़ जाता है। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि शहर से पहले निवासियों की सोच को स्मार्ट बनाया जाए, उन्हें स्वच्छता के प्रति जागरूक करना होगा, तब जाकर कहीं शहर स्मार्ट बनेगा

नागरिकों की ज़िम्मेदारी ज़रूरी

इस संबंध में सरकारी महकमे में काम करने वाले अजय शर्मा कहते हैं कि मोतीझील इस शहर का दिल है, लेकिन थोड़ी सी वर्षा होने पर ही यह अपने नाम के अनुरूप झील बन जाता है। ज़्यादातर बाज़ार में दुकानें, भवन निर्माण के मानकों को ताक पर रखकर बनाई गई हैं, जो एक बड़ी समस्या है। किसी भी दुकान में सामान लाने जाने के लिए ग्राहकों को सड़क किनारे साइकिल, मोटरसाइकिल और कार खड़ी करनी पड़ती है।

सबसे पहले स्मार्ट सिटी के लिए पार्किंग की व्यवस्था करनी पड़ेगी, दुकानों व भवनों को मानकों का ध्यान रखकर बनाना होगा, ट्राॅफिक के नियमों को दुरुस्त करनी होगी व सड़क किनारे कूड़ेदान की पर्याप्त व्यवस्था करनी पड़ेगी। इस कार्य को पूरा करने के लिए शहर के नागरिकों को स्वयं सुनिश्चित करना होगा कि वह इसकी सुंदरता और सौम्यता बरकरार रखेंगे

दरअसल स्मार्ट सिटी मिशन की योजना के अंतर्गत जिन प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है, उसमें प्रगति के आधार पर तीन मॉडल- रेट्रोफिटिंग, पुनर्विकास एवं हरित क्षेत्र शामिल है वहीं क्षेत्र का उत्तरोत्तर विकास, पानी और बिजली की पर्याप्त आपूर्ति, सार्वजनिक परिवहन का विकास, सुदृढ़ आईटी कनेक्टिविकटी और डिजिटलीकरण, सुशासन, ई-गवर्नेस और नागरिकों की भागीदारी, नागरिकों की सुरक्षा, बुजुर्गों, महिलाओं व बच्चों की विशेष सुरक्षा और स्वास्थ्य व शिक्षा की बुनियाद को सशक्त बनाने के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन और स्वच्छता एवं ठोस अपशिष्ट पदार्थ का उचित प्रबंधन भी शामिल है।

40 प्रतिशत आबादी शहरों में

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 31 प्रतिशत लोग शहर में बसते हैं. जिनका सकल घरेलू उत्पाद में 63 प्रतिशत योगदान है। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक भारत की कुल आबादी का 40 प्रतिशत लोग शहर में बसेंगे और जीडीपी में उनका योगदान 75 प्रतिशत तक हो जाएगा। इसको ध्यान में रखते हुए शहर की व्यापक भौतिक और आर्थिक संरचना की बुनियाद मज़बूत करना होगा।

शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, भवन निर्माण, पार्किंग, स्वच्छता, जल प्रबंधन, अपशिष्ट पदार्थों का उचित निष्पादन, पास की छोटी-छोटी नदियों की सफाई, चौराहों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, यात्रा पड़ाव का सौंदर्यीकरण एवं स्वच्छता आदि पर अधिक से अधिक फोकस करना पड़ेगा

स्वच्छता का ज़िम्मा सभी का

बहरहाल, स्मार्ट सिटी को स्मार्ट बनाने के लिए सरकार और प्रशासन के साथ साथ स्थानीय स्तर पर नागरिकों को भी सक्रियता दिखानी होगी. इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि को आगे आने और लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। स्मार्ट सिटी के लिए भौतिक व आर्थिक संरचना का सर्वेक्षण कराना और उसकी समीक्षा करना बेहद ज़रूरी होता है। स्मार्ट सिटी से पहले लोगों के विचार स्मार्ट होना लाजिमी है।

प्रत्येक मोहल्ले-कस्बों की स्वच्छता का ध्यान रखना वहां के नागरिकों का परम कर्तव्य बनता है। अतएव सरकारी स्तर पर जो भी प्रगति हो लेकिन लोगों को अपने आपसपास कूड़े-कचरों का निष्पादन और सौंदर्याीकरण का पूरा ख्याल रखना ही स्मार्ट सिटी के लिए बेहतर कदम माना जाएगा. विकास से पहले एक कदम स्वच्छता की ओर उठाना अधिक महत्वपूर्ण है

यह आलेख मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार से वरिष्ठ ग्रामीण लेखक अमृतांज इंदीवर ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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