Site icon Youth Ki Awaaz

“हैरसमेंट को आखिर गंभीरता से क्यों नहीं ले पाता है हमारा समाज?”

एडिटोरियल नोट: लेख में हमने इव टीज़िंग के स्थान पर हैरसमेंट का प्रयोग किया है। एक संस्था के तौर पर हम ऐसे किसी भी शब्दों का प्रयोग करने से बचते हैं, जो एक महिला को या किसी भी समुदाय को कमज़ोर बताए। इसलिए, जहां-जहां हैरसमेंट लिखा है, उसे इव टीज़िंग ही समझें। हैरसमेंट के संदर्भ मे पिछले ब्लॉग में मैंने अपने विचार व्यक्त किए थे, पर एकल विचार किसी भी मुद्दे की गहराई तक पहुंचने  के लिए काफी नहीं है, तो बाहर निकलकर आसपास कि स्थिति जानने का एक प्रयास किया।

भुज के कच्छ की लड़कियां

इस समय मैं भुज, कच्छ में किशोरियों के साथ काम करती हूं और उन्हीं के इर्द गिर्द मेरी दुनिया बस गई है, जिन किशोरियों से मैं मिली, वो अधिकतर भुज के स्लम विस्तार और कच्छ के कुछ गाँवों से आती हैं।

यह मुद्दा काफी संवेदनशील है और 30 किशोरियां जिनसे मैं मिली उनमें से 25 ने कोई जवाब नहीं दिया पर एक बात जो प्रत्येक किशोरी से बात करते वक्त महसूस हुई कि उनकी आंखें नीची हो गईं और बात करने की लय बहुत धीमी, जैसे कि मैंने कोई दुखती रग पर हाथ रखा हो। 

छूकर कहते हैं गलती हो गई

भुज की एक तस्वीर।

शायद उनमें से हर एक किशोरी जिसने जवाब नहीं दिया, वो कुछ कहना तो चाहती थी पर चुप्पी तोड़ना महिलाओं और किशोरियों के लिए इतना आसान कभी नहीं रहा है। अब उन किशोरियों की बात करती हूं, जो इस चुप्पी के चक्र को तोड़कर हिम्मत दिखाते हुए बात कर पाईं। 

भगवती एक किशोरी हैं, जिन्होंने स्वयं कहा, आप अनुभव साझा करते समय मेरा नाम भी लिखिएगा, मैं चाहती हूं लोग जाने कि मुझ पर क्या बीती है और किस तरह मेरा जीवन ऐसी घटनाओं से प्रभावित हुआ है। 

भगवती कोड़की की रहने वाली हैं और अक्सर काम के चलते भुज आना होता ही है। मध्यम वर्ग से आने वाली सभी किशोरियों के लिए सफर करना हो तो सार्वजनिक परिवहन सबसे अच्छा संसाधन है पर भगवती के लिए यह हमेशा काफी घबराहट से भरा होता है। वो कहती हैं, 

बस स्टॉप तक जाने के लिए भी बेशर्म होना पड़ता है।लोग बहुत घूरते हैं। बस मे कई बार ऐसा हुआ है, भीड़ का फायदा उठाकर लोग कंधे, कमर, कूल्हों पर हाथ रख देते हैं और कहते हैं गलती से हो गया

गलती से छूना और जानबूझकर छूना

गलती से छूना और जानबूझ कर छूए जाने का अंतर मुझे समझ आता है, भीड़ में घुसे मर्दों को नहीं|।

कई बार ऐसे लोगों का विरोध करने पर ये तक सुनने को मिला है कि आपको इतनी समस्या है तो अपने पापा की गाड़ी से जाया करो! बस में क्यों आते हो? मतलब? क्या लोकल बस में यात्रा करने के लिए यह सब सहना अनिवार्य है? “जो लोग मुझे अपनी नज़रों से गिराने का प्रयास कर रहे है, वो खुद कितने गिरे हुए होंगे?” मैं हर बार यह सोच कर दुखी होती हूँ!

चरित्र पर सवाल

एक और किशोरी जो की भचाऊ तालुका से हैं कहती हैं, यदि हमारे साथ किसी भी प्रकार की छेड़खानी होती है, तो इसका ज़िम्मेदार हमे ही माना जाता है। मेरे गाँव का एक लड़का जबरन मेरे पीछे पड़ गया और मुझे हर बार आते जाते फॉलो करता था। 

एक दिन उसकी हिम्मत इतनी हुई की रोक कर बोला मेरी और तुम्हारी बहुत पटेगी! मुझे अपना नंबर दो। काफी दिनों तक ऐसा हुआ, मैंने नज़रंदाज किया और कोशिश की अपने भाई के साथ बाहर आने-जाने की। जब उसने रोज़ भाई के साथ मुझे देखा तो पीछा करना छोड़ दिया पर भाई और परिवार, वालों ने मेरे चरित्र पर सवाल खड़े करने चालू कर दिए! मेरे कपड़ों की पसंद पर टोकने लगे, बाहर आने-जाने के समय पर पाबंदी लग गई और मुझे लगाम में रखे जाने के भरपूर प्रयास हुए। 

एक दिन उसकी हिम्मत इतनी हुई की रोक कर बोला मेरी और तुम्हारी बहुत पटेगी! मुझे अपना नंबर दो। काफी दिनों तक ऐसा हुआ, मैंने नज़रंदाज किया और कोशिश की अपने भाई के साथ बाहर आने-जाने की।

जब उसने रोज़ भाई के साथ मुझे देखा तो पीछा करना छोड़ दिया पर भाई और परिवार ,वालों ने मेरे चरित्र पर सवाल खड़े करने चालू कर दिए! मेरे कपड़ों की पसंद पर टोकने लगे, बाहर आने-जाने के समय पर पाबंदी लग गई और मुझे लगाम में रखे जाने के भरपूर प्रयास हुए। 

“अपने स्वाभिमान और आजादी में से किसी एक को चुनना, ये कैसी दुविधा है?”

कभी कभी मुझे समझ नहीं आता अपनी बात किस से कहूं? शायद मेरा चुप रहना ही बेहतर होता! जो लड़कियां बोलने की कोशिश करती हैं, तो दूसरे तरीकों से प्रताड़ित की जाती हैं या चुप करवा दी जाती हैं। शायद इसीलिए जितनी भी किशोरियों से बात हुई अधिकतर का जवाब चुप्पी था।

 महिलाओं पर क्रूरता के कुछ आंकड़े

महिलाओं पर होने वाली क्रूरता पर कच्छ के डेटा के अनुसार वर्ष 2017 से 2021 तक पश्चिमी कच्छ के कुल 927 व पूर्वी कच्छ में 2016 –19 तक 694 केस हैलो सखी हेल्पलाइन (KMVS संस्था) द्वारा अटरोसीटीस ऑन वुमन में विभिन्न IPC धाराओं के अंतर्गत पुलिस डिपार्ट्मन्ट में रेफर किए गए हैं। 

कच्छ में संचालित KMVS संस्था के हैलो सखी हेल्पलाइन में रजिस्टर्ड केसेस के आधार पर डेटा

जिसमें सेक्शन 354 (हैरसमेंट के संदर्भ मे) और उससे होने वाले ripple effects (जिसका ज़िक्र इस सीरीज के पिछले आर्टिकल में है) जैसे की रेप, किड्नैपिंग, अटेम्पट टू मर्डर, सेक्शन 377 मे ऐसी लड़कियां, जो अपनी यौनिकता व सेक्शुअल ओरीएन्टेशन को ज़ाहिर करने पर प्रताड़ित की जाती हैं का डेटा नीचे दर्शाने का प्रयास किया है।

कच्छ में संचालित KMVS संस्था के हैलो सखी हेल्पलाइन में रजिस्टर्ड केस के आधार पर डेटा

कच्छ में संचालित KMVS संस्था के हैलो सखी हेल्पलाइन में रजिस्टर्ड केसेज़ के आधार पर डेटा, इसकी बात कर रही हूं, वो कच्छ का पिछले 5 वर्षों का डेटा भी दर्शाने का प्रयास कर रहा है। 

हैरसमेंट जैसे संगीन जुर्म

सेक्शन 354 (ईव टीज़िंग के संदर्भ में) के इर्द गिर्द  क्या आपको एक पैटर्न दिखाई पड़ रहा है? दोनों ग्राफस में सेक्शन 354 और रेप व किड्नैपिंग के केस काफी ओवेरलेप करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। कई हद तक ऐसा लगता है की ईव टीज़िंग महिलाओं पर होने वाले गंभीर अपराधों की शुरुआती कड़ी है, क्योंकि इसे नज़रंदाज किया जाता है, अपराधियों के हौसले ज़्यादा बुलंद हो जाते हैं। 

क्या हैरसमेंट जैसे मामूली दिखने वाले जुर्म मर्डर, किड्नैपिंग जैसे संगीन जुर्मों को अंजाम दे सकता है? इसका निष्कर्ष मैं पाठकों पर छोड़ती हूं। डेटा को खंगालने के बाद एक्स्पर्ट्स की राय लेने की कोशिश की! 

मालश्री गढवी, जो कि कच्छ में महिला हिंसा केसेस की एक्सपर्ट वकील हैं, उन्होंने ऊपर दिए डेटा की पुष्टि करते हुए मेरा ध्यान POCSO व साइबर स्टॉकइंग की ओर खेचा। मालश्री कहती हैं, ऑनलाइन हरासमेंट क्राइम की संख्या भी काफी बढ़ रही है। हरेसर्स रूबरू ही नहीं ऑनलाइन भी लड़कियों व महिलाओं को परेशान करते हैं। उन्होंने कहा किशोरावस्था में लड़कियां अतिसंवेदनशील होती हैं, अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं।

ऐसे में ईव टीज़िंग उनके आत्मविश्वास पर काफी गहरा असर डालता है, वो उनके सम्पूर्ण मानसिक विकास में बाधा बनता है। लोग Protection of Children Against Sexual Offences Bill (POCSO) को लेकर इतने सजग नहीं हुए हैं और बालिकाओं व किशोरियों के साथ होने वाले हैरसमेंट को वहीं दबा दिया जाता है। बहुत सी ऐसी घटनाएं, जहां किशोरियों के साथ सार्वजनिक स्थानों पर छेड़ती की जाती है, कहीं दर्ज नहीं होते। रूबरू हुए जुर्म या हरेसमेंट की शिकायत करने में लड़कियां कतराती है। समाज, परिवार की इज्ज़त और प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए बहुत बार घर से बाहर निकालना बंद कर देती हैं या तो समाज के बंधनों में कैद हो जाती हैं।

POCSO एक्ट और लड़कियां

कच्छ में POCSO के आँकड़े देखें तो सेक्शन 354 (ईव टीज़िंग) के केस सबसे ज्यादा हैं और फिर रेप व किड्नैपिंग के। 10 से  18 वर्ष की लड़कियां जिनकी उम्र अपने सपनों के पंख भरने की होती है, ईव टीज़िंग, रेप, किड्नैपिंग का भोग बन जाती हैं। दूसरे तबके के एक्सपर्ट की राय लेने का सोचा तो पुलिस अधिकारी से बात करने की कोशिश की।

उन्होंने हैरसमेंट पर एक अनुमानित आंकड़ा तो दिया पर डिटेल और सटीक डेटा के लिए RTI फाइल करने का सुझाव दिया, उन्होंने कहा ईव टीज़िंग के लगभग 30 व रेप के लगभग 10 केस कच्छ में दर वर्ष फाइल होते हैं। लड़कियों को फॉलो करना, प्यार जाहिर करने की जबरदस्ती, अनलाइन स्टॉकिंग करना इस प्रकार के केस अधिक आते हैं। 

रूबरू हुए जुर्म या हरेसमेंट की शिकायत करने में लड़कियां कतराती है। समाज, परिवार की इज्ज़त और प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए बहुत बार घर से बाहर निकालना बंद कर देती हैं या तो समाज के बंधनों में कैद हो जाती हैं। 

कच्छ में POCSO के आँकड़े देखें तो सेक्शन 354( ईव टीज़िंग ) के केस सबसे ज्यादा हैं और फिर रेप व किड्नैपिंग के। 10 से  18 वर्ष की लड़कियां जिनकी उम्र अपने सपनों के पंख भरने की होती है, ईव टीज़िंग, रेप, किड्नैपिंग का भोग बन जाती हैं। 

FIR से कतराती लड़कियां

यह बात पुलिस अधिकारी ने भी स्वीकारी की लड़कियां FIR करने में कतराती है, जब तक कागज पर  शिकायत दर्ज नहीं होगी, पुलिस भी एक्शन कहाँ से लेगी! उन्होंने ये भी कहा की “गलती एक तरफ से नहीं होती है, लड़कियों की भी गलती होती है”

 यह सुनकर मुझे हैरानी नहीं हुई, क्योंकि बचपन से हर लड़की जो शिकायत करने का सोचती है या ऐसी कोई घटना किसी के साथ साझा करती है, कहीं ना कहीं ये वाक्य सुन ही लेती है। RTI फाइल करने से पहले सोचा सिचुऐशन को थोड़ा ज़ूम आउट होकर देखने की कोशिश की जाए, तो नैशनल स्तर के डेटा पर नजर दौड़ी। 

क्या कहती है NCRB रिपोर्ट?

*NCRB वेबसाईट पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार
NCRB (National Crime Record Bureau) के हिसाब से 2014-20 तक के आंकड़ों  के हिसाब से सेक्शन 354 के रिपल इफेक्ट क्राइमस को देखने की कोशिश की तो यहां भी कच्छ के जैसी ही एक तस्वीर नज़र आई। 
नीचे दिए ग्राफ को यदि ध्यान से पढ़ा जाए, तो समझा जा सकता है कि किस प्रकार सेक्शन 354, 509, किड्नैपिंग, रेप एक दूजे  के इर्द – गिर्द नज़र आया करते हैं। कच्छ और नेशनल स्तर के आंकड़ों को ध्यान मे रखते हुए, हैरसमेंट से होने वाले रिपल इफेक्ट की हाइपाथिसिस को आपके समक्ष रखती हूं।

 किस कदर यह मामूली माने जाने वाली हरकत महिलाओं के प्रति बड़े जुर्मों की शुरुआती कड़ी है, इसे नज़रंदाज करना उचित नहीं। सर्वाधिक रिपोर्ट होने वाले हैरसमें के केस की गंभीरता को ध्यान में लाना अति आवश्यक है।

* NCRB वेबसाईट पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 

आपका ध्यान NCRB से लिए रॉ डेटा पर भी डालना चाहूंगी।  

2015 तक सेक्शन 509 (intruding privacy of a women) के सब्सेक्शन तक रिकार्ड दिया गया है, उसके बाद से मुख्य सेक्शन पर बस कुल आंकड़े ही दिखाए गए हैं! ठीक एक साल बाद 2016 से सेक्शन 354 (outraging modesty of a women) के सब्सेक्शन्स का रिकार्ड देना भी बंद कर दिया गया।

सेक्शन 377 के तहत महिलाओं पर जो हिंसा बहुत अन्डर- रिपोर्टेड है। IT Act जो कि वर्ष 2000 व POCSO वर्ष 2012 में पारित हुए पर उनकी रिपोर्टिंग भी वर्ष 2016 से शुरू हुई। 

यहां एक सवाल बहुत तेजी से उठता है, क्या आज के समय में हैरसमेंट के न्यायिक प्रकारों से जुड़ा विवरण देना सरकार ठीक नहीं समझती? ऐसा क्या है जो हैरसमेंट का विस्तृत ब्यौरा देने से सरकार को रोकता है? डेटा में एक और परत नीचे जाएं तो 2016 एक महत्वपूर्ण साल नज़र आता है, डेटा रिपोर्टिंग के तरीके के बदले जाने के लिए।

टू मूवमेंट और हैरसमेंट

आपका ध्यान मी टू मूवमेंट जो कि साल 2017 में US से जन्मा और 2018 में भारत में काफी ज़ोर शोर से एक्शन मे आया। जब अभिनेत्री तनुश्री दत्ता और कॉमेडियन महिमा कुकरेजा ने उनके साथ हुए हैरसमेंट को सोशल प्लेटफॉर्म्स पर साझा किया,

जिसके चलते बहुत सी स्त्रियों ने उनपर बीती घटनाओं को साझा करना शुरू और यह एक चेन मूवमेंट के तौर पर उभरा। वहीं 2015 में जसलीन कौर सर्वजीत केस में जहां कोर्ट का फैसला आने से पहले मीडिया में इसका निर्णय हो चुका था। साफ तौर पर ऐसी परिस्थितियों में बहुत बार हैरसमेंट रिपोर्टिंग पर या एक्शन लेने पर महिला को कठिन प्रतिक्षेपों का सामना करना पड़ता है। 

अच्छे चरित्र का आवाज़ से रिश्ता

कहीं न कहीं ऐसी धारणा लोगों में है कि एक अच्छे चरित्र वाली स्त्री कभी आवाज़ जोर से नहीं उठाती, न ही सामने बोलती है, तो खुले में ऐसी बात कहना उसके चरित्र पर सीधा अंकुश लगा देता है। लोग उसे बिगड़ी हुई या चरित्रहीन होने का टैग दे देते हैं। 

सत्ताधारियों, विपक्षों,सामाजिक संगठनों के अधिनायकों व देश के नागरिकों से मैं यह सवाल पूछना चाहूंगी कि यह मुद्दा आपके लिए क्या मायने रखता है? अगर आपके लिए वास्तव में इसका महत्व है तो क्यों आज भी यह इतना जटिल है कि इसे रिपोर्ट करने भर से स्त्री के लिए इतनी दिक्कतें खड़ी हो जाती हैं? हमारे ही आस-पास ऐसी स्त्रियां, किशोरियां, नॉन बाइनरी समुदाय के लोग हैं, जो पीड़ित है, शोषित हैं  पर आवाज़ उठाने में असक्षम है! यहां बात केवल सरवाईवर की नहीं है, बात हमारी मानसिकता की भी है।

जब शोषण सामने हो रहा है और हम आवाज़ नहीं उठा रहे, तो एक दिन कठघरे कि जद में हमें भी आना होगा और न्यायप्रणाली  से उम्मीद बंद करनी होगी।

और यदि  न्याय चाहिए तो केवल आदर्श भरी बातें बंद करके, आवाज़ भी उठानी होगी। मूक दर्शक कि श्रेणी से बाहर निकलना होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन के अधिकार के लिए वास्तव में जगह बनानी होगी। 

Exit mobile version