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“असुर वेबसीरीज़ को ओशो से जोड़ना पूरी तरह गलत है”

असुर vs ओशो

सेक्रेड गेम्स के क्लाइमेक्स में जो गुरुजी बलिदान मांगते हैं, फिर वही गुरुजी असुर में प्रकट हुए. राइट विंग वाले इनसे परेशान हैं, क्यों ये धर्मग्रन्थों की बदनामी करने पर तुले हैं? और फिर हिन्दू धर्मग्रन्थ ही क्यों?

ओशो और असुर

ये गुरुजी हैं कौन जो इतना बुरा सोच लेते हैं? कुछ सज्जनों का मानना है कि ये और कोई नहीं भगवान रजनीश ‘ओशो’ हैं। सवाल माइथोलॉजी को तोड़ने या बेढंग से पेश करने का नहीं सवाल इस विचार पर है कि क्या मानव जनित अपराध और अराजकता के चलते कली को मारने के लिए कोई कल्कि अवतरित होगा? और सतयुग का आरंभ होगा। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ये विचार ओशो के हैं और सेक्रेड गेम्स का गुरुजी ओशो से प्रभावित था या स्वयं ओशो था। असुर इसी विचार का अगला संस्करण है मगर दरअसल इस विचार में कोई सिर पैर ही नहीं है।

ओशो जब रजनीशपुरम से अमेरिका छोड़ने के लिए निकले थे, तो अमेरिकी फोर्सेज़ द्वारा पकड़ लिए जाने के बाद उन्होंने कहा था अमेरिका हैज़ फेल्ड अ ग्रेट एक्सपेरिमेंट, इसके बाद वो मौन में चले गए, इस प्रयोग से जुड़ी कोई बात उन्होंने सार्वजनिक तौर पर नहीं की। अपने कुछ वक्तव्यों और इंटरव्यूज़ में उन्होंने ज़रूर इस बात का ज़िक्र किया है कि उनका भारत छोड़कर अमेरिका आना एक संयोग मात्र नहीं है और ये विश्वास करने योग्य भी है, क्योंकि तब तक ओशो अधिकतर यूरोपियन देशों में अपने आश्रम स्थापित कर चुके थे।

ओशो और अमेरिका

वो कहीं भी जा सकते थे तो फिर अमरीका क्यों? उन्होंने माँ आनंद शीला को व्यक्तिगत तौर पर पश्चिमी दुनिया में कोई स्थान खोजने को कहा था, ये प्रयोग वाकई हुआ होगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है लेकिन ऐसा हो सकता है पर जाएं तो नकारात्मक जवाब की कोई संभावना नज़र नहीं आती। भारत मे ओशो की सेक्रेटरी लक्ष्मी को अमेरिका आने से पहले हटा दिया जाना और आनंद शीला का पूर्णकालिक सेक्रेटरी हो जाना और ओशो के उलटबांसी सरीखे वक्तव्य इस बात की ओर इशारा करने के लिए पर्याप्त हैं कि कुछ पक ज़रूर रहा था।

एक बात जो ओशो के मन में थी और जिसे वो दुनिया के सामने साबित करना चाहते थे वो ये कि अमेरिका इक्वालिटी और ब्रदरहुड का ढोंग कर रहा है।

इंडिया और ज़्यादातर यूरोपियन देशों में उन्हें वो सामर्थ्य नहीं दिखता था, जो दुनिया को लीड कर सकें। अमेरिका के बारे में एकमात्र रिजर्वेशन जो आशो के मन मे था वो उसके ढोंगी होने को लेकर ही था। वो इस ‘ग्रेट एक्सपेरिमेंट’ से उसका भंडाफोड़ करना चाहते रहे होंगे। ये प्रयोग अमेरिका की परीक्षा था।

ओशो को लेकर कल्पनाएं

ओशो ने दिखाया कि खुली बाहों से सबका स्वागत करने वाला अमेरिका भी गोरों/अमीरों की सर्वोच्चता का ख्याल करता है। वो पैसे से अध्यात्म खरीदने वाले अमेरिका को ये कहते रहे कि जब भारतीय धर्मगुरु अमेरिका आकर उन्हें ज्ञान देते हैं, तो वो उसे खरीदना नहीं चाहते, वो दूसरे की धरती और संसाधनों पर ही अध्यात्म का मार्ग चुनते हैं। पूर्व में अपने खुलेपन से लोगों को चमत्कृत कर देने वाले भी एक धर्मगुरु का खुलापन स्वीकार नहीं कर पाए। वो फेल हुए।

मगर ये कहना कि सतयुग लाने के लिए कलियुग की तीव्रता बढ़ा दी जाए और ओशो अमेरिका में यही करने गए थे, मूर्खतापूर्ण हैं लोग और ये कपोल कल्पनाएं हैं जो देखने सुनने में जितनी भद्दी लगती हैं, सोचने पर उससे कहीं अधिक हास्यास्पद मालूम होती हैं।

ओशो का एक्सपेरिमेंट ये नहीं था, उन्होंने जो करना था वो कर चुके। वो ना खुद भ्रमित थे, ना औरों को करते थे। वेब सीरीज वाले तबतक ऐसी बातें सोच सकते हैं जबतक आरएसएस वाले उनके स्टूडियो को नहीं फूंक देतेऔर शिया-सुन्नी फसाद जनित उपद्रव से दुनिया का अंत दिखाकर सतयुग का प्रारंभ नहीं करा लेते।


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