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“सेक्स सुख के लिए हमें वेश्यालयों की ज़रूरत क्यों है?”

सेक्स पर हमारा समाज आजतक लिबरल नहीं हुआ है, क्योंकि इसके बारे में कई रूढ़िवादी सोच और जड़ता हावी हैं, जो आज की इक्कीसवीं सदी में भी छटपटाहट के साथ जी रही हैं, हालांकि इसको समय समय पर चुनौती मिलती रहती है लेकिन इसका पूरी तरह से नहीं हो पाया है।

सेक्स और संस्कृति

हमारी संस्कृति में सेक्स को कोई टैबू विषय नहीं माना गया है। हमारे इतिहास में इसके कई उत्कर्ष गाथा लिखी गई हैं लेकिन काल/खंड/परिस्थितियों के अनुसार यह ढलते चला गया है। वात्सायन की कामसुत्र और खजुराहों का मंदिर इसका साक्षी है।

सेक्स से किसी भी धर्म को कोई गुरेज़ नहीं है लेकिन इसके लिए कई विधि विधान बनाएं गए हैं, जैसे विवाह के उपरांत ही इसका लाभ उत्कृष्ट माना गया है उससे पहले वर्जित माना गया है।

सेक्स और समाज

“कहते हैं कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है” यह बात समाज पर उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि समाज सेक्स को पूरा करने के लिए निरंतर हर युग में में अपने लिए द्वार खोल कर रखता रहा है। मसलन पहले के समय में सेक्स के लिए वेश्यालयों की स्थापना की गई तथा वर्तमान में सेक्स वर्कर(यौनकर्मी) की सहायता ली जाती है, जिसे आधुनिक नगरों में कॉल गर्ल भी कहा जाता है।

प्राचीन काल में सेक्स के लिए “कामसुत्र” जैसे पुस्तकों की रचना की गई, जिसका उद्देश्य यौन शिक्षा(सेक्स एजुकेशन) को बढ़ावा देना था लेकिन आज यह स्थिति बनी है कि यौन शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है, जिसका दुष्परिणाम यह है कि आज विभिन्न प्रकार के गंभीर बीमारियों से लोग ग्रसित हो रहे हैं।

सेक्स अब विनिमय हो गया

सेक्स पहले ऑर्गेज़म की वस्तु मानी जाती थी लेकिन आज यह विनिमय की वस्तु मात्र रह गई है, क्योंकि ऑनलाइन या ऑफलाइन सेक्स हर जगह हर कीमतों पर उपलब्ध है। आज यह एक पेशा हो गया है। कई लोगों की आजीविका बन गई है, इसमें कई नामचीन हस्तियों भी शामिल हैं। हर साल अरबों डॉलर की पॉर्न इंडस्ट्री की कमाई होती है।

युवा पीढ़ी के लिए सेक्स एंटरटेनमेंट का साधन बन गया है। आज की युवा पीढ़ी सेक्स के लिए किसी भी सीमा में नहीं बंधते हैं और वो अपनी सेक्स की ज़रूरत के लिए कहीं भी और किसी भी तरह से तथा असुरक्षित यौन संबंध स्थापित कर लेते हैं, इसके लिए सामने कौन है इसकी भी कोई परवाह नहीं करते हैं।

सेक्स और फिल्म इंडस्ट्री

आज का सिनेमा दर्शकों में जागरूकता पैदा करने से अधिक उत्तेजना पैदा कर रहा है जो बेहद खतरनाक है। सिनेमा को समाज का दर्पण कहा जाता है लेकिन आज का सिनेमा स्त्री को अंग प्रदर्शन करने के लिए विवश कर रहा है, जिससे समाज में यौन उत्तेजना पैदा हो रही है। जो यौन हिंसा को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दे रहा है।

आज का साहित्य भी पाठकों को जागरूक बनाने की बजाय उनमें यौन उत्तेजना पैदा करने के लिए तैयार किया जाता है। मसलन मनोहर कहानियां, मनोरम कहानियां, सरस सलिल इत्यादि पत्रिकाओं में सिर्फ यौन उत्तेजना पैदा करने वाली विषय वस्तु का ही एकाधिकार रहता है लेकिन जागरूकता पैदा करने का नहीं ।

क्या है सेक्स?

ईश्वरीय विधान/प्रकृति का सबसे बेहतरीन कृत्य है, जिनसे मानव सभ्यता का विकास होता है और मनुष्य को मनुष्य होने की सुखद अनुभूति होती है। इसके बाद ऑर्गेज़म से मनुष्य योनि में जन्म लेने का गर्व महसूस होता है। सेक्स को किसी ने इग्नोर नही किया है चाहे वह धार्मिक मान्यताओं की बात हो या सांस्कृतिक मान्यताओं की बात हो, हर जगह सेक्स को खुले मन से स्वीकार किया गया है।

लेकिन प्रश्न यह है कि आज भी इसे लोग सम्मान के साथ क्यों जोड़ देते हैं। इसका आनंद लेने के लिए इतना संघर्ष क्यों है? इसको प्राप्त करने के लिए मनुष्य को दोहरा चरित्र की आवश्यकता क्यों है? वेश्यालयों की आवश्यकता क्यों है? कॉल गर्ल और जिगोलो की आवश्यकता क्यों है? ऑनलाइन और ऑफलाइन सेक्स की मांग क्यों है?इत्यादि जैसे गंभीर प्रश्नों के उत्तर आज अनुत्तरित है ।

भौतिक विज्ञान का नियम है कि “किसी वस्तु पर जितना दवाब अधिक होगा उस वस्तु में उछाल अधिक होगी” सेक्स के साथ भी ऐसा ही है। सेक्स सेक्स को सम्मान के साथ जोड़कर तथाकथित वर्ग ने इसे बेहद खतरनाक बना दिया है, जिसका दुष्परिणाम यह है कि आज समाज में यौन शोषण/यौन संबंध स्थापित करने में समस्या/यौन उत्पीड़न/यौन हिंसा/ यौन अपराधों में बढ़ावा/सेक्स बाज़ार में अनियंत्रित वृद्धि हो रही है।

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