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क्या भीमराव अम्बेडकर जाति विशेष के नेता हैं?

क्या अम्बेडकर जाति विशेष के नेता हैं?

 

14अप्रैल का दिन, बगल के गांव से लोग झांकी निकाल रहे थे। झांकी जैसे ही गांव के पास से गुज़री लोग कौतूहल से देखने लगे अरे यह क्या है? तभी खुद को समझदार समझने वाले एक महाशय जातिसूचक शब्द के साथ बोल पड़े, अरे कुछ नहीं आज अम्बेडकर का जन्मदिन है। इसलिए बस्ती के लोग झांकी निकाल रहे हैं।

 

अम्बेडकर को सिर्फ एक जाति से जोड़कर क्यों देखा जाता है? 

 

अम्बेडकर को जब प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया तो यह उनकी योग्यता के कारण था। जब उन्होंने संविधान का मसौदा पेश किया तो वह सम्पूर्ण भारत के लिए था न कि किसी जाति विशेष के लिए। अम्बेडकर जब रिजर्व बैंक की स्थापना में योगदान दे रहे थे तो वह सम्पूर्ण देश के लिए था। वह जब स्त्री के अधिकारों के लिए हिन्दू कोड बिल को संसद में पास कराना चाह रहे थे वह सभी हिन्दू स्त्रियों के अधिकारों के लिए था। 

 

बांध जिसको “जवाहर लाल नेहरू आधुनिक भारत का मंदिर कहते थे,” उसे बनाने में अम्बेदकरअपना योगदान दे रहे थे तो वह सम्पूर्ण देश के लिए था। मज़दूरों के काम के घंटे नियमित करने का कानून जब उन्होंने पास करवाया तो वह देश के सभी मज़दूरों के लिए था। फिर ऐसा क्यों है कि आज भी भारत में सिर्फ दलित उसमें भी कुछ ही जातियों के लोग अम्बेडकर का जन्मदिन मनाते हैं? या उनके विचारों को जानने की कोशिश करते हैं?

 

आज़ादी से पौर्व उच्च जातियों को धार्मिक बिशेषाधिकार जन्म के साथ प्राप्त हो जाते थे

 

देश के आमजन की चेतना में आज भी ‘जाति’ उसी तरह जड़ी हुई है जैसे पहले होती थी। हांलांकि उसमें कुछ ढीलापन आया है लेकिन उसका ढांचा पुरातन ही है। जाति व्यवस्था कुछ विशेष लोगों को विशेषाधिकारों प्रदान करती है। आज़ादी से पहले भी उच्च जातियां को ऐसे धार्मिक बिशेषाधिकार जन्म के साथ प्राप्त हो जाते थे। देश के आज़ाद होने के बाद वैधानिक रूप से यह विशेषाधिकार एक झटके में खत्म हो गए। अब उच्च जाति के लोग कानूनन किसी का शोषण नहीं कर सकते थे। 

 

आज़ादी के बाद दलितिं को स्थान मिलना आरम्भ हुआ

 

भारत में आज़ादी से पहले ही इसकी कुछ झलक मिलती है कि कांग्रेस और गांधी जी अछूतोद्धार कार्यक्रम से दलित जातियों में स्वाभिमान की भावना जागृत हो रही थी। दलितों का यह जन जागरण उच्च जाति के लोगों को पसंद नहीं था। जो अम्बेडकर के बाद बम्बई प्रांत में तेज़ी से बढ़ी। आज़ादी के बाद संविधान में दलित जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। जिससे वह पद जो उससे पहले सिर्फ कुछ विशेष लोगों को ही प्राप्त होते थे उन पर दलितों का भी पहुंचना संभव हो गया। 

 

दलित कानून बनाने बनाने की सर्वोच्च संस्था संसद और विधानसभा का सदस्य बन सकता था। दलित देश की नौकरशाही में जा सकता था। अब वह अपने जन्मजात कार्यों को करने के लिए बाध्य नहीं था। दलितों को मिले इन सभी अधिकारों के लिए उच्च जातियों के चेतना में एक बात बैठ गई कि उनके जन्मजात विशेषाधिकारों में कटौती का मूल कारण अम्बेडकर का लिखित संविधान है। आखिर क्या कारण है कु आज तक उच्च जाति का अधिकांश तबका अम्बेडकर को देश का सर्वमान्य नेता स्वीकार नहीं कर पाता है।

 

पिछड़ी जातियों में भी अम्बेडकर की स्वीकार्यता कम है

 

उत्तर भारत के पिछड़े वर्ग की अधिकांश जातियां अम्बेडकर को 

बस एक खास जाति का नेता मानती हैं। जाति पदानुक्रम में यह जातियां दलित जातियों से ऊपर हैं। आज़ादी के बाद भूमि संबंधो में आये‌ बदलाव के कारण दलितों पर सबसे ज़्यादा उत्पीड़न इन्हीं मध्यवर्ती जातियों ने किया। देश में अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम पारित होने के बाद दलितों ने ज़्यादातर मामलों में रिपोर्ट दर्ज कराई, जो पहले बहुत कम होता था। जिससे दोनों के सम्बन्ध में टकराहट बढ़ी। 

 

उत्तर भारत में अम्बेडकर को जन-जन पहुंचाने का काम बहुजन समाज पार्टी ने किया

 

उत्तर भारत में अम्बेडकर को जन-जन पहुंचाने का काम बहुजन समाज पार्टी ने किया जो दलित समुदाय की गोलबंदी की बात करती थी। इस पार्टी ने बड़े पैमाने पर अम्बेडकर की छवि और उनके साहित्य का प्रयोग दलितों को गोलबंद करने के लिए किया। गावों की हर दलित बस्ती में अम्बेडकर की प्रतिमा लगने लगी। 

 

जबकि बसपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी समाजवादी पार्टी का मुख्य जनाधार मध्यवर्ती जातियों का मतदाता है, जिसको पहले अम्बेडकर एक प्रतिद्वंद्वी नज़र आते थे। सपा ने पहले कभी भी अपने मतदाताओं को रिझाने के लिए अम्बेडकर की छवि का प्रयोग नहीं किया। यही कारण है कि धीरे-धीरे मध्यवर्ती जातियों में अम्बेडकर की छवि एक जाति विशेष नेता की बनने लगी। 

 

एक मुख्य कारण है कि इन मध्यवर्ती जातियों में अधिकांश जातियां आज भी शिक्षा, राजनीति और आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं। इन जातियों में शिक्षा के अभाव के कारण कभी भी इनका अम्बेडकर के साहित्य से कोई संबंध नहीं बन‌ पाया। शायद इसी लिए वह अम्बेडकर को नहीं जान सके।

 

बदलती परिस्थिति में अम्बेडकर को लेजर नज़रिया

 

आज परिस्थितियां बदल रही हैं। देश की उच्च जाति के लोग जिसका लोकतंत्र में विश्वास है वह पहले भी अम्बेडकर को मानता थे आज भी मानते हैं। आज वह दमखम के साथ संविधान और अम्बेडकर के मूल्यों के साथ खड़े है। उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछड़ी जातियां तथा उनके नेताओं ने अम्बेडकर की छवि का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। 

 

इन परिस्थिति में यह उम्मीद की जा सकती है कि पिछड़ी जातियों में भी अम्बेडकर को स्वीकार्यता मिलेगी। आज अति पिछड़ी मध्यवर्ती जातियों की पहली शिक्षित पीढ़ी अम्बेडकर से परिचित हो रही है लेकिन ऐसे लोग बहुत कम हैं। इन जातियों के राजनीतिक उत्थान में अम्बेडकर जी एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व बनकर उभरे हैं। वे “शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो” के नारे को चरितार्थ कर रही हैं। बहरहाल अभी बाबा साहेब अम्बेडकर को देश की जनता का सर्वमान्य नेता बनने में और समय लगेगा।

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