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गौरैया को बचाने के 5 तरीके

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एक वक्त था जब गौरेया (Gauraiya) का हर घर में बसेरा हुआ करता था मगर आज पक्षियों की इस प्रजाति पर काफी संकट है। आज के समय में तेज़ी से निर्माण होते भवनों के बीच लोगों को इस बात की चिंता नहीं है कि लुप्त होती गौरैया (Sparrow) को कैसे बचाया जाए। एक दौर था जब पेड़-पौधे, घर की छत, वेंटिलेटर और खिड़कियां आदि गौरैया के आशियाने हुआ करते थे लेकिन पेड़ों की कटाई, निर्माण हो रहे भवनों और लोगों में पक्षियों के प्रति कम होते स्नेह के कारण आज उन्हें भोजन-पानी मिलना भी दुश्वार हो गया है।

गौरैया की संख्या में आई है भारी कमी

एक रिपोर्ट के अनुसार, गौरैया की संख्या में 60-80 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन क्या आपको मालूम है कि यदि हमने थोड़ी सी कोशिश शुरू कर दी तो इस लुप्त होती प्रजाति को बचाया जा सकता है। आज इस आर्टिकल में हम यही जानेंगे कि ऐसा क्या करें जिससे हमारी गौरैया को आशियाना मिले, भोजन प्राप्त हो और उनकी संख्या भी बढ़े। यानि कि कैसे उन्हें हम मिलकर बचाएं। यह भी जानेंगे कि हमारी गौरैया कैसे पर्यावरण संरक्षण का भी काम करती है।

वैसे आगे बढ़ने से पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि आखिर क्यों हो रही हैं गौरैया की मौतें? पक्षी वैज्ञानिकों की माने तो घोंसला बनाने की जगह में कमी आने के साथ-साथ भोजन के लिए कीड़े और दानों की भी कमी आई है और साथ ही रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग भी उनकी जान ले रहा है। बढ़ते शहरीकरण के अलावा मोबाइल टावर्स और मोबाइल फोन से निकलवने वाले रेडिएशन से भी उनकी प्रजजन क्रिया प्रभावित हो रही है। गौरैया को बचाने की दिशा में कुछ पहल बेहद ज़रूरी हैं, जो इस प्रकार हैं।

बिल्डर्स क्या करें?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

एक चीज़ आपको पता है? चलिए मैं बताता हूं वो यह कि गौरैया को मिट्टी बहुत पसंद है और उसके साथ-साथ यदि उसमें बालू मिल जाए तो क्या कहने। इसमें बिल्डर्स की बड़ी अहम भूमिका हो सकती है। बिल्डर्स को चाहिए कि जब वे अपनी प्रोजेक्ट डिज़ाइन करें तब उनमें ग्रीन एरिया छोड़ें जहां पर बड़े आराम से गौरैया रह सकें। आपको जानकर हैरानी होगी कि मिट्टी में गौरैया को पसंदीदा कीड़े भी खाने को मिलते हैं।

बिल्डर्स को इसलिए यह सब करना ज़रूरी है, क्योंकि बड़े-बड़े अपार्टमेंट्स वे ही तैयार कराते हैं। ग्राहकों को तो फलां तारीख में बस हैंडओवर चाहिए। अब बिल्ड अप एरिया के अलावा वे चाहें तो ज़रूर ऐसी महफूज़ जगह तैयार कर सकते हैं, जहां गौरैया के साथ-साथ और भी पक्षियों को आशियाना मिले। यह काम उतना आसान नहीं है। जब भी आप किसी भी बिल्डर के पास मकान खरीदने जाएं तो अपने रिक्वायरमेंट्स में ही उन्हें बताएं कि मुझे कोई ऐसी जगह चाहिए अपार्टमेंट में जहां गौरैया के लिए बढ़िया जगह हो, मतलब ग्रीन एरिया और घोंसले हों।

घरों में हम क्या करें?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

बेहद ज़रूरी है कि गौरैया को बचाने की ज़िम्मेदारी ही सिर्फ हम अपने कंधों पर ना लें, बल्कि इसे अब एक मुहिम के तौर पर लेना शुरू करें। क्योंकि पहले से ही हम काफी देर कर चुके हैं गौरैया को बचाने की मुहिम में। अब हम सबको एक मिशन के तौर पर सोचना होगा कि छोटी सी चिड़ियां जो कई बार आपके और हमारे घर के वेंटिलेटर के अंदर रहना चाहती है मगर रहे कैसे! हममें से कईयों ने आजकल वेंटिलेटर को दोनों तरफ से पैक करना शुरू कर दिया है।

कई बार तो मैंने भी देखा है कि गौरैया के साथ-साथ बाकी पक्षियां यह सोचकर वेंटिलेटर की ओर आती हैं कि यहां रहना है, घोंसला बनाना है लेकिन वेंटिलेटर से टकराकर संतुलन खोते हुए गिरते-गिरते उड़ने लगती हैं। हमने यह सोचकर वेंटिलेटर को पैक कर दिया कि ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। मतलब वेंटिलेटर खुला ही नहीं रहेगा तो पक्षियों को बैठने का मौका कहां से मिलेगा और इसी चक्कर में बेचारी गौरैया दर-दर भटकती है, प्यास बुझाने के लिए कहीं जाती है तो वहां पानी भी नसीब नहीं होती है।

हम संकल्प लें और काम करना शुरू करें कि हमें किसी भी हाल में गौरेया को बचाना है और ज़रूर अपने घर की छत पर या किसी ऐसी जगह पर जहां पक्षियों के आने की संभावना होती है, वहां मिट्टी के बर्तन में पानी और गौरैया के लिए दाना रखें। साथ ही कोई ऐसी जगह उनके लिए छोड़ दें जहां वे आज़ाद होकर घोंसला बना सकें। तभी तो हम गौरैया को बचा पाएंगे।

पतंगों से गौरैया को बचाएं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Twittter

देखिए पतंग उड़ाना कोई बुरी बात नहीं है। जिस चीज़ से भी हमें खुशी मिले वो हमें करनी चाहिए लेकिन ध्यान रहे कि अगर हमारी खुशी से किसी को नुकसान पहुंच रहा है तो हम वो काम कतई ना करें। पतंग की डोर की ज़द में आने से पक्षियों की मौत होती है, जिनमें गौरैया भी होते हैं। दुनियाभर में 20 मार्च को गौरैया संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इस दिन सोशल मीडिया पर ‘गौरैया बचाओ आंदोलन’ अपने शवाब पर होता है लेकिन दुर्भाग्य ही कह लीजिए कि एक दिन ज़ोर-शोर से गौरैया के हित की बात करने वाला समाज महज़ कुछ ही सप्ताह में यह भूल जाता है कि हमने तो अभी-अभी ही इस पक्षी के संरक्षण के बारे में सोचा था।

बच्चे तो पतंग उड़ाएंगे ही! लेकिन एक जागरुक पैरेन्ट्स की हैसियत से हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम अपने बच्चों को शिक्षित करें और उन्हें बताएं कि पर्यावरण में पक्षियों की क्या भूमिका है। उन्हें हम बताएं कि गौरैया हमारे पर्यावरण के लिए क्यों ज़रूरी है। क्या पता डिजिटल होते इस युग में शायद समय की मांग यह बन जाए कि पतंगबाज़ी का खेल भी ऑनलाइन गेम्स में दिखने शुरू हो जाएं। चाहे जो भी हो, पहल तो करनी होगी।

नीति निर्माताओं को भी ध्यान देने की ज़रूरत

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

यह बात तो सही है कि एक नागरिक के तौर पर आप सीमित संसाधनों के साथ अपने घरों में, अपनी सोसायटी में या पक्षी प्रेमी होने के नाते पूरे शहर में मुहिम चला सकते हैं मगर क्या सभी लोगों के लिए यह मुमकिन है? अगर नहीं, तो ऐसे में सरकारों या ज़िला, प्रखंड, पंचायत और ग्राम स्तर पर नीति निर्माताओं की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

प्रोत्साहन शब्द का आपने नाम सुना होगा। उदाहरण के तौर पर खेल में कोई अच्छा खेलता है तो उसे ज़िला स्तर पर खेलने का मौका मिलता है, फिर राज्य स्तर पर और फिर नैशनल लेवल पर। ऐसे में क्या यह ज़रूरी नहीं है कि अगर गौरैया को बचाने की थोड़ी सी ज़िम्मेदारी नीति निर्माताओं के कंधे पर हो और तमाम योजनाओं के ज़रिये लोगों में जागरुकता फैलाने का काम किया जाए? ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के संदर्भ में जब सरकार जागरुकता अभियान पर करोड़ों खर्च कर देती हैं तो गौरैया के संरक्षण पर भी कुछ तो ज़िम्मेदारी सरकार की भी बनती है।

गौरैया के विलुप्त होने से क्या होगा?

एक फैक्ट आपको बताता हूं। आज से लगभग 63 साल पहले चीन ने गौरेया के खिलाफ जो क्रूरतम रवैया अपनाया था उससे किसी की भी रूह कांप सकती है। चीन ने जो गलती की थी उसका खामियाज़ा उसे अपने ढाई करोड़ नागरिकों की जान गंवाकर चुकानी पड़ी थी। 1958 में चीन के शासक ने एक अभियान चलाया जिसका नाम दिया गया 4 Pest Campaign. इस अभियान के तहत चार पेस्ट को मारने का फैसला लिया गया था।

पहला पेस्ट था मच्छर, दूसरा मक्खी, तीसरा चूहा और चौथा गौरैया। उस समय से शासक ने गौरेया को मारने के पीछे यह तर्क दिया कि यह लोगों के अनाज खा जाती है, जिससे किसानों की मेहनत बेकार हो जाती है। इस अभियान के कारण चीन में लोग भारी संख्या में मच्छरों, मक्खियों, चूहों और गौरैयों को मारने लगे। जिसने सबसे अधिक गौरैया को मारा, चीन के शासक ने उसे उतना अधिक इनाम भी दिया।

अप्रैल 1960 यानि कि महज़ दो सालों में ही चीन को अकाल के रूप में इसका परिणाम भुगतना पड़ा। गौरैया सिर्फ अनाज ही नहीं खाती थी, बल्कि उन कीड़ों को ज़्यादा मात्रा में खाती थी जो अनाज के पैदावार को खराब करने का काम करते थे। गौरैया के मरने से आलाम यह हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने की बजाए घट गई। इसके चीन में भयानक अकाल पड़ गया। इससे करीब ढाई करोड़ लोग भूख से मर गए। यह बात आपको बताने का मेरा सिर्फ इतना मकसद था कि जान लीजिए गौरैया के ना होने से क्या नुकसान हो सकता है।

पेड़ों को निर्ममता से ना काटें

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Facebook

हमने इस आर्टिकल में अभी तक मुख्य रूप से चार बातें कीं। सबसे पहले यह कि बिल्डर्स क्या करें ताकि गौरैया बचें। फिर हमने दूसरे नंबर पर बताया कि घरों में हम सबको क्या करने की ज़रूरत है और उसके बाद हमने बात की कि पतंग उड़ाने वालों को क्यों सावधान होना चाहिए और चौथे नंबर पर हमने यह भी बताया कि सरकारें क्या करें। अब पांचवे पॉइंट में हम जानेंगे पेड़ों की कटाई पर रोक के बारे में।

पेड़ों की कटाई पर रोक की जब भी बात आती है तो पर्यावरण संरक्षण के बारे में कहा जाता है लेकिन सीरियस एक्टिविस्ट्स को छोड़ दें तो शायद ही कोई कहता हो कि पेड़ों को इसलिए भी नहीं काटना चाहिए क्योंकि वहां चिड़ियां का बसेरा होता है। जी हां, और चिड़ियां के उस बसेरे में हमारी गौरैया भी होती है। जब पेड़ों की कटाई होती है तब ये गैरैये कहीं और जगह तलाशने निकल पड़ते हैं, जहां उनकी मौत भी हो जाती है।

तो पांचवें पॉइंट में मुख्य रूप से मुझे यही कहना है कि पेड़ों पर गौरैये के घोंसलों को तबाह ना करें। उन्हें भी जीने का उतना ही हक है जितना आपको और हमको है। हां इस दिशा में काम करना है तो आप रेडिमेड घोसले बनाकर पेड़ों पर लगाइए ताकि गौरैये को एक सुरक्षित आशियाना मिल सके।

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