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कादंबरी देवी और रवींद्रनाथ टैगोर की प्रेम कहानी

रवीन्द्रनाथ और कादंबरी देवी

रवींद्रनाथ टैगोर को किसी परिचय की ज़रूरत यूं तो नहीं है और यदि हम कादंबरी देवी की बात करें तो रवींद्र को जानने वालों को उसकी भी ज़रूरत नहीं! कादंबरी देवी 21 अप्रेल 1884 में जिनकी मौत हुई थी।

मैं अपनी बात करूं तो बेशक हम उन्हें जन-गण-मन यानि हमारे राष्ट्रगान से ही उन्हें जानते हैं लेकिन असल शब्दों में उसे जानना नहीं कहते। मैंने टैगोर को तब जाना जब थोड़ी बड़ी हुई! कभी किसी हिंदी अखबार, तो कभी किसी पत्रिका में उनका लिखा कोई क्वोट पढ़कर या शायद उसे याद रखकर मुझे लगा की मैंने उन्हें जान लिया है लेकिन कादंबरी देवी को जानने का मौका इस सबमें कहां था नहीं मालूम?

जैसा की हम जानते हैं रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में हुआ था और हमेशा की तरह मैं उस तारीख पर कोई लेख पढ़ रही थी, जिसकी टैग लाइन थी “अपनी सबसे अच्छी दोस्त के मरने के दुख से कभी बाहर नहीं आए रवींद्र”

मैं कई सारी किताबें टैगोर की पढ़ चुकी हूं और प्रेम वैसे भी पढ़ने से ज़्यादा महसूस किया जाता है मगर आज उनका ज़िक्र करने बैठूं वो ठीक नहीं, तो जब मैंने कादंबरी देवी के बारे में पढ़ा तो कई सारे सवाल ज़हन में उठे और एक साथ उनकी कई सारी किताबों के किरदारों और कविताओं के मुखड़ों ने मुझे जवाब दे दिए।

कौन थीं कादंबरी देवी?

कादंबरी देवी रवींद्र की भाभी थीं और रवींद्र के जीवन में सबसे ज़्यादा करीब यदि कोई था तो वो वही थीं। कादंबरी की शादी रवींद्र के बड़े भाई ज्योतिरींद्रनाथ (कहीं कहीं किताबों में यतीन्द्र भी कहा गया है) से हुई थी, जो कि उनसे उम्र में 10 वर्ष बड़े थे और जब वो पहली बार घर आईं तो लगभग 9-10 वर्ष की रही होंगी और उस समय रवींद्र थे 8 वर्ष के! मतलब दोनों में कोई खास अंतर नहीं था।

रवींद्र और कादंबरी कब अच्छे दोस्त बनें उन्हें भी नहीं मालूम था। कादंबरी ने उनके जीवन में मुख्य भूमिका निभाई। वो उनकी अच्छी दोस्त तो थीं हीं लेकिन उनके लिखने की पहली प्रेरणा भी थीं, वो उन्हे लिखने के लिए प्रेरित भी करती और उनका ख्याल भी रखतीं।

एक अनपढ़ बंगाली लड़की ने टैगोर भवन में आकर शिक्षा भी प्राप्त की और बंगाल की कई बड़ी गोष्ठियों को संबोधित भी किया, उन्हें कविता, नाटक पढ़ने का भी बेहद शौक थाऔर उनके पति एक अच्छे नाटककार और संगीतकार थे।

सुधीर कक्कड़ की किताब के आधार पर एक दोपहर जब रवींद्र कादंबरी को ज़ोर ज़ोर से किसी साहित्य को पढ़कर सुना रहे थे, यूं भी उस समय पढ़ने के लिए उनकी अपनी कविताएं या उस समय के बंगाली साहित्यिक प्रतीकों के लेखन होंगे, जैसे बंकिम चंद्र का उपन्यास बिशाब्रीक्षा (द पॉइज़न ट्री) जिसे उस समय एक लोकप्रिय पत्रिका, बंगदर्शन में क्रमबद्ध किया जा रहा था।

तभी रवींद्र ने उमस भरी दोपहरी में अपनी कविता को उन्हें सुनाया और कादंबरी उन्हें गर्मी से बचाने के लिए हाथ पंखे से ठंडी ठंडी हवा कर रही है और ए सत्यजीत रे की फिल्म चारुलता में ये सबसे यादगार दृश्यों में से एक है।

रवींद्र के गीत और कादंबरी देवी

कादंबरी देवी।

रवींद्र खुद कहते हैं कि 13 से 18 वर्ष की आयु के बीच रचित और शोइशब संगीत (बचपन के गीत) में संकलित उन्होंने कादंबरी के लिए, उनके ही बगल में बैठकर लिखा था और उन स्नेही क्षणों की सभी यादें इन कविताओं में जीवित हैं।

बाद के जीवन में, रवींद्रनाथ ने अपनी युवा कृतियों को देखा, जैसे कि उनकी पहली प्रकाशित लंबी कविता कोबीकहानी, जिसे उन्होंने 16 साल की उम्र में लिखा था, क्योंकि वे उस उम्र की रचनाएं थीं, जब एक लेखक ने व्यावहारिक रूप से दुनिया में कुछ भी नहीं देखा, सिवाय अपने स्वयं की अस्पष्ट अतिरंजित छवि के।

हालांकि, उन कृतियों के लिए सांसार का होना ना होना कोई ज़रूरी नहीं क्योंकि कादंबरी का होना पुराने कवि की स्मृति में लगभग एक उत्कृष्ट आयाम प्राप्त कर लेता है।

एंड्रयूज को लिखा पत्र

इस प्रकार, एंड्रयूज को लिखे गए पत्र में जिसमें रवींद्रनाथ भारत के लिए अपनी होमसिकनेस व्यक्त कर रहे हैं लगता है जैसे यह कादंबरी का दृश्य है, जो मैं जिबंदेबता के मुखौटे के पीछे जासूसी करता हूं, जब वह ‘मेरी पहली महान प्रेमिका-माई म्यूज’ के बारे में लिखते हैं और दुखी होते हैं।

मगर वो ये भी लिखते हैं कि

मेरी प्रिय (My Sweetheart) कहां है? जो मेरे लड़कपन का लगभग एकमात्र साथी था और जिसके साथ मैंने अपनी युवावस्था के खाली दिनों को सपनों की दुनिया के रहस्यों की खोज में बिताया? वह, मेरी रानी, ​​मर गई है और मेरी दुनिया अपने आंतरिक सुंदरता के हिस्से के लिए मेरे खिलाफ फिर बंद हो गई है जो स्वतंत्रता का असली स्वाद देती है।’

(She, my Queen, has died and my world has shut against the door of its inner apartment of beauty which gives on the real taste of freedom,”)

कादंबरी-रवींद्र के प्रेम का सच?

जैसे ही रवींद्र किशोरावस्था युवावस्था में आते है, रिश्ते के मिजाज़ में एक सूक्ष्म परिवर्तन होता है। पहला संकेत रवींद्र की याद में आता है कि वह ज्योतिरिंद्रनाथ और कादंबरी के साथ गंगा के तट पर एक छोटे से दो मंजिला घर के बगीचे में गए। बारिश शुरू हो गई है और रवींद्र ने कवि विद्यापति की कविता के लिए एक धुन तैयार की है।

‘माधुर्य से सराबोर, गंगा तट पर वह बादल दिन, वो याद करते हैं कि मैंने धुन बनाई, जब वो दोनों वापस आए, तो मैंने उसके लिए गाना गाया। वह चुपचाप सुनती रही, बिना प्रशंसा का एक शब्द बोले। मैं तब 16 या 17 साल का था। हमने छोटी-छोटी बातों पर बहस की लेकिन अब उम्र ने हमारे आदान-प्रदान ने अपनी तीक्ष्णता खो दी थी।

सुधीर कक्कड़, जिन्होंने रवींद्रनाथ पर ‘Young Tagore: The Making of a Genius’ किताब लिखी वो अपनी किताब में लिखते हैं कि रवींद्रनाथ की शादी तय हुई तो कादंबरी को यह बात अखर गई. वह नहीं चाहती थीं कि रवींद्र की शादी हो।

उन्हें लगता था कि रवींद्र की शादी के बाद उनके और रवींद्र के बीच दूरियां आ जाएंगी। मृणालिनी देवी से शादी के चार महीने बाद 21 अप्रैल, 1884 को, रवींद्रनाथ टैगोर की भाभी कादंबरी देवी ने अफीम की अधिक मात्रा लेकर आत्महत्या कर ली। कादंबरी देवी ने युवा टैगोर के जीवन में एक असाधारण भूमिका निभाई, जिससे उन्हें कई कविताएं लिखने के लिए प्रेरित किया लेकिन उनके रिश्ते को गुप्त रखा गया है। हालांकि, जो ज्ञात है, वह यह है कि टैगोर उनकी मृत्यु के बाद व्याकुल थे।

हालांकि उनकी आत्महती का रहस्य, रहस्य ही रहा लेकिन ताउम्र अपनी भाभी कादंबरी के प्रभाव में ही रहे और इस प्रेम में सच तो था ये रवींद्र के लेखन उनके पत्रों में साफ झलकता है लेकिन कादंबरी देवी की कुछ तस्वीरों के अलावा उनसे जुड़ा और कोई सच हम नहीं जानते।

नोट-रवीन्द्रनाथ टैगोर और कादंबरी देवी से जुड़े किस्से सुधीर कक्कड़, की किताब  ‘Young Tagore: The Making of a Genius’ के आधार पर लिखे गए हैं।

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