हमसे मिलने वाला हर व्यक्ति कुछ कहना चाहता है। संवाद की खूबसूरती कहने से ज्यादा सुनने में हैं। इस दुनिया में बोलने वालो की संख्या सुनने वालो से ज्यादा है। घर परिवार, मित्र, देश हर जगह सुनने और कहने से बहुत कुछ हो सकता है। रोजमर्रा के जीवन में ऐसे तमाम लोग मिलते हैं जो कुछ कहना चाहते हैं।
हालांकि सेल्फ ब्रांडिंग के इस दौर में लोगों का पूरा यत्न अपनी वीर गाथाएं बताकर लोगों को प्रभावित करना ही रहता है। ज्यादातर लोग आत्ममुग्धता से जबरदस्त पीड़ित हैं। वे ध्यान आकर्षण और प्रशंसा प्राप्त करने के लिए तमाम कुछ करने को तैयार हैं। यही उनका आत्मबल है। यही उनके कार्य का हेतु है। यह मनोदशा अत्यंत सामान्य से असामान्य बन चुके लोगों में अधिक है। नए अमीरों की तरह हर चीज की कीमत बताना, ज्ञान के पिटारे को सार्वजनिक करना आदि जबकि उन्हें भी पता है कि इंसान के व्यवहार में सब कुछ प्रदर्शित हो ही जाता है। अब लत लग गई तो लग गई।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी से इंडिया टीवी न्यूज़ चैनल के एडिटर इन चीफ रजत शर्मा जी ने एक बार कहा कि:- मुझे आपकी तरह बोलना सिखा दीजिए, तब अटल बिहारी वाजपेई का जवाब था चुप रहना और सुनना सीख लो बोलना आ जाएगा।
वो कहते हैं न कि झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फडफड़ाते है, बाज कि उड़ान मे कभी आवाज नहीं होती !
थोड़ी सी भी कोशिश हो कि कभी कोई आपसे मिले तो उसे सुनिए। आपकी सफलताओं की गाथाओं से अधिक सुकून उसे अपनी असफलताएं साझी करने पर मिलेगा। आपके प्रभाव सुनने से अधिक राहत उसे आपको अपने अभाव बताने से मिलेगी। आपका सुनना किसी का दिन बना सकता है। कभी कभी उन्ही पीड़ाओं से निकली सलाह उसके वर्ष भर की पूंजी हो सकती है और कभी कभी किसी को सुनकर धैर्य पूर्वक दी गई एक छोटी सी सार्थक सलाह उसका जीवन बदल सकती है।
मेरा दिमाग महसूस करता है, मेरे हाथ लिखते हैं और मेरी कलम आवाज़ उठाती है।