Site icon Youth Ki Awaaz

दिहाड़ी मजदूरों की ज़िंदगी के बारे में जानना है तो देखिए ‘मट्टो की साइकिल’

मट्टो की साइकिल मूवी रिव्यू

साभार ट्वीटर

हालिया रिलीज़ फिल्म मट्टो की साइकिल ने अपने कंटेंट की वजह से सभी का ध्यान आकर्षित किया है। एम गनी के डायरेक्शन में बनी फिल्म की नव यथार्थवादी दृष्टि एवम प्रकाश झा की अदाकारी इसे खास बनाती है। मट्टो की साइकिल का प्रीमियर बुसान फिल्म फेस्टिवल 2020 में ही हो चुका था।

क्या है मट्टो की कहानी?

मट्टू बने प्रकाश झा ने स्वयं से बहुत शानदार काम लिया है। आग में तपे लोहे की तरह स्थापित एक्टर के रूप में निखरे नजर वो आएं हैं, उनके अभिनय में बेबसी और लाचारी हमें भी बेबस कर जाती है।

मथुरा के करीब कस्बे में रहने वाले दिहाड़ी मज़दूर मट्टो के जीवन की धुरी उसकी साइकिल है। मट्टो रोज़ाना अपनी साइकिल पर कोसों दूर दिहाड़ी के लिए जाता है। मेहनत मज़दूरी करके परिवार का पेट पालता है। कहानी करवट लेती है। एक रोज़ मट्टो की साइकिल ट्रैक्टर के नीचे आकर बर्बाद हो जाती है। घटना के असर को आप मट्टो की लाचारी, बेबसी एवम मौन में महसूस कर सकते हैं। दूसरी साइकिल की ख़ोज फिल्म को नया अध्याय देती है। क्या मट्टो दूसरी साइकिल हासिल कर पाता है? जानने के लिए फिल्म को ज़रूर देखें।

डायलॉग से ज़्यादा बोलती फिल्म

मट्टो की साइकिल का एक दृश्य।

फिल्म दृश्यों में अधिक संवाद करती है।यह दृश्य समाज की परतों को सामने रखने वाले हैं। सराहना एम गनी की जिन्होने फिल्म को संवादों में कम दृश्यों में ज़्यादा बयान किया है। ऐसे दृश्य जिसमें भावना के साथ आक्रोश पैदा होता है। टेक्निकल दृष्टि से भी फिल्म बेहतर है। दृश्यों को अपनी संभावना में बेहतर से अच्छा फिल्माया गया है। एडिटिंग टेबल पर निराशा नहीं है।

फिल्म की जान उसकी कहानी एवम कलाकारों का काम। प्रकाश झा ने तो महफिल लूटी ही है। फिल्म की कथा -पटकथा ने प्रकाश झा को अस्सी दशक की उनकी निर्देशित फिल्म दामुल से भेंट सी करा दी है। किंतु उनके साथ काम करने वालों ने भी उम्दा अदाकारी दिखाई है। कुछ भी आरोपित नहीं लगता। सबकुछ नेचुरल मानों सारे किरदार किसी कस्बे से उठाकर कास्ट किए गए हों।

साइकिल ही जैसे रियल अभिनय है

फिल्म में मौजूद स्टोरिलाइन एवम नव यथार्थवाद विटोरियो डी सिका की कालजयी फिल्म “बायकल्स थीव्स” का स्मरण करा देते हैं। मामूली सी समझी जाने वाली गरीब मजदूर की सवारी साईकिल पर इतनी आत्मीय पेशकश किसी ने बनाने की सोची भी नहीं होगी।

पिछली बार आपने साइकिल को किसी फिल्म में कब देखा था ! भले ही कोई साईकिल को हीन सवारी मान ले लेकिन वो मट्टो जैसे करोड़ों भारतीयों की सबकुछ होती है।

जीवन का आईना लगने वाला अभिनय बेहतरीन माना जाता है। मट्टो की साइकिल में इसी किस्म के अभिनय की बानगी है। एम गनी की यह फिल्म हिंदी सिनेमा के मौजूदा दौर के बराबर में नई रेखा खींचती है। फिल्म में लोकेशन भी किरदार है। मथुरा के रियल लोकेशंस में शूट की गई में फिल्म में सबकुछ स्थानीय है। आप किरदारों को भाषा के कारण भी प्यार करेंगे। मट्टो की साइकिल एक ज़रूरी सिनेमा है। इस मिजाज़ की फिल्में को ज़रूरी में ही रखिए क्योंकि गैर ज़रूरी की आदत सी बनी हुई है।

Exit mobile version