हिंद की भाषा है हिंदी। तमाम भाषाओं-बोलियों में से एक भाषा। एक बड़ा वर्ग इसे बोलता है। अंग्रेज़ीदां कभी-कभी खिल्ली भी उड़ाते हैं। एक भाषा किसी दूसरी भाषा से ऊपर नहीं हो सकती। चाहे वह जितनी भी एलीट हो। सौ लोगों के समुदाय की किसी अबूझ भाषा को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए, जितना हिंदी या अंग्रेज़ी को और सौ करोड़ लोग भी मिलकर यदि चाहें कि वे एक भाषा को खत्म कर देंगे, तो यह सम्भव नहीं है।
भाषाएं प्रतियोगिता नहीं करतीं
भाषाएं आपस में भाषाई प्रतियोगिता नहीं करतीं। मनुष्य ने जैसे आपस में ऊंच-नीच बनाई, जाति का तिकड़म किया, वैसे ही वह भाषाई तिकड़म करके भाषाओं में भी श्रेणियां बनाना चाहता है। कई कॉन्वेंट स्कूलों में हिंदी बोलने पर बच्चों पर जुर्माना लगाया जाता है, यह सड़न अगर शिक्षक अपने घर तक ले जाए, तो उसके परिवार के अधिकतर सदस्य जुर्माना देते-देते ही कंगाल हो जाएं। पूंजीवाद भाषाओं का नुकसान करता है।
बारहवीं की सीबीएसई की अंग्रेज़ी की किताब ‘फ्लैमिंगो’ में पहली कहानी है अल्फॉन्स डुडेट की जिसका नाम है ‘दि लास्ट लेसन’, उसे ढूंढकर पढ़ें। कहानी के नैरेटर छोटे स्कूली बच्चे फ्रैंज़ को जब यह पता चलता है कि ऐसा फरमान आया है कि अब से उसकी स्कूली पढ़ाई उसकी खुद की भाषा फ्रेंच में नहीं, बल्कि जर्मन में होगी, तब वह सोचता है कि “Will they make them speak in German, even the pigeons?”– क्या वह कबूतरों को भी जर्मन भाषा में गाने को कहेंगे?
यही बात हम सबको सोचनी है
यही सवाल हम सबको खुद से करना है, जुर्माने लगाकर, रोक लगाकर, भाषा न सिखाकर आप बच्चे का भी नुकसान कर रहे हैं, भाषा का भी और मुल्क का भी। “मेरा बच्चा तो हिंदी बोल ही नहीं पाता है”– यह वाक्य आज गर्व से बोला जाता है, जिसमें रत्तीभर भी गर्व नहीं होना चाहिए। भाषाई अपंगता पर कैसा गर्व?
आज़ाद भाषाएं कभी मिटाई नहीं जा सकतीं। वह फिर-फिर लौट आएंगी। तमाम अंग्रेज़ी बोलने वालों में एक हिंदी बोलेगा और हिंदी को जिला (जिंदा)देगा। आप इसे डुबाने की कोशिश करेंगे, कोई इसका तिनका बनेगा और यह पार आकर पुनः जी जाएगी। यह देश ज़िंदगी और आज़ादी का देश रहा है। आज़ाद देश में आज़ाद भाषाएं होनी चाहिए। हिंद की भाषा ऐसी ही आज़ाद भाषा है।
आज़ाद भाषाओं का उत्थान ही होगा, पतन नहीं। हिंदी दिवस मुबारक। हिंद को हिंद की भाषा मुबारक।