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मोहब्बत क्या है ? वफा है, दगा है?

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वफ़ा या दग़ा है , सबक या सिला है?

बहुत ख़ुशनसीब है, जिन्हें ये मिला है।

ख़ुशियों के धागों में गम के हैं मोती

या कोई सहर, जिसकी शाम ही ना होती ?

ये नाता है पल का या जन्मों का किस्सा

ये वक्ति जुनू है या सांसों का हिस्सा ?

बड़ा ही है मुश्किल, आसान भी है ये

ये दिलकश भी है और नादान भी है ये।

 

बैखौफ, गुस्ताख, बेबाक है ये

खुदा की खुदाई सा भी पाक है ये।

वफ़ाओं को अपना,  नशेमन बनाकर

ज़माने की ख़ुशियों को ठोकर लगाकर

कभी कोई आंधी, जिसे छू ना पाए

वो अफसाना हम-तुम मुकम्मल बना दें।

 

सवालात इतने ज़माने के हमदम

जो रस्में मोहब्बत को मुश्किल बना दें।

ये जज़्बा जिसे इश्क कहती है दुनिया

चलो आज इसको खुदा ही बना दें।

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