क्या आप उस शहर में रहते हैं जिसमें मेट्रो चलती है? अगर हां तों घूमने के लिए, स्कूल जाने के लिए, ऑफिस और यूं ही परेशान होकर भी आप उसमें सफर ज़रूर करते होंगे, यू तो आम यात्री की तरह ही मेरी भी मेट्रो से काफी सारी यादें जुड़ी हुई हैं, कभी दोस्तों के साथ की मीठी यादें, कभी एग्जाम और इंटरव्यू देने की जल्दबाजी में पकड़ती मेट्रो की तों कभी सुबह – सुबह आसपास के सभी यात्रियों की आखों में आती नींद की यादें!
मैं एक पत्रकार हूं और ज़्यादातर सफर के लिए मेट्रो इस्तेमाल करता हूं, मेरे बैग में मेरी चैनल आईडी जिसको आप लोग माइक कहते हैं, एक ट्राईपोड और सेल्फी स्टिक जैसी चीज़े रहती है। अक्सर जब भी मैं चेक-इन करके निकलता हूं, तब सम्मान जांच मशीन पर बैठा सुरक्षाकर्मी मुझे एक अलग नज़रों से ज़रूर देखता है, कितनी बार वो कह देते है की दिखाओ!! क्या – क्या है?
आज कुछ अलग हुआ, अलग ये की जब मैं दिलशाद गार्डन मेट्रो पर सुरक्षा जांच के लिए रुका तों वहां बैठे सुरक्षाकर्मी ने पूछा इसमें माइक है? मैंने जवाब दिया हां! , जिसके बाद वो कहने लगे आप पत्रकार हो मैंने फिर जवाब दिया हां. फिर उन्होंने कहा की यहां आसपास कोई स्टूडियो हैं क्या?
मैंने बोला कौनसा स्टूडियो तब उन्होंने मुझे बताया की उनको कोरियोग्राफी और एक्टिंग का काफी शौक है और वो अपने इस जज्बे को मारना नहीं देना चाहते, हम दोनों कों बात करता देख वहां अन्य सुरक्षाकर्मी भी आ गए और हमारी बाते सुनले लगे।
उन्होंने कहा की आपकी कोई जान – पहचान हैं, तों मैंने मना कर दिया जो सच भी हैं और होता भी तों शायद इनकी मदद हो जाती पर फिर भी मैंने उनका नंबर ले लिया, उनसे सिर्फ मेरी 10-15 मिनट बात हुई. पर एक बड़ी सीख जो मिली वो ये की आपको कभी भी अपना पैशन मरने देना नहीं चाहिए