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“हमारे यहां 6-7 बरस में ही छोरियों की मुस्कान चली जाती है”

हमारे यहां छः-सात बरस की होते ही

छोरियों की मुस्कान चली जाती है,

उनकी चहकती हंसी

एक मासूम मायूसी में बदल जाती है।

हमारे यहां छोरियां ज़्यादा हंसा नहीं करती

ज़्यादा हंसी तो भाई रोई

ज़्यादा बोली तो मानस-खाणी

हमारे यहां नौ दस बरस की होते ही

छोरियों की आवाज़ दबी दबी हो जाती है।

नीम पर बैठी गौरिया भी

फिर उनकी खिल्ली उड़ाती है

और फिर फुर्र उड़ जाती है।

हमारे यहां

ग्यारह बारह बरस की होते ही

छोरियों की गुथ लम्बी हो जाती है और सपने छोटे

अरी बाल ना कटाओ, पर कटी हो जायेगी

ज़्यादा मत पढ़ाओ हवा में उड़ने लगेगी

घर का काम कराओ, शादी कैसे होगी

कुरता सलवार पहनाओ, बदनामी होगी

ज़्यादा मत खिलाओ

सांडनी बनेगी, फिर गुर्रायेगी।

हमारे यहां

तेरह चौदह बरस की होते ही

छोरियां अकेले बाहर नहीं जाया करती

सात बरस का एक भाई कोतवाल बन जाता है

साठ बरस का एक ताऊ, उसका पहरेदार

और सारा गाँव

उसका स्वघोषित भेदिया

लेकिन फिर भी

हमारे यहां

छोरियाँ…

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