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“सच के सहारे राजनीति करने वाले आज कहां हैं?”

बगावती बुद्ध ने राजा का महल छोड़कर गरीब बने और गरीब बनकर तात्कालिक राजनीति को धर्म से हटाकर कर्म से जोड़ने का प्रयास किया।

बुद्ध को भगवान बनाने के लिए कलाडी (केरला) में आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया। उक्त महापुरुषों ने झूठ स्वतः एक पाप है, जिसका बहिष्कार होना चाहिए। यहीं बुद्ध और शंकराचार्य कहते कहते जिस मिट्टी में जन्म लिए,उसी का वो लोग हो लिए।

उनके सहारे राजनीति करने वाले कहां?

दोनो में आस्था रखने वाले लोग,उनके सहारे राजनीति करने वाले लोग करिंदे है,जो सत्य से कोसों दूर और असत्य के बगल में खड़े है। बुद्ध ने समस्या के समाधान के लिए संयम से काम लिया,जब किसी ने बुद्ध से पूछा की भगवान कहां हैं ?बुद्ध चुप रह जाते थे। आदि शंकराचार्य ने लगभग 30 साल की उम्र में जो पीठ उन्होंने बनाई, उसी के अंदर का भारत रह गया,बाकी का भारत बदल गया,बाहर चला गया।

आदि शंकराचार्य का भारत झूठ को नए तेवर में प्रभाषित कर रहा है।धर्म और कर्म दोनो मिलकर देश को आबादी से लाद रहे है।आबादी के लिए अस्पताल तो लगभग हर जिले में अंग्रेजों ने बनवाया,थोड़ा बहुत दवा कांग्रेस ने दिया।

35 से 135 करोड़ तक

आज सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकल गई तो अस्पताल से दवा भी छू मंतर हो गई।सत्ता तो बहुत नए लोगो को जनता ने दिया पर समस्या जस की तस रह गई। आज़ादी के समय आबादी 35 करोड़ थी आज 135 करोड़ है। आज़ादी के बाद लगभग हर गाँव में पाठशाला बनी पर आज बच्चों के पढ़ने के लिए कुर्सी टेबल नही है।

लोगों ने अपनी आस्था के अनुरूप अपना एक नया धर्म बना लिया या अपना लिया पर समस्या और विकराल होती गई। राजनीति बहुत आसान हो गई। इस्लाम ने सनातन को हिंदू बना दिया। समय के साथ इस्लाम भी शिया और सुन्नी में विभक्त हो गया। लोग उपासना(मंदिर मस्जिद)को छोड़कर सड़क पर भगवान और खुदा को खोजने लगा।टर्की इस्लामिक होते हुए पैंट और टाई में आ गया। कमाल पासा कुरान को अंग्रेजी में अनुवाद करवा दिया। समय ने कमाल पासा को समय से आगे का हीरो कह दिया।

उसी समय ने ईरान को लड़कियों से लगभग हरा दिया।बुर्का नही पहनेंगे यह आवाज बुलंद करते हुए लड़कियां गोली खा कर शहीद हो रही है।

भारत के मंदिरों में दलित प्रवेश वर्जित है।इससे अच्छा धर्म क्या होगा….जहां गांधी, अंबेडकर,लोहिया,जेपी और राजनारायण जी खूब लड़ें।मस्जिद में हिंदू जाता है, पर मंदिर में मुसलमान नही जाता। यहीं आधुनिक व्याख्या है।यहीं वर्तमान राजनीति है।

इसीलिए जब मैं कहता था कि राष्ट्रीय सरकार बनाने जैसे विकल्प पर सोचिए,पर लोग नही सोच रहे है।आज मैं कह रहा हूं की गांव का विकास गांव के लोगो स! धन से हारने वाला गरीब नही होता,मन से हारने वाला वाकई गरीब होता है,क्योंकि मन ही तो है जो भारत को भारत बनाता है।

मन ही तो है जो ईमानदार कलेक्टर से लेकर प्राइमरी स्कूल का अध्यापक बनाना चाहता है। पूरा देश में पैदल चलना चाहता है। गाँव के जीवन से दिल्ली की संसद में गुज़ारना चाहता है। शहर से बेहतर गाँव हो उसके लिए सपना देखता है। कुटीर उद्योग ही मन के माफिक काम देता है,जो सदियों से आदमी करता आ रहा है।

अतः जीने के लिए स्वस्थ मन चाहिए। मन स्वस्थ रहे उसके लिए हाथ को काम चाहिए।राजनीति के पैसा चाहिए,वो तुम्हारे पास है ही नही क्योंकि तुम धन से गरीब हो। धन छोड़ो मन को बड़ा करो, बुद्ध बनोगे,आदिशंकराचार्य बनोगे,महावीर बनोगे,गांधी बनोगे,जेपी बनोगे।

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