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“मेरा सवाल ये है कि क्या बिना शराब के कोई पार्टी नहीं हो सकती?”

देश जिस गति से प्रगति व विकास कर रहा है। उसी तेजी से लोगों का जीवन स्तर में परिवर्तन भी हो रहा है और परिवर्तन के इस काल में हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति विलुप्त होती जा रही है। भौतिक सुख-सुविधा में हम इतना लीन हो गए हैं कि अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई आदर्शों को पैर तले रौंदते जा रहे हैं।

शराब का बढ़ता चलन

आज के सामाजिक परिवेश में जिस तरह जुआ, परिवारिक-कलह, बलात्कार, अपराध आदि तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण समाज में शराब व अन्य नशीली पदार्थो का बढ़ता सेवन काफी हद तक जिम्मेदार है। वर्तमान समय में शराब से समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं है और युवा वर्ग में शराब के प्रति दिलचस्पी देखने को बनती है।

यूं कहे तो शराब आज का एक नया लाइफस्टाइल बन गया है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा।

यदि आप किसी भी प्रकार के गम या मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं तो शराब को आजमा कर देख सकते हैं। और यह बातें तब और सच्ची लगती है जब किसी का प्रेम संबंध टूट गया हो, ऐसे लोगों को शराब से अच्छी दवा और कुछ भी नहीं दिखता है। ऐसी ढेर सारी घटनाएं अपने अगल-बगल खूब देखने को मिलती हैं।

शराब ना पीए ऐसा भला कौन है?

शराब की गैरमौजूदगी में किसी भी प्रकार की पार्टी, रिसेप्शन आदि बिल्कुल अधूरा सा लगता है। इस पार्टी के दरमियान यदि कोई मित्र शराब पीने से मना कर दे तो बाकी के दोस्त उसे ऐसे नज़रों से देखते हैं, मानो कि वह किसी दूसरे गोले का व्यक्ति है।

“बस आज की बात तो है यह दिन फिर कभी नहीं लौट के आने वाले!” ऐसे अनेक प्रकार की मनगढ़ंत बातें शुरू हो जाती है और हद तो तब हो जाता है, जब शराब जैसी चीज पर दोस्ती-यारी की भी कसमें शुरू हो जाती हैं और अंतत: वह व्यक्ति जो दूसरों को शराब से दूर होने का सलाह देता रहा आज उसी शराब को गले लगा लेता है। 

दोस्ती-यारी के नाम पर यह छोटी-छोटी गलती एक दिन आदत में बदल जाती है। इस दुष्परिणामी शराब की आदत कब व्यवहार में बदल जाए पता ही नहीं चलता है।

शराब की वजह से प्रतिदिन व्यापक स्तर पर सड़क दुर्घटना, घरेलू हिंसा, अपराध जैसे दुष्परिणाम देखने व सुनने को मिलते रहते हैं। भारत देश में पुरुषों द्वारा की गई लगभग 63% घरेलू हिंसा का ज़िम्मेदार शराब ही है और शराब जैसी नशीली पदार्थ अनेक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का भी जड़ बन जाती है। यह सब जान कर भी हम शराब जैसी नशीली पदार्थ की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं।

सवाल यह है कि क्या बिना शराब पार्टी नहीं हो सकती?? बिना शराब हमारा मानसिक तनाव दूर नहीं हो सकता?? या हम ये मानले “बिन शराब सब सून”।

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