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******वाउचर का बाजार******

बाजार की चकाचौंध और स्कीम से प्रभावित होकर एक वाउचर का उपयोग करने वह अपनी महबूबा को बुलाकर कॉफी पिलाने और शॉपिंग कराने जा निकला

सोच रहा था “60% ऑफ है,तो कितना महंगा होगा आखिर बड़े से बड़े होटल में भी काफी 500 से ज्यादा तो नहीं होगी”

दूसरा वाउचर हॉलीडे के लिए होटल बुक करने का था जिसमें 7500/ ऑफ थे उसे देखकर सोच रहा था “अच्छा से अच्छा होटल 1500 में बुक हो जाता है,बहुत बड़े होटल में जायेंगे तो भी 5000/ से ज्यादा नहीं लगेगा,7500 में तो होटल वाला वापस भी करेगा कुछ”

इसी हिसाब से वह पहले काफी की उसी वाउचर पर दर्शाई कंपनी का पता खोजते हुए,पैसिफिक मॉल में जा पहुंचा, अंदर पहुंचकर काफी पीने बैठा तो ऐसा लगा जैसे उसे सब लोग घूर रहे हों, उसने गौर से काफी सेंटर के दीवाल रूपी आईने में झांका तो देखा वह देखने में तो सही ही लग रहा था, हां दूसरों को तुलना में थोड़ा सा गांवटी जरूर प्रतीत हो रहा था लेकिन इससे क्या, वह जानता था दिल्ली में कितना भी स्टैंडर्ड बना लो यहां के लोगों से मैच हो ही नहीं पाते, फिर उसने अपनी महबूबा को देखा वह भी पारंपरिक कपड़े पहने हुए थी इसलिए देहाती ही दिख रही थी, उसने सब कुछ इग्नोर किया और वाउचर हाथ में लेकर काउंटर पर जा पहुंचा ।

जल्दी जल्दी लेकिन दबी हुई आवाज में बोला ” दो काफी देना”

कैशियर ने फिर से कन्फर्म किया “सर काफी के अलावा और कुछ लेंगे क्या?”

वह वाउचर देखकर बोला ” इसमें क्या क्या आ सकता है?”

कैशियर ने स्क्रीन देखकर दो चार उंगलियां दबाकर कहा सर इसे एडजस्ट करने के बाद 2480/ रुपए और लगेंगे, कार्ड से पेमेंट करेंगे या यू पी आई ?, कैश नहीं चलेगा”

वह सकपका गया,और माथे पर हाथ रखते हुए वापस महबूबा के पास आया और बोला चलो कहीं और चलते हैं”

निकलते हुए वह चारों और के आईने में देखता जा रहा था, इस बार उसे कोई नहीं देख रहा था, उसके निकल जाने की घटना सामान्य सी प्रतीत हो रही थी,रुके रहने की घटना असामान्य थी ।

मनीष भार्गव

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