डियर हस्बैंड,
कभी मेरे बिना बोले ही कुछ समझ जाओ ना,
क्या हर बात समझाने के लिए बोलना ज़रूरी होता है?
कभी मेरे साथ भी वक़्त बिताओ ना,
क्या वक़्त बिताने के लिए भी मन लगाना ज़रूरी होता है?
आओ ना साथ बैठें, मिलकर वो पुरानी यादें ताज़ा करें…
कुछ किस्से तुम सुनाओ
कुछ एहसास मैं बताऊँ…
उन्हीं पुरानी कहानियों में हम फिर से खो जाएं,
आओ इस पल के ज़रिए बीते लम्हों में जी जाएं…
घड़ी भर तो रुको कुछ कहना है मुझको,
मेरे बिना लब खोले उस अनसुनी बात को सुन जाओ ना..