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प्रौढ़ों के दिल अधिक मचलते हैं, लड़की ही नहीं लड़के भी है इनके शिकार।

युवाओं की अपेक्षा प्रौढ़ों के दिल अधिक मचलते हैं|

(हालाँकि सभी के लिए नहीं कहा गया है) अधिकतर भीड़ भरी ट्रेनों या बसों या लाइनों में ये अक्सर लड़कियों से सट कर खड़े होते हैं!

प्रौढ़ावस्था वो अवस्था होती है जब व्यक्ति की परिपक्वता चरम पर होती है, अमूमन व्यक्ति को आदरणीय और श्वेत हृदय वाला समझा जाता है, किंतु आप ग़ौर करें तो पाएंगे कि प्रौढ़ों की उम्र के साथ साथ इनकी वासना भी प्रौढ़ और परिपक्व होती चली जाती है क्योंकि उनकी अवस्था को प्राथमिकता दी जाती है इस कारणवश उनके अंदर जी रहे एक वासना ग्रस्त प्रौढ़ युवा को अमूमन इग्नोर कर दिया जाता है |

अक्सर हम सब लड़कियाँ, औरतें, महिलाएं, भीड़ भरी बसों और ट्रेनों में इनके कृत्य को देख सकते हैं।

“स्पर्श की पहचान”

कभी कपड़ों के ऊपर से जांघों को स्पर्श करते हैं तो कभी अपनी छाती से उनकी पीठ को | कभी अपनी कोहनी या पीठ का सहारा लेकर कोशिश करते हैं उनके जिस्म को छूने या महसूस करने की। इस पर भी इनकी परिपक्वता की दाद देनी पड़ेगी, इनके चेहरे के भाव पर तनिक भी परिवर्तन नहीं आता जो इनकी परिपक्व वासना का सबूत हो सके।

किसी युवा के गलती से भी लगे धक्के पर चाण्डाली का रूप धारण कर लेती हैं”

किंतु लड़की को तुरन्त असहज महसूस होता है, और भले ही वे अपने चेहरे के भाव को बदलें न बदलें उनका अंग विशेष उनकी घिनौनी मानसिकता की चुगली कर ही देता है | और यहाँ पर सबसे ज्यादा गलत होती हैं वो लड़कियाँ जो सब कुछ “आइडेंटिफाई” करने के बाद भी चीखती नहीं हैं और किसी युवा के गलती से भी लगे धक्के पर चाण्डाली का रूप धारण कर लेती हैं, घर में होने वाले यौन शोषण में अधिकाधिक संलिप्तता प्रौढ़ वासना की ही पाई जाती है। ये जो फूफा, चाचा और मौसा होते हैं अक्सर जब इनका हृदय सड़ जाता है और मानसिकता में नाली वाले कीड़े पड़ जाते हैं जो ये प्रौढ़ वासना इन पर हावी हो जाती है|

बच्चियाँ जो लाड- प्यार- स्नेह, समझ कर इनके लिपटने चिपकने भांप नहीं पाती हैं, एक समय बाद उन्हें भी असहज महसूस होने लगता है| हँसते मुस्कुराते बतियाते बतियाते उनके असहज अंगों को स्पर्श करने का प्रयास करते हैं,

इस कृत्य के दौरान इनके चेहरे पर एक स्वाभाविक मुस्कान होती है, भीतर एक वहशी राक्षस दहाड़े मार कर हँस रहा होता है|

यहाँ पर एक बार फिर लड़की हिम्मत नहीं कर पाती है उनके विरोध का, पारिवारिक सम्बन्धों के कारण। कुछ प्रौढ़ों की सहानुभूति व रूचि ज्यादातर कन्याओं और महिलाओं के लिए होती है। इनको शिष्य के बजाए शिष्याएं बनाना अधिक प्रियकर होता है|( जैसे स्कूलों में जिनको हम सब भगवान समान पूजते है)ये लड़कियों के लिए विशेष सहानुभूति रखते हैं, जबकि लोकलाज के भय से लड़कों से औपचारिक, ये सबसे बड़े खिलाड़ी होते हैं और सबसे अधिक परिपक्व

( ऐसा नहीं है की सिर्फ लड़कियाँ ही भुक्तभोगी हो, लड़के भी है उनकी चपेट में)

प्रौढ़ वासना से ग्रसित प्रौढ़ों की सबसे बड़ी उपलब्धि ये होती है कि अपने अंदर छुपे मैलेपन को कभी भांप नहीं देते| वो स्नेह पर स्नेह अर्पित करते रहते है। वासना से भरे काले हृदय को रंगभरे वासनाओं से रंग कर के सजाया जाता है, ताकि इसकी चमक से ना लड़कियाँ बच सके और ना लड़के, 

सुनने में थोड़ा सा अजीब तो है क्या लड़के भी ‘ जी हाँ

ये है आधुनिक युग के प्रौढ़ व्यक्तिओं की सच्चाई जो वासना से ऐसे ग्रसित है जिसका इलाज़ कराने के बजाय शिकार के रास्ते पर है तो ध्यान रखिये अगर आपके आस पास ऐसी कोई भी घटना घटित हो या घटने वाली हो तो सतर्क रहिये और ध्यान रखिये अपना अपने बच्चों का लड़कियों और लड़को का भी.. Vibha Pathak 

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