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वोट बैंक के लिए नेताओं को नफ़रत की राजनीति को करना होगा बंद!

कई बार जब मैं विवाद, दंगे, या किसी बयान पर खबर लिख रहा होता हूं, तो अकसर दिमाग में यह विचार आता है कि आखिर इन सबकी ज़रूरत क्या है? एक पत्रकार होने के नाते जब राइट एंगल जानने के लिए, बयान की ज़रूरत जानने के लिए खुदाई होती है, तो पता चलता है कि इन सब की कोई ज़रूरत ही नहीं है। बेवजह राजनीति के गुणधर्मों की गुणवत्ता को खराब किया जा रहा है। हाल ही का मामला देख लीजिए। बिहार के शिक्षामंत्री देश के बहुसंख्यक समुदाय के धार्मिक ग्रंथ पर झूठ फैला रहे थे।

झूठ कहीं प्रेस कांफ्रेंस या, जनसभा में नहीं बल्कि एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में। जब कोई भी पत्रकार,लेखक या विचारक इस बयान की ज़रूरत पर शोध करेगा, तो उसे साफ़ दिखेगा कि ऐसे बयानों का उपयोग प्रयोग के तौर पर किया जाता है ताकि एक वर्ग के पूरे वोट बैंक को साधा जा सके। लेकिन ऐसे अनुचित प्रयोग और झूठ की बुनियाद पर टिके बयान से पूरे देश में क्या स्थिति बनती है इसका अंदाज़ा शिक्षा मंत्री ने शायद लगाया ही नहीं। ऐसे ही ढेरों बयान राजनीति के धुरंधर सिर्फ इसलिए दे जाते हैं ताकि वह बयान उनकी टारगेट ऑडियंस तक पहुंचें और उन्हें तात्कालिक चुनावों में इसका फायदा मिले।

बिहार में इस वक्त नीतीश कुमार की सरकार है और राज्य शिक्षा के क्षेत्र में नंबर वन पर नहीं आता है। तो क्या शिक्षा मंत्री इन बातों पर ज़ोर दे रहे हैं। यही हाल मध्यप्रदेश का भी है। विधानसभा चुनाव नज़दीक है तो पक्ष और विपक्ष कहीं से भी स्थानीय मुद्दों के साथ खड़ा नहीं दिख रहा है। सकारात्मक और सार्थक राजनीति क्या होती है, नेताओं को इसकी ट्यूशन लेनी चाहिए। या फिर जो नेता वैसी राजनीति करते हैं, उनसे सीखना होगा। सत्ता में बैठी भाजपा के विरोध में बैठे देशभर के राजनीतिक दल भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि वह देश में हिंदू मुस्लिम करते हैं। लेकिन अधिकतर मुद्दे ऐसे हैं जो विपक्षी दलों द्वारा ही उठाए गए हैं और जो बेबुनियाद है।

ऐसे में आप राजनीति के स्तर को और गिराने का काम कर रहे हैं। कहने का सार यह है कि नेता चाहे पक्ष के हो या विपक्ष के हो, जब तक ईमानदार राजनीति को अपने जहन में नहीं उतारेंगे, तब तक बदलाव की संभावनाएं कम दिखेंगी। हम यह भी नहीं कह सकते कि नेता ऐसे बयान सस्ती लोकप्रियता के लिए देते हैं क्योंकि मुझे नहीं लगता किसी राज्य के शिक्षा मंत्री को किसी तरह की लोकप्रियता की भूख होगी। या फिर तमाम ऐसे नेता जो कुछ भी अनर्गल बयान दे जाते हैं, उन्हें इसकी जरूरत होगी। सुप्रीम कोर्ट को भी इस तरह के बयानों पर संज्ञान लेना चाहिए। इस तरह के कोई भी बयान न सिर्फ़ याचिकाओं के चलते कोर्ट का बल्कि पुलिस प्रशासन का भी समय व्यर्थ करते है। जनता को राजनीतिक वोटबैंक के लिए नफ़रत की भट्टी में झोंकना बंद करना होगा।

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