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ग्रासरूट निर्माताओं के लिए हुआ अनोखा झकास मेला का मेरा अनुभव

Image of Jhakkas Mela, Mumbai

हेलो मेरा नाम विनीता है। मैं दिल्ली से हूँ और झकास मेला के बारे में मुझे मेरी संस्था FAT फेमिनिस्ट अप्प्रोच टू टेक्नोलॉजी से पहली बार पता चला। यह पॉइंट ऑफ़ व्यू दवारा आयोजित ग्रासरूट निर्माताओं के लिए था। इस मेले में FAT से सुरभि,काजल और मेरा जब चुनाव हुआ तो हम तीनों ही बहुत खुश थे। कई महीने पहले से ही व्हाट्सप्प ग्रुप में अलग -अलग शहरों के नाम,वातावरण की आवाज़ और मीटिंग से पता चला कि भारत के कई क्षेत्रों से लोग आ रहे हैं। मैं भी बहुत उत्साहित थी। जिस दिन हमें ट्रैन में बैठना था हम पहले ही निकल गए और दिल्ली से बांद्रा के उस ट्रैन में हमें और साथी मिले। इस सफर से पहले हम सभी अनजान थे लेकिन मुंबई पहुंचते -पहुंचते सब दोस्त बन गए। ट्रेन में कुछ ऐसे साथी मिले जिनकी सोच हमसे मिलने पर हम दोस्त बन गए।

मैं पहली बार मुंबई गयी और फरवरी और मार्च के महीने में मुंबई का मौसम दिल्ली के मौसम से बड़ा विचित्र लगा। लेकिन वहां पहुंचने के बाद और लोगों से मिले और शाम को यात्रा करने के बाद जुहू बीच पर एक लम्बे सफर के लिए निकले। हम यह भूल गए कि रविवार को वहां भीड़ होगी। वहां पहुंचे तो भीड़ से निकल कर जुहू बीच दिखा लेकिन शाम तक बहुत मस्ती की।

झकास मेले का पहला दिन

अब तक हम सभी को अपने टीम लीडर्स की पता चल चुके थे। सारी बातचीत फ़ोन पर हो जाया करती थी। नाश्ते के बाद वेन्यू पर पहुंचना था। इस दौरान वेन्यू तक हमें पैदल ही जाना था। जब हम सभी एक साथ निकले तो लगा मानों झकास की एक रैली निकल गयी हो। मैंने चलते – चलते सभी बिल्डिंग को देखा जो काफी ऊँचे और सुन्दर थे। हमारा वेन्यू भी बहुत सुन्दर था। मेले की तरह सजा छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु सग्रंहालय और राष्ट्रीय आधनिुनिक कला सग्रंहालय। पहले दिन जान-पहचान हुई हालाँकि हम इतने लोग थे कि कुछ ही के नाम मुझे याद हुए।पहले दिन हमारे साथ कई स्पीकर जुड़े जैसे चम्बल मीडिया से लक्ष्मी शर्मा और हर्षिता वर्मा। इस सत्र में उन्होंने चुनौतियाँ बताई की यह सफर आसान नहीं था और मैंने सीखा की वक्त के साथ बदलना जरूरी है। जैसे आज कल पेपर से डिजिटल होना। ट्रोल्स पर ध्यान न देकर आगे बढ़ना।

अगले सत्र में लीना यादव, फ़िल्मकार और लहर खान जुड़े। मैंने इनके द्वारा बनायी फिल्म और उसका कॉन्सेप्ट 2017 में देखा था। मुझे बहुत ख़ुशी हुई इतने पास से पीछे की कहानी के बारे में जानकर जो फिल्म में नहीं बताई गयी थी। उसके बाद अरवानी आर्ट प्रोजेक्ट के कार्य और सोच को देख कर बहुत प्रेणना मिली क्योंकि जब हम मुंबई में एंट्री किए थे और सड़कों पर बने सुन्दर चित्र किसने बनाया यह नहीं मालूम था। लेकिन अरवानी आर्ट प्रोजेक्ट टीम से मिलने के बाद पता चला था कि यह सब कला उनके द्वारा बनायी गयी है।

इस पुरे सत्र के बाद लंच हुआ और उसके बाद हम सभी को अलग – अलग समूह में वेन्यू के इतिहास के कुछ दर्शन करवाए गए और हमारे समूह ने कपड़ों पर बनी आकृति के इतिहास के बारे में जाना। इसके बाद झलक दिखला जा हुआ जिसमें हम सभी अपने बनाए गए कविता, लेखन, रील्स आर्ट, फोटो की प्रदर्शनी किए और सब अपने काम व फोटो देखकर बहुत खुश थे। बिलकुल मेले जैसा सजा हुआ था। उसके बाद हुई बातचीत।

शाम को जब सषुमा देशपांडे द्वारा नाटक प्रस्तुत हुआ जो कि सावित्री बाई फुले के ऊपर था। पहले तो मुझे लगा कि और लोग आएंगे लेकिन जब उन्होंने शुरुआत की तब वह अकेले पुरे स्टेज पर डेढ़ घंटे तक अपने किरदार में थी और मैंने उनसे सीखा कि कैसे अकेले भी लोगों का ध्यान बिना भटके अपनी ओर रख सकते हैं।

झकास मेले का दूसरा दिन


मेले के दूसरे दिन हम सभी बहुत उत्साहित थे क्योंकि इस दिन सभी अलग-अलग वर्कशॉप में भाग लेने वाले थे। काजल और सुरभि अलग-अलग समूह में थे। मेरा नाम छोटा पैकेट बड़ा धमाका में नाम आया। यह एक माइक्रो-फिल्म वर्कशॉप थी। इसे वीडियो वॉलटिंटियर्स की सीनियर निर्माता पूर्णिमा दमाडे द्वारा लिया गया था। इस वर्कशॉप में हमने वीडियो के बारे में जाना कि एक कहानी कैसे में क्या-क्या जरूरी होता है और हम सामजिक बदलाव के लिए वीडियो का इस्तेमाल कैसे सकते है। हमने kinemaster के बारे में जाना और आखिर में हमने एक शार्ट वीडियो ग्रुप में मिलकर बनाया। हमें इसमें फ़ीडबैक्स मिले और हम समझ पाए कि एक-दूसरे की वीडियो से क्या-क्या चीजें सीख सकते हैं। शाम को ज्यादातर लोग चौपाटी की चाट के मज़े लेने के लिए टीम के साथ गए।

झकास मेले का तीसरा दिन


यह दिन इस मेले का आखिरी दिन था। शुरुआत में पिछले दिन लोगों ने क्या – क्या किया वो साझा किया और सबके वर्कशॉप का रिजल्ट देखना काफी सुन्दर था क्योंकि नाटक के समूह ने नाटक दिखाया, संगीत के समूह ने बहुत ही सुन्दर संगीत सुनाया इस तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल और शार्ट वीडियो मेकिंग टीम ने अपने – अपने वीडियो और पोस्ट दिखाए। हम सभी बहुत खुश थे एक दूसरे के कार्यों को देखकर और अनुभवों को सुनकर।

इसके बाद शब्दों का चमत्कार सत्र में नेहा सिंह जो एक नाट्यकार, लेखक और कैंपेनर हैं उन्होंने अपनी कविताएं, कहानी और अनुभव साझा की। मैंने उनसे सीखा कि अपनी कहानी या कविता को बहुत साधारण रख कर भी अनोखा बनाया जा सकता है और कोई भी चीज़ शुरू करना जरूरी है बिना राय बनाए।

अगला सत्र का विषय मोबाइल का मज़ा नाम का था। इसमें कई सारे स्पीकर जुड़े जिन्होंने मोबाइल के इस्तेमाल के बारे में बहुत ही अच्छे से बताया। मैं हैरान भी थी कि बिना सोशल मीडिया के भी मोबाइल का इस्तेमाल करना कितना उपयोगी होगा। लेकिन इस सत्र में तो यह विचार भी बदला। जैसे टेक सखी एक हेल्पलाइन हैं, ब्लूटूथ का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में बहुत उपयोगी है, फ़ोन कैसे सुख-दुःख का साथी हो सकता है अगर सुनने वाला कोई न हो, इन सभी चीजों के बारे में समझा।

झकास की शाम तो काफी मजेदार थी क्योंकि हास्य कलाकार प्रशस्ति सिंह अपने स्टैंड अप कॉमेडी से आसपास ठहाकों की गूंज करा दी और गेटवे ऑफ़ इंडिया पर हमें मिला सरप्राइज़ जहां मस्ती में शाम का अंत हुआ। इस तरह हमारे यह तीन दिन मस्ती,उत्सव,और सीखना – सिखाना वाला रहा। समापन सत्र में 5 कलाकारों ने अपने अनुभवों को साझा किया। पॉइंट ऑफ़ व्यू के 25 साल पुरे होने का उत्सव भी एक बहुत बड़े केक कटिंग से मनाया गया।

मैंने इस पुरे सफर में यह सीखा की हर एक वयक्ति के अंदर एक प्रतिभा होती हैं। बस उस प्रतिभा की पहचान और मेहनत बहुत जरूरी है क्योंकि उस में उस व्यक्ति की भावनाएं निकल कर आती हैं। झकास (पॉइंट ऑफ़ व्यू ) का मेला एक ऐसा मंच रहा जहां किसी को अपनी पहचान छुपाने, किसी राय का डर नहीं दिखा। तीन दिनों सभी लोग खुल कर अपनी पहचान को जिएं और 70 – 75 ग्रासरूट निर्माताओं का एक जगह पर लाना अद्भुत मेला था। मैं इस मेले के लिए झकास टीम को शुक्रिया अदा करती हूँ।

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