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“एक दिन नहीं, समाज में रीति-रिवाज के नाम पर हर दिन होता है दहेज लेन-देन”

dowry system in india

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भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजों को फिल्मों और सीरियलों में जितना अच्छा दिखाया जाता है और लोग मानते भी हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। जैसे फिल्मों और धारावाहिकों में दहेज की बर्बरता या नहीं दहेज जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में नहीं दिखाया जाता है। न ही यह दिखाया जाता है कि यह जीवन भर उपहार लेन-देन के रूप में चलते जाता है।

पितृसत्ता की देन है दहेज प्रथा

दहेज तब शुरू होता है जब दो परिवार शादी के लिए राजी हो जाते हैं। दो परिवारों के बीच दोनों तरफ से शादी की इस मंजूरी पर दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को न सिर्फ पैसे बल्कि की उपहार और तोहफे देता है। मैं इसे दहेज इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इनका कोई उचित विवरण नहीं दिया गया है। ये रीति-रिवाज आपको समाज में चलने वाली पितृसत्तातमक व्यवस्था को दिखाते हैं। समाज में ऐसे मुद्दों का कोई उचित नाम नहीं है।

शादी में दिया जाने वाला लगन

इसमें शादी से दो दिन पहले दुल्हन परिवार दूल्हे के परिवार को भारी मात्रा में धन, आभूषण, फर्नीचर, उपकरण, कपड़े आदि देता है। सामान को उसके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी और खर्च तक लड़की का परिवार ही देता है। इसे हमारे समाज में असली दहेज माना जाता हैक्योंकि इस दिन सबसे ज्यादा पैसे और सामान का लेन-देन होता है। साथ ही यह बहुत ही दिखावटी आदान-प्रदान होता है। भारत के की राज्यों में इसे लगन कहते हैं।

शादियों में होने वाला लेन-देन

फिर शादी के दिन लड़की के परिवार वाले लड़के के परिवार के ज्यादातर रिश्तेदारों को पैसे के साथ कपड़े देते हैं। इस रस्म को समाज में लेन-देन कहा जाता है। लेकिन मुझे लगता है कि यह केवल देन है न कि लेन।

शादी के दिन भी दहेज लेन-देन की प्रथा

लड़की का परिवार हर रिश्तेदार के लिए भोज यानि खाने का उत्तम व्यवस्था या पार्टी की व्यवस्था करता है। प्राथमिकता लड़के वालों को दी जाती है। भोजन, टेंट, साज-सज्जा, रोशनी, लेन-देन (लेना-देना), रस्म, डीजे, ड्रोन, फूल आदि पर बहुत मोटा पैसा खर्च किया जा रहा है। शादियाँ इन दिनों अधिक से अधिक बड़ी और खर्चीले होते जा रहे हैं। इन्हें समाज में बिग फैट वेडिंग भी कहा जाता है। ये बस मानदंड और दिखावा है और कुछ भी नहीं। इन सभी के कारण मुख्य रूप से दुल्हन के पिता और भाई पर अत्यधिक आर्थिक दबाव होता है। अधिकतर समय वे अपनी संपत्ति को गिरवी रख, या बेच कर शादी के लिए ऋण लेते हैं। कभी-कभी अत्यधिक कर्ज चुकाने में असमर्थ होने के कारण आत्महत्या से मौत के मामले भी सामने आते हैं। एक शादी में ये रीतिरिवाज के नाम पर ये सभी नाटक और मोटा खर्चा इस बात की कोई गारंटी नहीं देते हैं कि यह शादी का रिश्ता पूरी तरह से चलेगा। कभी-कभी तलाक बहुत जल्दी हो जाता है। भले ही तलाक न हो, पर दहेज की मांग कई बार शादी के बाद भी चलती रहती है। शादी में इस तरह से खर्च और दिखावा महज पैसे और संसाधनों की बर्बादी है।

फिर शादी के अगले दिन, लड़के वालों के केवल पुरुष रिश्तेदार लड़की के घर जाते हैं और भारी महंगी दावत और औपचारिक मेहमान नवाजी का आनंद लेते हैं। यहाँ भी कई बार पैसे दिए जाते हैं।

गोद भरायी की रस्म

यह एक रस्म है जहां लड़कियां गर्भवती होने पर उन्हें आशीर्वाद दिया जाता है। लेकिन ये आशीर्वाद धन और सामान के रूप में होता है। लड़की के माता-पिता लड़की के रिश्तेदारों को कपड़े के साथ पैसे देते हैं क्योंकि वे इस रस्म के दौरान मिलते हैं, और जैसा कि मैंने आपको पहले बताया, हर बार जब भी लड़की के परिवार के सदस्य लड़के के परिवार के सदस्य से मिलते हैं, लड़की के परिवार के सदस्य हमेशा लड़के के परिवार के सदस्य को कुछ पैसे और/या कपड़े देते हैं।

मायका में बच्चे के जन्म का रिवाज

गर्भावस्था के दौरान लड़कियों को मायका यानि माता-पिता के घर भेजे जाने का रिवाज है ताकि लड़की के माता-पिता उसकी गर्भावस्था और उस पर होने वाले सभी खर्चों का ध्यान रखें। लड़कियों को माता-पिता के घर इसलिए भेजा जा रहा है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान, वे काम करने में सक्षम नहीं होती हैं और उन्हें अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। जब लड़कियां (बहू) काम नहीं करती हैं, तो वे ससुराल वालों पर बेकार का बोझ होती हैं। कौन परवाह करेगा? ससुराल वाले! ज्यादातर बच्चे के जन्म में लड़की के माता-पिता का सहयोग होता है। फिर उनसे अस्पताल के बिल, परिवहन आदि का भुगतान करने की अपेक्षा भी की जाती है।

कुआ पूजन

हरियाणा में, यह बच्चे के जन्म का जश्न मनाने का एक समारोह है। यह ज्यादातर लड़के पैदा होने के लिए किया जाता है, लेकिन इन दिनों कन्या शिशु का कुआ पूजन भी देखा जाता है। इसके पीछे का कारण लड़कियों को समर्थन देने, कन्या भ्रूण हत्या को कम करने और लिंगानुपात में सुधार के लिए सरकार द्वारा दिया गया पैसा था। इसी निरन्तर सहयोग के कारण कुछ माता-पिता अपनी इच्छा से कन्या का कुआ पूजन मनाने लगे, जो कि एक शुभ संकेत है। कभी-कभी बच्चे के वजन के बराबर सिक्के या खाने का सामान दिया जाता है।

भात, तीज और मकर संक्रांति जैसी विभिन्न रस्में

इस रस्म में जब लड़की के बच्चों की शादी हो जाती है, तो लड़की के माता-पिता अपने माता-पिता भाई या किसी रिश्तेदार सहित लड़की के बच्चे को उपहार देते हैं, इस उपहार में नकद रुपया, गहने आदि होते हैं, जो दहेज के समान होता है। तीज भारत में एक त्योहार है, जो श्रावण (वर्षा) के मौसम के शुरुआती दिन के तीसरे दिन आता है। इस त्योहार में लड़की के परिवार के लोग भाई या पिता वे लड़की के ससुराल वालों को कुछ मिठाई देते हैं, जो तैयार या घर की बनी या मिश्रित हो सकती है। साथ ही लड़की के ससुराल वालों को फल और पैसे भी भेजे जाते हैं।

मकर संक्रांति तीज की तरह ही है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि यह 14 जनवरी को मनाई जाती है। उपरोक्त सभी रस्में निश्चित है। लेकिन कुछ अनिश्चित रस्में भी हैं जैसे लड़की के ससुराल में परिवार के किसी सदस्य का जन्मदिन मनाना, फिर लड़की के माता-पिता को पैसे देना, लड़की के ससुराल में कोई भी समारोह हो, लड़की के माता-पिता जाते हैं और पैसे देते हैं।

महिलाओं की मौत

लड़की की मृत्यु के समय, लड़की पक्ष के लोग लड़की की ससुराल जाते हैं और कुछ कर्मकांड करते हैं और लड़कियों के ससुराल वालों को कुछ कपड़े और पैसे दिए जाते हैं। सरल शब्दों में एक बार शादी की गांठ बंध जाने पर लड़की का परिवार देने वाला और लड़के का परिवार लेने वाला बन जाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी बीतते जाती है, लेकिन रीति रिवाज अनंत काल तक चलते रहते हैं।

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