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‘नारसीसिस्ट’ क्यों हैं अपने ही चाहने वालों के लिए खतरनाक?

Narcissism

Narcissism

Narcissism यानि आत्ममुग्धता एक पर्सनैलिटी डिसॉर्डर है। ऐसे व्यक्ति Narcissist (Greek word) आत्ममुग्ध कहलाते हैं जो इस डिसऑर्डर से ग्रस्त हैं। दुनिया में कई लोग नारसी-सिस्ट प्रवृत्ति के होते हैं। नारसी-सिस्ट उस व्यक्ति को कहा जाता है जो खुद को सबसे ऊपर या महान मान कर चलता है, हिंदी मे ऐसे व्यक्ति के लिए आत्ममुग्ध शब्द का प्रयोग किया जाता है। ऐसे व्यक्ति जिसे लगता है, उसका विचार, उसकी इच्छा, उसकी पसंद, उसकी खुबसूरती, उसका फैसला या उसकी वेल्यू , सर्वोपरि यानी सबसे ऊपर है। बाकी लोगों के विचार , पसंद – नापसंद, इच्छाएं, जरूरतें आदि इतनी अहम नही हो सकती जितनी उसकी स्वयं की हैं।

कौन सी अवस्था आत्ममुग्धता कहलाती है

कुल मिलाकर ऐसा व्यक्ति जीवन भर इसी सोच में रहता है कि वह ही सब कुछ है। उसमें कोई कमी नहीं हो सकती। सब उसके हिसाब से चले, वह अपने गलत फैसलों को भी सही मानता है। भले ही दूसरों को उस से कितनी ही तकलीफ पहुंचे। एक नारसीसिस्ट व्यक्ति को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरों की तक़लीफ़ या बलिदान को वो अपने मजे लिए भी इस्तेमाल करने से नही चूकता। वह नारसिसिस्ट कहलाता है। यदि आप ऐसे व्यक्ति को प्रेम से जीतना चाहते हैं या अपने प्यार की बमबारी करना चाह रहे हैं तो सावधान हो जाएं, ऐसे व्यक्ति हमेशा प्यार करने वाले कि कमियां निकालते रहते हैं। हर बात के लिए ये आप को ब्लेम करते रहेंगे, आप हीन भावना का शिकार होने लगेंगे और खुद से नफरत करने लग जाएंगे। इनके इल्ज़ामों की बारिश आपका आत्म सम्मान और आपकी जीने की चाह खत्म कर देगी। यह सभी लक्षण यदि किसी व्यक्ति मे दिख जाए तो हम उसे कहेंगे कि वो नारसिसिस्ट व्यक्ति है।

नारसीसिस्ट शब्द की उत्पत्ति 

नारसीसिस्ट शब्द की उत्पत्ति ग्रीक माईथोलॉजी के एक पात्र नारसी-सस (Narcissus) से हुई है जो कि नदियों के देवता सिसिपस (sisypus) और लिरीओपे (Liriope) नाम की अपसरा की संतान था। ग्रीक पौराणिक कथाओं में इसका वर्णन किया गया है। रोमन सहित्य के प्रसिद्ध लेखक ओविड ने अपने महाकाव्य मेटामोर्फोसिस मे इस कहानी का वर्णन किया है। नदियों के देव सिसिपस और अपसरा लिरीओपे कि संतान होने के कारण नारसिसस अत्यधिक रूपवान था। उसकी सुंदरता पर हर कोई मोहित हो जाता था। इस कारण वह खुद को महान समझता था और अपने चाहने वालों को नीचा दिखाने मे यहां तक की उन्हें मरने के लिए प्रेरित करने मे भी आनंद की अनुभूति करता था।

उसका यह खेल कभी ख़त्म न होता यदि “एको” (Echo) नाम की एक शापित अपसरा अपने अपमान का बदला लेने की जिद लेकर प्रतिशोध की देवी नेमेसिस के पास न जाती ( Nemesis – The goddess of Revenge) तो नारसिसस का अंत कभी न होता। (ग्रीक गॉड जूपिटर की पत्नी जूनो के साथ मजाक करने के कारण जूनो ने “एको” {Echo} को कुछ भी बोल न पाने का श्राप दिया था वह केवल दूसरों की कही बात का कुछ अंश ही दोहरा सकती थी)

नारसिसिस के अंत की कहानी

कुछ यूं था कि शापित इको ने जब नारसिसस को पहली बार देखा तो वह उसकी और आकर्षित हो ऊठी, और पेड़ों के पीछे छिपते हुए उसे देखने लगी नारसिसस (Narcissus) को जब यह आभास हुआ कि कोई उसके आस -पास है तो उसने आवाज देकर कहा “कौन है वहां?”  परंतु इको जिसको यह शाप था कि वह खुद कुछ नहीं बोल सकती सिर्फ दूसरों की कही बातों के अंतिम कुछ शब्द ही दोहरा सकेगी। इस कारण वह कुछ बता न सकी, सिर्फ जो नारसिसस कह रहा था वही दोहराती रही “कौन है वहां।”

जब नारसिसस ने कहा “सामने आओ हम बात करेंगे” तब इको सामने आकर खड़ी हो गई नारसिसस के सामने मंत्रमुग्ध हो चुकी “इको” खुद को एक क्षण भी रोक न सकी और बाहें फैलाए हुए मुस्कुराकर नारसिसस को गले लगाने आगे बढ़ीं। जैसे ही नारसिसस ने उसे अपने पास आते देखा नारसिसस ने इको को रोकते हुए कहा “रूको और मुझसे दूर रहो, फिर कहा कि मेरे पास मत आओ, मे मर जाना पसंद करूंगा बजाय इसके कि तुम मेरे शरीर का आनंद लो।” यह कहते हुए उसने प्रेम मे दीवानी इको को बेहद बड़ा झटका दे दिया, इको का दिल दर्द से तड़प उठा उसके चेहरे कि मुस्कुराहट तुरंत उदासी मे बदल गई और वह रोती हुई वहां से चली गई।

नेमसिस का नारसिसस से सामना

उसे ऐसी अवस्था मे देख बाकी अप्सराएं भी परेशान हो उठीं। तब सभी ने प्रतिशोध की देवी नेमेसिस को नारसिसस के बारे मे बताया कि वह कितना बेरहम और बदतमीज है इसने इको का दिल दुखाया है और भी कितने ही लोगों को वह अपमानित कर चुका है यहां तक कि मरने पर मजबूर कर चुका है।

तब नेमेसिस ने नारसिसस से प्रतिशोध लेने के लिए हामी भर दी। कुछ दिन बाद नारसिसस जंगलो मे फिर से गया इस बार वह साथियों से बिछड़ गया और पानी की तलाश में यहां-वहां भटक रहा था। नेमेसिस ने ऐसे तलाब की रचना कि जिससे पानी पीने के लिए किनारे पर लेट कर ही पानी पिया जा सके उसमे उतरने कि कोई सुविधा नहीं थी,  और जैसे ही नारसिसस पानी पीने के लिए किनारे पर लेटा। तालाब कि ओर मुंह करते ही उसे अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया। जिसे वह तालाब के अंदर कोई और व्यक्ति समझ बैठा वह उसे लगातार आवाज दे कर पुकारता रहा और बाहर आकर उस से बात करने के लिए मनाता रहा। 

नारसिसस अपनी ही सुंदरता के पीछे मंत्रमुग्ध हो गया

दरअसल वह अपनी ही सुंदरता के प्रति मंत्रमुग्ध हो उठा था और खुद के ही प्रतिबिंब को पानी मे मौजूद कोई देवता समझ बैठा। नारसिसस के जन्म के समय किसी साधु से उसका भविष्य पूछने पर साधु ने बताया था कि जब तक ये खुद को नही देखेगा तब तक सब ठीक रहेगा। यदि इसने खुद को जान लिया तब बड़ी मुश्किल हो जाएगी, और अब जब इसने पानी मे अपने प्रतिबिंब को देख लिया तो यह खुद का दीवाना हो गया, और जिस तरह इको इसके लिए तड़प रही थी वह भी उसी तरह अपने उस प्रतिबिंब के लिए तड़प रहा था। जो उसके सवालों का कोई जवाब नही दे रहा था, अंत मे इसने हार मान कर कहा अगर तुमने जवाब नहीं देते तो इस जीवन का लाभ ही क्या? मे खुद को खत्म करना चाहूंगा।।इको सारा मंजर पीछे छुप कर देख रही थी और मन मे खुश हो कर कह रही थी कि आज इसे समझ आया किसी के लिए तड़पना क्या होता है।

आत्ममुग्धता का अंत कैसे होता है

अंत में नारसिसस ने खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया मरने से पहले अपने प्रतिबिंब को अंतिम वाक्य कहा अलविदा, पीछे से इको ने भी उसे रोकने के बजाय अलविदा कह दिया। इस तरह नारसिसस खुद कि आत्ममुग्धता और दूसरे के प्रतिक्रिया न देने के कारण कारण समाप्त हुआ। कहने का तात्पर्य यह है कि आत्ममुग्धता या नारसिसिज़्म तब ही खत्म होती है जब उसे उसी से खतरा होने लगे और उस वक्त उसे कोई प्रतिक्रिया न दे, न ही कोई चाहने वाला उसे जवाब दे, न ही उसके लिए कोई कुछ करे सिर्फ उसे जाते हुए मिटते हुए देखने के सिवाय कुछ न करें। मौन रह कर देखने और अंत मे अलविदा कहने से ही आत्ममुग्धता का नाश होता है।

नारसीसिस्ट से दूर हो कर ही बचा जा सकता है

यदि ऐको उस पर तरस खा कर उसे रोकने का प्रयास करती, तो शायद उसे और बल मिल जाता। उसकी जो अवस्था थी शायद वह टल जाती और वह फिर से इको को अपमानित करता, और ऐको कभी अपने हृदय में पहुंची चोट को ठीक न कर पाती, न कभी पहले जैसी सामान्य हो पाती। मौन रह कर उसका अंत देखना और मन ही मन उसे अलविदा कहना इको का यह फैसला हमें सिखाता है आत्ममुग्धता का अंत कैसे किया जाता है। इसिलिये मनोविज्ञानी द्वारा नारसिसस की तरह व्यवहार करने वाले व्यक्तियों को नारसिसिस्ट या आत्ममुग्ध का नाम दिया गया है और व्यक्ति के इस विलक्षण को नारसिसिज़्म या आत्ममुग्धता कहा जाता है। जिससे केवल दूर रह कर बचा जा सकता है ऐसी अवस्था को बदला नही जा सकता सिर्फ एवॉइड किया जा सकता है।

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