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अन्तर्मुखी मैं (कविता)

शोर से दूर कहीं खामोशियों में,

अकेले रहना पसंद करती हूं मैं,

अपनेपन या प्यार के रिश्तों से,

मुझे कोई दिक्कत नहीं होती,

बस मैं धोखेबाजी से डरती हूं,

अंधेरा मुझे बेहद पसंद है,

रोशनी से अक्सर भागती हूं,

ऊंची उड़ान का सपना मेरा भी है,

मगर अकेलेपन के पिंजरे में रहना,

मैं ज्यादा पसंद करती हूं,

दुनिया को लगता है परेशान हूं मैं,

कौन समझाए कि अंतमुखी हूं मैं,

दूसरों से ज्यादा खुद से प्यार करती हूं

इसलिए तो इतना खुश रहती हूँ मैं।।

यह कविता गनीगांव, उत्तराखंड से नीतू रावल ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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