{"id":400001,"date":"2019-01-23T12:26:51","date_gmt":"2019-01-23T06:56:51","guid":{"rendered":"https:\/\/www.youthkiawaaz.com\/?p=400001"},"modified":"2024-04-02T14:36:30","modified_gmt":"2024-04-02T09:06:30","slug":"condition-of-female-manual-scavengers-in-bihar-hindi-article","status":"publish","type":"post","link":"https:\/\/www.youthkiawaaz.com\/2019\/01\/condition-of-female-manual-scavengers-in-bihar-hindi-article\/","title":{"rendered":"‘\u092d\u0902\u0917\u0940 \u092e\u0941\u0915\u094d\u0924’ \u0930\u093e\u091c\u094d\u092f \u092c\u0928\u093e\u0928\u0947 \u0915\u0940 \u0928\u0940\u0924\u0940\u0936 \u0938\u0930\u0915\u093e\u0930 \u0915\u0940 \u0915\u094b\u0936\u093f\u0936 \u0935\u093f\u092b\u0932 \u0915\u094d\u092f\u094b\u0902 \u0939\u094b \u0917\u0908?"},"content":{"rendered":"
पटना में मैला ढोने का काम करने वाली शर्मिला फोन पर बातचीत के दौरान बताती है, “उसका यह काम जाति व्यवस्था के अनुसार निर्धारित है, उसको यह काम नहीं करना था तो उसने घर बदल लिया और दूसरे शहर चली गई, घरेलू नौकर बन गई, जिसमें वह छह महीने तक खुश भी रही। फिर एक दिन परिवार वालों को उसकी जाति की पहचान हो गई, उन्होंने मारा-पीटा और उसकी साड़ी तक उतार दी।” अब वह मैला ढोने के काम में वापस आ गई है।<\/p>
70 साल की आज़ादी के बाद मिशन चंद्रयान-2 के लिए कमर कस चुके देश में अगर आज भी मैला ढोने का सिलसिला जारी है तो ज़ाहिर है कि अपने देश में इंडिया और भारत के बीच में गहरी खाई है जिसे पाटने के लिए तमाम संवैधानिक और कानूनी उपाए पूरी तरह विफल रहे हैं। भले ही मौजूदा सरकार “स्वच्छ भारत अभियान” में बड़े-बड़े दावे कर रही है परंतु इन योजनाओं में बहुत बड़ा विरोधाभास यही दिखाता है कि सरकार और समाज दोनों संवेदनहीन मानसिकता और नृशंस अत्याचार पर मौन है। मैला ढोने वाले लोगों की संख्या घटने के बजाए बढ़ते ही जा रही है।<\/strong><\/p>