{"id":770449,"date":"2021-04-08T22:00:18","date_gmt":"2021-04-08T16:30:18","guid":{"rendered":"https:\/\/www.youthkiawaaz.com\/2021\/04\/%e0%a4%85%e0%a4%9f%e0%a4%b2-%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%88-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%a7%e0%a4%b0%e0%a5%8d\/"},"modified":"2021-12-05T07:09:02","modified_gmt":"2021-12-05T01:39:02","slug":"was-vajpayee-really-a-secular-leader-who-invoked-the-babri-demolition-hindi-article","status":"publish","type":"post","link":"https:\/\/www.youthkiawaaz.com\/2021\/04\/was-vajpayee-really-a-secular-leader-who-invoked-the-babri-demolition-hindi-article\/","title":{"rendered":"\u201c\u092c\u093e\u092c\u0930\u0940 \u0935\u093f\u0927\u094d\u0935\u0902\u0938 \u0915\u093e \u0906\u0939\u094d\u0935\u093e\u0928 \u0915\u0930\u0928\u0947 \u0935\u093e\u0932\u0947 \u0935\u093e\u091c\u092a\u0947\u092f\u0940 \u0915\u094d\u092f\u093e \u0938\u091a\u092e\u0941\u091a \u090f\u0915 \u0938\u0947\u0915\u094d\u092f\u0941\u0932\u0930 \u0928\u0947\u0924\u093e \u0925\u0947?”"},"content":{"rendered":"

इतिहास के पन्नों में अक्सर अटल और अडवाणी की तुलना होती है। उनकी जुगलबंदी सर्वश्रेष्ठ थी। राजनीत के बड़े जानकार बताते हैं, कि अडवाणी थोड़े गर्म थे, जोशीले थे, हिंदुत्व के प्रति उनका समर्पण अतुल्य था। वहीं दूसरी ओर अटल शांत थे, नर्म थे, सेक्युलर थे, बड़े पद पर होते हुए भी सरल थे, सबसे मिलते-जुलते रहते थे, इसीलिए विरोधी भी उनके मुरीद थे।<\/p>

अटल जी के उस दूसरे पक्ष की बात क्यों नहीं होती?<\/h3>

जब भी लोग अटल जी को याद करते हैं, तो स्वर्णिम चतुर्भुज, गठबंधन धर्म, पोखरण और पोटा की बात होती है। बाबरी की बात नहीं होती, कारसेवा की बात नहीं होती, अयोध्या समतल करने की बात नहीं होती और गोधरा-गुजरात दंगों की बात नहीं होती। बतौर प्रधानमंत्री उनका खूब महिमामंडन होता है किन्तु बतौर संघी, बतौर भाजपा नेता क्यों उनपर कोई कुछ नहीं बोलता?<\/p>

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कई लोगों को कहते सुना है, कि अटल जी राष्ट्रवाद के प्रबल प्रवर्तक थे। उन्होंने पूरे विश्व को राजधर्म का पालन करना सिखाया। अगर ये सत्य है तो फिर वो अपने ही मुख्यमंत्री को ये पाठ क्यों नहीं पढ़ा पाए? बतौर प्रधानमंत्री गोधरा कांड को रोकने के लिए वो ठोस कदम क्यों नहीं उठा पाए? गोधरा कांड 26 फरवरी 2002 से शुरू हुआ लेकिन अटल जी का बयान आते-आते एक सप्ताह बीत गया। दंगों के करीब एक महीने बाद उन्हें गुजरात जाने की फुर्सत मिली और वहां जाकर उन्होंने बोला भी तो इतना कि मुख्यमंत्री को राजधर्म का पालन करना चाहिए।<\/strong><\/p><\/blockquote>

वो एक मुख्यमंत्री से इस्तीफा नहीं मांग पाए। उन्होंने खुद राजधर्म नहीं निभाया। संघ का मुखौटा ओढ़े रहे लेकिन खुद को बेदाग बताया। मौत की राजनीति पर वो खामोश थे। चुप-चाप सबको क्लीन चिट दिया और फिर फलने-फूलने के लिए यूं ही सबको छोड़ दिया।<\/p>

जब अटल ने बाबरी की ज़मीन समतल करने का आह्वान किया था<\/h3>

दरअसल, नफरत की राजनीति में अटल जी के हाथ भी खून से सने थे। जब बाबरी विध्वंस हुआ, अटल जी भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व पर बैठे थे।<\/p>

उनके एक आह्वान पर कारसेवक वापस लौट सकते थे। उनके एक आग्रह पर देश के माथे पर इतना बड़ा धब्बा नहीं लगता लेकिन उन्होंने आग बुझाने की बजाए घी डालने का काम किया। यूट्यूब के तहखाने में उनके भाषण का वह अंश अब भी मौजूद है।<\/strong><\/p><\/blockquote>