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जीएसटी के साइड इफेक्‍ट्स: आम जनता पर आर्थिक सुधारों का बोझ

एक देश-एक टैक्‍स…आजाद भारत का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म…1991 के बाद सबसे बड़ा आर्थिक सुधार..एक झटके में जीडीपी 2 फीसदी तक बढ़ाने वाला रामबाण…कारोबार की राह आसान बनाने वाला ब्रह्मास्त्र और ना जाने क्या -क्या!! वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली के पक्ष में आमतौर पर यही तर्क दिए जा रहे हैं। लेकिन इन दावों के साथ कई किंतु-परंतु भी हैं।
आजकल तो वाट्स एप के रास्ते भी काफी आर्थिक चिंतन की बौछार होती है, इसलिए यह शिकायत नहीं रही कि हिंदी जगत में आर्थिक मसलों पर चर्चा नहीं होती। जीएसटी की बहु-प्रचारित खूबियों से देर-सबेर आपका सामना होना ही है, इसलिए इसके साइड इफेक्‍ट्स पर कुछ रोशनी डालने की कोशिश कर रहा हूं।
  • दावा ‘एक देश-एक टैक्स’ का है लेकिन जीएसटी प्रणाली में भी तीन तरह के अप्रत्यक्ष कर तो होंगे ही – केंद्र अपना जीएसटी वसूलेेगा, राज्य अपना जीएसटी लेंगे और अगर व्यापार कई राज्यों में फैला है तो इंटीग्रेटेड जीएसटी लगेगा। मतलब टैक्स के झंझट इतनी आसानी से खत्म होने वाले नहीं हैं। हां, इतना जरूर है कि 10-15 करों के बजाय अब तीन तरह के जीएसटी होंगे और एक अप्रत्‍यक्ष करों की एक समान प्रणाली रहेगी।
  • कुछ वर्षों पहले वैट भी इसी दावे के साथ लाया गया था कि सिर्फ वैल्यू एडिशन पर टैक्स लगेगा। हुआ क्या? लोग खोजते रह गए दारू कहां सस्ती, पेट्रोल कहां से भराएं, कार गुडगांव से खरीदूं या गाजियाबाद से। मतलब एक नया झमेला।
  • अभी सिर्फ जीएसटी के लिए संविधान संशोधन विधेयक राज्य सभा में पास हुआ है। इसे 15 राज्यों की विधानसभा से मंजूरी मिलनी बाकी है।अभी जीएसटी कानून नहीं बना है। संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद जीएसटी काउंसिल बनेगी और फिर केंद्र और राज्य अपने-अपने जीएसटी कानून बनाएंगे। इस प्रक्रिया में समय लग सकता है। इसलिए 1 अप्रैल, 2017 से जीएसटी लागू करने का लक्ष्य मुश्किल है।
  • बेशक अभी कारोबार की राह केंद्र व राज्यों के दर्जनों अप्रत्‍यक्ष करों में उलझी है। पूरे देश में एकसमान, सरल और पारदर्शी कर प्रणाली व्यापार की राह आसान ही करेगी। लेकिन इस टैक्स रिफॉर्म की मार आम जनता पर महंगाई के रूप में पड़नी तय है। इस तरह कारोबार के झंझट कम करने का बोझ भी जनता को ही उठाना पड़ेगा। ताज्जुब की बात है कि अभी जीएसटी की भी दरें तय नहीं और राज्यों की स्‍वायत्‍ता जैसे कई मुद्दों सहमति बननी बाकी है। फिर भी जीएसटी की कामयाबी और अर्थव्यंवस्था को होने वाले फायदों को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं।
  • दस साल पहले जीएसटी पर चर्चा शुरू हुई थी तो जीएसटी की दर 12 फीसदी रखने का सुझाव था। लेकिन अब जीएसटी की दर 18 से 27 फीसदी के बीच रखे जाने की संभावना है। फिलहाल सेवा कर 15 फीसदी है जबकि वैट और उत्पाद शुल्कों को मिलाकर वस्‍तुओं पर करीब 27-28 फीसदी टैक्‍स लगता है। अगर जीएसटी की दर 18-20 फीसदी के आसपास भी रही तो तमाम तरह की सेवाओं पर टैक्स का बोझ निश्चित तौर पर बढ़ेगा। इससे महंगाई बढ़ेगी और सेवाओं की मांग पर बुरा असर पड़ सकता है। वैश्विक अनुभव बतातेे हैंं कि जीएसटी लागू होने के बाद सालाना 2-3 फीसदी की दर से महंगाई बढ़ती है। जीएसटी के समर्थक भी तीन साल तक महंगाई बढ़ने की बात मान रहे हैं। इससे इनपुट कॉस्‍ट और उद्योग-धंधों की लागत बढ़ेगी। इस तरह बढ़ी महंगाई और बढ़े खर्चे टैक्‍स सरलीकरण के फायदे को निगल सकतेे हैं।
  • जीएसटी से वस्‍तुओं पर टैक्स का बोझ जरूर कुछ कम होगा। लेकिन टैक्स में कमी का पूरा फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंच पाएगा इसमें भी संशय है। अक्‍सर बजट में मिली टैक्‍स छूट का पूरा फायदा उपभोक्‍ताओं तक नहीं पहुंचता है। हां, उद्योगों को कुछ राहत जरूर मिल जाती है।
  • आयकर जैसे प्रत्यक्ष करों की तुलना में जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष कर गरीब जनता को ज्यादा चुभते हैं। आयकर देश के करीब 4 फीसदी लोग ही भरते हैं जबकि अप्रत्यक्ष कर अमीर-गरीब सबसे एकसमान रूप से वसूले जाते हैं। सरकार प्रत्‍यक्ष करों का दायरा बढ़ाने के बजाय अप्रत्‍यक्ष करों में बढ़ोतरी का आसान रास्‍ता चुनती रही है। नब्‍बे के दशक की शुरुआत में सर्विस टैक्स 5 फीसदी था जो अब बढ़कर 15 फीसदी हो गया है। इसी तरह वैट भी राज्य सरकारें अपनेे हिसाब से बढ़ा देती हैं। यह सिलसिला अब जीएसटी के नाम आगे बढ़ेगा। यानी एक बड़े टैक्‍स सुधार का बोझ आखिरकार आम जनता पर ही पड़ना है।
  • जीएसटी लागू होते ही टैक्स के झंझट कम हो जाएंगे यह बात भी पूरी तरह सही नहीं है। कई राज्यों में कारोबार करने वाले कंपनियों को अलग-अलग राज्यों में स्टेट जीएसटी के लिए पंजीकरण कराना पड़ सकता है। इसके अलावा 1.5 करोड़ रुपये से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनियों पर राज्य और केंद्र दोनों जीएसटी लगा सकते हैं। हालांकि, पूरे देश में एकीकृत टैक्स प्रणाली होने से दोहरे टैक्‍स की मार से छुटकारा मिलेेगा। यह अपने आप में बड़ी राहत होगी। लेकिन कारोबारियों को जीएसटी सिस्‍टम के लिहाज से खुद को बदलना होगा।इससे उनकी लागत बढ़ेगी।
  • जीएसटी प्रणाली में किसी सेवा या वस्‍तु के उत्‍पादन से बिक्री तक लेन-देन के हर चरण पर टैक्स वसूला जाएगा। इससे ऐसे लोग भी टैक्‍स के दायरे में आ सकते हैं जो अभी टैक्‍स नहीं भरते। इसलिए जीएसटी लागू होने से जीडीपी और टैक्‍स संग्रह बढ़ने की उम्‍मीद है। लेकिन इससे असंगठित क्षेत्र के कारोबारियों की लागत बढ़ेगी। इसका असर उनके मुनाफे और बड़ेे उद्योगों के मुकाबले प्रतिस्‍पर्धा में टिके रहने की क्षमता पर पड़ेगा।
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