Site icon Youth Ki Awaaz

बिहार में सरकारी नौकरी के क्रेज़ और दहेज की क्या है केमिस्ट्री

बिहार में सरकारी नौकरी का बड़ा क्रेज़ है। किसी बच्चे के नामकरण से पहले, उस पर किसी न किसी सरकारी नौकरी का ठप्पा डाल दिया जाता है। किसी भी सरकारी नौकरी; रेलवे, बैंक, एसएससी, पीसीएस, आर्म फोर्सेज़, आई.आई.टी., मेडिकल, टीचर, यूपीएससी से लेकर प्रोफेसर तक, सभी में, बिहारियों की अच्छी खासी तादाद है। सरकारी नौकरी को लेकर इस तरह का मोटिवेशन शायद ही, किसी और राज्य में हो। इस मोटिवेशन के कई कारण हो सकते हैं लेकिन इसके मूल में दहेज में मिलने वाली रकम ही है। आज भी बिहार में सरकारी नौकरी के विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग रेट फिक्स है। यह रकम पद के अनुसार लाख से करोड़ों तक भी जाती है।

बिहारी गार्डियन अपने लड़के को यह कहकर पटना या दिल्ली भेजते हैं कि, “तुम जाओ, मैं सब जगह-जमीन बेचकर तुम्हारे पढ़ाई का खर्चा उठाऊंगा।” इमोशनल होकर वो कभी-कभी किडनी या शरीर का सारा खून भी बेच डालने की बात कह देते हैं। इतना बड़ा त्याग, देश में शायद ही कोई गार्डियन कर पाए परन्तु इस त्याग के पीछे, कहीं न कहीं बिकी हुई सारी चीज़ों को एक झटके में वापस पा लेने की उम्मीद भी होती है।

सरकारी नौकरी का सौन्दर्य इतना ज़्यादा है कि लड़के का शारीरिक सौन्दर्य कोई मायने नहीं रखता। बहरहाल, शारीरिक सौन्दर्य वैसे भी कोई मायने नहीं रखना चाहिए। लेकिन यह पढ़ी-लिखी या नौकरी कर रही लड़की पर लागू नहीं होता है। उसे शारीरिक रूप से सुन्दर होना ही चाहिए। मुझे लगता है कि हिंदी पढ़ने वाले लोगों को सरकारी नौकरी के सौन्दर्य-बोध का विषयात्मक अध्ययन करना चाहिए।नौकरी लगते ही दहेज में मिली रकम से सब ठीक-ठाक कर लेने का विश्वास भी होता है। बस फिर क्या! लड़का सब कुछ भूलकर लग जाता है और अंत में किसी न किसी सरकारी नौकरी में चला जाता है। अच्छा, इसमें एक बात महत्वपूर्ण है कि लड़के सरकारी नौकरी की तनख्वाह, ग्रेड-पे, पे-बैंड या नौकरी का भविष्य वगैरह पर ध्यान नहीं देते हैं। उन्हें पता होता है किसी को भी वेतन से कोई मतलब नहीं है। अगर कुछ देखा जाता है तो उस नौकरी में उपरी कमाई मतलब रिश्वत की रकम।

कई बार तो यूपीएससी और बीपीएससी में गजब का खेल होता है। इन परीक्षाओं की तैयारी करने वाले लड़के का भाव अच्छा-ख़ासा होता है। महज प्रारंभिक परीक्षा (पीटी) पास करने से ही लड़के का रेट बढ़ जाता हैं। लड़के का मेन्स (मुख्य परीक्षा) लिखना ही उसके आएएस अथवा एसडीएम बन जाने का सबूत हो जाता है। इंटरव्यू दे रहे लड़के के सिलेक्शन हो जाने को लेकर आश्वस्त होते हैं और चयनित कैंडिडेट के हिसाब से दहेज चार्ज किया जाता हैं। मजेदार है कि पीटी, मैन्स और इंटरव्यू का अलग-अलग रेट होता है।

दिल्ली के मुखर्जी नगर या पटना के अशोक राजपथ में रहने वाले लड़के सेलेक्शन के बाद, आने वाली तमाम प्रशासनिक कर्तव्यों पर बहस छोड़, दहेज में मिलने वाली रकम पर अच्छा-भला शास्त्रार्थ कर डालते हैं। किसी मित्र के चयनित होने पर बधाई के साथ ये कह देना कि भाई! आपको अब अच्छी-खासी दहेज की रकम मिलेगी, कहना आम बात है। किसी के न चयनित होने पर उसे दहेज की रकम छूट जाने का ज़्यादा दुख होता है, बजाय इसके कि वो चयनित नहीं हो पाया। किसी भी शादी में, बारात के लिए विचार का सबसे बड़ा मुद्दा, उसे मिलने वाला दहेज होता है।

अच्छा! दहेज के मार्किट में पहले स्कूल शिक्षक का रेट कम होता था, लेकिन अब उसका रेट बढ़ गया है क्यूंकि अब शिक्षक को भी उपरी कमाई का मौका मिल जाता है। शिक्षक को अब स्कूल बिल्डिंग, छात्रवृति से लेकर पोषक आहार (मिड-डे मील) में कमाई का मौका मिल जाता है। हालांकि प्रोफ़ेसर का रेट अभी बढ़ा नहीं है क्यूंकि इन नौकरियों में अभी तक उपरी कमाई का हिसाब जनता नहीं कर पायी हैं। बैंक पीओ के रेट में काफी बढ़ोतरी हुई है। बैंक अधिकारी के द्वारा दिए गए लोन में करीब चालीस प्रतिशत का कट अधिकारी के नाम होता है।

आई.आई.टी. और मेडिकल का अभी भी काफी चार्म बचाया हुआ है। बिहार के गार्डियन अपने बच्चों को दसवीं के बाद तुरंत कोटा (राजस्थान) भेज देते हैं। पूरी बारहवीं के दौरान वो वहीं रहता है और बिना स्कूल गए वह 90 प्रतिशत नंबर भी ले आता है। वैसे स्कूल, जो इस कांड में गार्डियन की मदद करते हैं, सबसे ज़्यादा बड़े और महंगे स्कूल होते है। और हम रूबी राय के टॉपर बन जाने पर हंगामा मचा देते हैं। वहां जो बच्चे स्कूल जाते हैं उन्हें बड़े हेय दृष्टि से देखा जाता है, क्यूंकि वह कोटा में रहकर इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी नहीं कर रहा है।

Exit mobile version