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आज भी कई महिलाएं साड़ी को जांघों में दबाकर रोकती हैं पीरियड्स का खून

सैनेटरी नैपकिन पर टैक्स का लगातार विरोध देखने को मिल रहा है। कुछ समय पहले सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ‘लहू का लगान’ नाम से एक कैंपन भी चला। कारण साफ है, जहां हमारी सरकार को सैनेटरी नैपकीन की सस्ती उपलब्धता के लिए योजना बनाने की ज़रूरत है, वहां ठीक इसके उलट हमारी सरकार आम लोगों को उसकी पहुंच से दूर करने की साजिश रचती हुई दिख रही।

बहरहाल, आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं पीरिड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इसके दो कारण है, पहला सैनेटरी नैपकिन खरीदने की असमर्थता, दूसरा जानकारी की कमी।

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सैनेटरी नैपकिन को डस्टर समझा

बिहार सरकार के पूर्व प्रोजेक्ट “महिला सामख्या” की राज्य कार्यक्रम निदेशक रह चुकी कीर्ति का कहना है कि बिहार के कई ग्रामीण इलाकों में जब किशोरी लड़कियों और महिलाओं को सैनेटरी नैपकीन दिखाया गया तो उनका जवाब था कि यह तो डस्टर है। उन्होंने उसके पहले कभी सैनेटरी नैपकीन देखा तक नहीं था। कीर्ति का कहना है कि महिलाओं में पीरियड्स को लेकर जागरूकता की भारी कमी है, जिसका खामियाज़ा उन्हें इंफेक्शन के रूप में सहना पड़ता है।

लेकिन, इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात तो ये है कि कई इलाकों में महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े तक का इस्तेमाल नहीं करती। कीर्ति बताती हैं कि शुरुआत में हमने देखा कि औरतें बिलकुल भी जागरूक नहीं है।

कई जगहों पर तो कपड़े तक का इस्तेमाल नहीं किया जाता। माहवारी के दौरान महिलाएं घर से निकलती तक नहीं, पहने हुए कपड़े में जब खून लग जाता तो उसे धो देती हैं और वापस से वही कपड़ा पहन लेती हैं। कुछ जगहों में महिलाएं साड़ी के प्लेट को दोनों जांघों के बीच में दबा लेती हैं।

सैनेटरी नैपकिन की जानकारी की कमी और लोगों तक उसकी पहुंच नहीं होने की वजह से कई ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में लड़कियों की हाजिरी में भी कमी देखी जाती है। पीरियड्स में लड़कियां स्कूल ही जाना छोड़ देती हैं।

आज मिलती है सैनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग

आज कई निजी संस्थाएं इस ओर जागरूकता के लिए काम कर रही हैं। यहां तक की कुछ सरकार भी इस दिशा में काम करती हुई दिख रही। बिहार सरकार की ही बात करें तो महिलाओं के लिए चलाए गए पूर्व प्रोजेक्ट “महिला सामख्या” के तहत महिलाओं को सैनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग दी गई। इससे महिलाओं को दो फायदा हुआ। पहला महिलाओं को रोज़़गार मिला साथ ही महिलाएं कपड़े की जगह सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने लगीं।

छत्तीसगढ़ में एक सुचिता योजना के तहत इन दिनों किशोरी लड़कियों को वेंडिंग मशीन से सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध करवाया जा रहा। मशीन में पैसे डालते ही एक नैपकिन बाहर आ जाता है। यहां इस्तेमाल किए गए नैपकिन को बर्न करने की भी सुविधा है। इस मशीन के लगने से वहां के स्कूलों में लड़कियों के अटेंडेंस में भी वृद्धि हुई है।

महावारी के दौरान साफ सफाई पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी होता है। डॉक्टर्स की मानें तो हमें हर 6 से 7 घंटे में पैड या कपड़े बदलने चाहिए, वरना इंफेक्शन का खतरा बना रहता है। महिला हो या पुरुष उनके प्राइवेट पार्ट्स की सफाई बहुत ज़रूरी है।

महिलाओं में प्राइवेट पार्ट्स में इन्फेक्शन से कई बीमारियों का खतरा बना रहता है। बार्थोलिन सिस्ट, यूरिन इन्फेक्शन जैसी कई भयावह बीमारियां झेलनी पड़ सकती हैं। बात जब पीरियड्स के दिनों की हो तो इन्फेक्शन का खतरा और भी बढ़ जाता है।

ग्रामीण ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों में भी देखा जाता है कि महिलाएं एक ही कपड़ो का कई बार इस्तेमाल करती हैं। वो यूज कपड़ो को धोकर वापस से इस्तेमाल करती हैं। सबसे ज़्यादा चिंता की बात तो यह है कि उन कपड़ो को सही से सुखाया नहीं जाता।

महिलाएं गीले कपड़ो का ही इस्तेमाल कर लेती हैं

जाहिर सी बात है, जिस समाज में महिलाओं के अंडरगार्मेंट्स को खुले में सुखाने की इजाजत ना हो वहां पीरियड्स के कपड़ो को खुले में सुखाना तो एक बड़ा अपराध ही माना जाएगा। धूप ना लगने पर कपड़े के किटाणु उसमें ही रह जाते हैं। यहाँ तक कि उन कपड़ों को धोने तक के लिए भी प्राइवेसी नहीं मिलती। कई बार तो महिलाएं गीले कपड़ो का ही इस्तेमाल कर लेती हैं।

सेक्शुअल हेल्थ पर काम करते समय गुड़गांव के मुल्लाहेड़ा गांव की कुछ औरतों से बात करने पर पता चला कि उनके पास पीरियड्स के कपड़े धूप में सुखाने का कोई विकल्प ही नहीं है। उन औरतों का कहना था कि हम चाह कर भी पीरियड्स के कपड़ो को धूप में सुखा नहीं सकते और पैड खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं है।

किसी आपदा के समय शायद ही किसी का ध्यान इस ओर जाता होगा कि जो महिलाएं पीरियड्स में हैं उन्हें कपड़े या नैपकिन कैसे मिल रहे होंगे। बीबीसी की पत्रकार सीटू तिवारी बताती हैं कि एक वर्कशाप में जब मुझसे यह पूछा गया कि बाढ़ की स्थिति में वह क्या कवर करेंगी तो उनका जवाब था कि मैं उस वक्त पीरियड हुई महिलाओं की स्टोरी कवर करूंगी। उन महिलाओं को पैड या कपड़ा मिल रहा है या नहीं, अगर कपड़ा इस्तेमाल कर रही तो उसे सुखाने का कैसा इंतज़ाम है, वे अपनी साफ-सफाई का कितना ख्याल रख पा रही है।

पीरियड्स पर बात करना और इस दिशा में जागरूकता किस कदर ज़रूरी है इस बात का अंदाज़ा शायद इन बातों से लगाया जा सकता है। सरकार अगर इस दिशा में कुछ योजनाएं लाए तो बड़े स्तर पर महिलाओं को इंफेक्शन से बचाया जा सकता है।

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