महज़ 16 साल की उम्र में शादी और 19 साल में पति की मौत। ऐसी किसी भी महिला को समाज बेचारगी की नज़र से देखना शुरू कर देता है और हां, उसके चरित्र पर तो हमला जैसे आम बात हो जाती है।
बिहार के समठा गांव की 19 साल की विधवा बेबी झा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। पति की मौत के बाद बेबी झा ने जब आगे बढ़ने के लिए पहला कदम बढ़ाया तो लोगों ने कहा इसे बर्बाद कर देंगे। लेकिन, बेबी इन तानों और समाज के इन हमलों से रुकने वाली नहीं थी। पति को खोने का ग़म तो ज़रूर था, लेकिन उनके सामने अपने तीन बच्चों की परवरिश के साथ ही अपने जेठ के अनाथ तीन बच्चों की परवरिश की भी ज़िम्मेदारी थी। लेकिन, इन सबके साथ ही उन्हें अपना खुद का अस्तित्व भी बनाना था और इसके लिए उन्होंने किताबों की ओर रुख़ किया। उनके संकल्प का ही नतीजा है कि आज वो पूरे गांव में एक खास पहचान बना चुकी हैं।
बेबी झा के पति की मौत को अब 26 साल हो गए हैं। बेबी बताती हैं मेरे पति ने मेरी पढ़ाई के लिए हमेशा मुझे प्रेरित किया। शादी के बाद ही उन्होंने इंटर की पढ़ाई की। लेकिन, तभी उनका इंतकाल हो गया। उसके बाद घर की ज़िम्मेदारी, बच्चों का पालन पोषण और उनके भविष्य का सवाल मेरे सामने था। उस समय मुझे अहसास हुआ कि पहले खुद मजबूत होना होगा, तभी मैं भविष्य में अपने बच्चों को मजबूत कर सकती हूं। बेबी बताती हैं कि मैंने बीए में एडमिशन लिया। इसके एवज़ में मुझे कई ताने सुनने को मिले। मैंने इन तानों को नजरअंदाज़ कर दिया क्योंकि मुझे पता था कि ये समाज मेरे बच्चों का पेट नहीं पालेगा।
बेबी बताती हैं कि घर का खर्चा चलाने के लिए मैंने घर में ही सुधा डेयरी का एक सेंटर खोल लिया। मेरी यह छोटी सी दुकान भी लोगों की नज़र में खटकने लगी। गांव के कुछ लोगों ने कहा, ‘इसे सबक सिखाते हैं, इसे दो पैसे का भी रहने नहीं देंगे।’ ये सब सिर्फ इसलिए था क्योंकि मैं विधवा थी।
बेबी पीछे नहीं हटी। तमाम धमकियां मिलती रही, मगर उन्होंने अपनी दुकान बंद नहीं की। बेबी कहती हैं कि इंसान का स्वभाव अच्छा हो तो वो कुछ भी हासिल कर सकता है और मैंने अपने स्वभाव से ही लोगों का दिल जीता।
बेबी उन दिनों को याद करती हुई बताती हैं, ‘जब मैं एग्जाम देने कॉलेज जाती थी तो मेरे कैरेक्टर पर भी सवाल उठाया जाता था। विधवा देखकर लोग मेरा पीछा करते थे। लेकिन, ये कोई नई बात नहीं थी। समाज में हर विधवा के साथ ऐसा ही सलूक होता है। मैंने कभी इन बातों को तवज्जो नहीं दी।’
बेबी ने कई तरह का काम किया, बिजनेस से लेकर खेती बाड़ी तक। एक ग्रामीण इलाके में एक विधवा औरत समाज की सभी तथाकथित मान्यताओं को तोड़ रही थीं। बेबी आंगनबाड़ी में भी कई सालों से कार्यरत हैं। बेबी की पहचान एक महिला लीडर के रूप में भी है। वो आज महिलाओं को जागरूक करने का काम भी कर रही हैं। आज भी किताबें पढ़ना उनकी सबसे पसंदीदा हॉबी है। तसलीमा नसरीन की किताब उन्हें अपने करीब लगती है।
आज बेबी की मेहनत की बदौलत उनके तीनों बच्चों ने एक खास मुकाम हासिल किया है। बेबी कहती हैं, ‘कल तक जो लोग मुझे ज़लील करते थे, आज हमारी तरक्की देख तारिफों के पुल बांधते हैं।