जिस समाज को इस बात की परवाह नहीं है कि हर रोज़ हमारी बच्चियां मार दी जाती हैं, जला दी जाती हैं, बलात्कार और यौन हिंसा की शिकार होती हैं उस समाज को आज पॉर्न स्टार और फिल्मों से लेकर टीवी पर नज़र आनी वाली सनी लियोन की बच्ची को लेकर चिंता है। सनी लियोन ने जिस बच्ची को गोद लिया है वो 21 माह की है। महाराष्ट्र के लातूर ज़िले से ये बच्ची गोद ली गयी है।
हिंसक, बर्बर और असंवेदनशील समाज में सनी लियोन का यह चेहरा निहायत मानवीय है। अपने को सभ्य कहे जाने वाले समाज की तिलमिलाहट की वजह वह नैतिकता है जिसकी आड़ में वे एक औरत पर कीचड़ उछाल रहे हैं? यह समाज उस समय बेचैन नहीं दिखता है जब बाज़ार औरत का खरीदार होता है। यह समाज उस समय भी बेचैन नहीं दिखता जब औरत की योनी में सारे हथियार घुसेड़ दिये जाते हैं। सवाल है कि सारी नैतिकता का बोझ औरत के कंधे पर ही क्यों?
हमारे देश के किसी कानून में यह दर्ज नहीं है कि सेक्स वर्कर या पॉर्न स्टार महिलाएं बच्चा गोद नहीं ले सकतीं, या वो मां नहीं बन सकतीं। ये ज़रूर है मां बनना एक ज़िम्मेदारी है और ये ज़िम्मेदारी जो उठा सकतीं हैं उन्हें अपनी गोद भरने का पूरा हक है। सनी लियोन एक ज़िम्मेदार मां हैं। उनका मां होना सिर्फ इसलिए नहीं खारिज किया जा सकता क्योंकि उनकी छवि एक पॉर्न स्टार की है।
आज सेक्स एक बड़े बाज़ार के रूप में स्थापित है। करोड़ों के मुनाफे का यह बाजार इस सभ्य कहे जाने वाले समाज से ही चलता है। नाओमी वुल्फ का कहना है फैशन के आगे यौनिकता आती है। वे पश्चिमी मीडिया विज्ञापनों में औरत की बनायी गयी छवि का छोटा सा विवरण देती है। एक औरत का मुंह खुला हुआ है। वह अपनी जीभ से लिपस्टिक को चूमने जा रही है। दूसरा सीन एक औरत बालू पर चैपाये की तरह उकडूं है उसके नितंब (हिप्स) हवा में हैं। उसके सिर पर तौलिया है। आंखें बंद है मुंह खुला हुआ है, यह एक औसत अमेरिकी पत्रिका का हवाला है। हम जानते हैं बाज़ार ऐसे दृश्यों से पटा हुआ है।
70 के दशक के पहले पॉर्नोग्राफी या नग्नता की कला मर्दों का इलाका था। 70 के बाद ब्यूटी पॉर्नोग्राफी अपने चरम पर पहुंच गयी। औरत ज़्यादा आज़ाद हुई तो पॉर्नोग्राफी भी आज़ाद हुई । जो बाज़ार स्त्री के देह को बेचता है उससे समाज नफरत नहीं करता पर जो महिलाएं अपनी देह बेचने को मजबूर हैं उससे समाज नफरत करता है। दिलचस्प ये है कि पॉर्नो में अश्लीलता के मानक लागू नहीं होते। 100 करोड़ अरब डॉलर का यह उद्योग है, 8 अरब का पोर्नो उद्योग है। फिर किस समाज और सरकार की हिम्मत है इस उद्योग के खिलाफ जाने की।
सच तो यह है की बाज़ार ने औरत की आज़ादी को उसकी देह में बदल दिया है। पॉर्नो बलात्कार की तरह पुरुषों की खोज है। स्त्री को यौन वस्तु में बदलने के लिए। स्त्री के शरीर का व्यापार करने वाला हर तंत्र स्त्री विरोधी है। इस तंत्र के विरुद्ध कोई औरत जब अपनी बात कहती है तो समाज को लगता है कि देह बेचने वाली औरत के पास एक सुन्दर दिमाग और दिल कैसे हैं? मैं सनी लियोन की हिम्मत की दाद देती हूं जिसने समाज से लोहा लिया और अपने वजूद के लिए लड़ रही हैं। ऐसी तमाम मां के लिए हमें शुक्रगुजार होना चाहिये जिनका दिल इतना बड़ा है , जिन्होंने एक ज़िन्दगी गोद ली है।