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सबर जनजाति के लोग मर रहे हैं, सुध लेने वाला कोई नहीं

साहब, सबर जनजाति की स्थिति खराब है। ज़रा ध्यान दीजिए। दिनांक  29/07/2017 को PUCL की टीम खड़ीयाबस्ती, लुपुनडीह, प्रखंड निमडीह, ज़िला सरायकेला खरसवां, झारखंड पहुंची और वहां बसे 31 सबर आदिम जनजाति के परिवारों की स्थिति की जांच की। जांच के दौरान यह जानकारी मिली कि सबर आदिम जनजाति के उक्त परिवारों को राज्य सरकार की पहल पर सन 2000 में बसाया गया था।

चिंताजनक हालत में घर

सरकार की तरफ से इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत सभी 31परिवारों को जंगल से लाकर दलमा पहाड़ के नीचे खाड़ीयाबस्ती में बसाया गया। जन विकास केन्द्र द्वारा सरकार से प्रति आवास मिले 20000 रूपये में अपनी ओर से 11000 रूपये और मिला कर उनके लिए 31000 में घर बना दिया गया। शौचालयों की भी व्यवस्था की गई। शुरुआती दिनों में ये सबर कृषि कार्य में भी लगे थे। लेकिन रोज़गार के अभाव में अब ये सबर अपनी जिंदगी ठीक से शुरू ही नहीं कर सकें।

बदहाल स्थिति में सबर जनजाति के लोग

इन सालों में 11 परिवारों ने उक्त जगह को छोड़ दिया बाकी 20 परिवारों की ज़िंदगी दयनीय है। उनके सारे घर ढह गये हैं। शौचालय इस्तेमाल करने लायक नहीं हैं। एक विद्यालय है। पांचवी तक पढ़ाई होती है। दो पारा शिक्षक हैं। एक आंगनबाड़ी केन्द्र है। बारिश के इन दिनो वही उनका सहारा है। सरकार के पास इस लुप्त प्रजाति को बचाने के लिए कोई योजना नहीं है।

खराब सरकारी सुविधाएं

पिछले 17 सालों में कोई अनुदान नहीं आया है, खेती समाप्त हो गई है, पूरा इलाका जंगल होकर सांपों का डेरा हो गया है। कुपोषण की शिकार यह जनजाति सरकारी उपेक्षा का दंश झेलते हुए विलुप्त होने के लिए अभिशप्त है। 2008 से 2017 तक सरकार को सौंपे गये दर्जनों स्मरणपत्रों के बावजूद सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी।

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