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आदिवासी लड़कियों के साथ यौन हिंसा पर देश को गुस्सा क्यों नहीं आता?

एक बड़े शहर में एक लड़की डीजे है। वो आधी रात को घर लौट रही होती है, तभी कुछ लड़के उसका पीछा करते हैं। लड़की किसी तरह पुलिस के पास पहुंचती है और उन गुंडों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाती है। लड़की एक IAS अधिकारी की बेटी है और छेड़खानी करने वालों में से एक गुंडा हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष का बेटा। अब शुरू होती है पावर, डर और संघर्ष की कहानी। शुरुआती एफआईआर में केस को कमज़ोर किया जाता है, छेड़खानी करने वाले मवालियों को ज़मानत पर छोड़ भी दिया जाता है। देशभर में घटना के खिलाफ गुस्सा दिखता है, आम मध्यमवर्ग सोचने को मजबूर है कि जब देश में इतने बड़े अधिकारी की बेटी को सही से न्याय नहीं मिल रहा है तो फिर आम लोगों का क्या?

दूसरी तरफ उम्मीद के मुताबिक ही एक तबका सक्रिय होता है, जो खुद के राष्ट्रभक्त होने का दावा करता है। इस तबके के लोग कहते हैं लड़की आधी रात को बाहर क्यों थी? उसे नाईट शिफ्ट करने की क्या ज़रूरत थी?

सोशल मीडिया पर सक्रिय ट्रोल टुच्ची अफवाह फैला रहे हैं कि लड़की शराब पीकर घूम रही थी। लड़की जेएनयू से थी, उस लड़की की उसके दोस्तों के साथ की तस्वीरों को पोस्ट कर उसके चरित्र पर हमले किये जा रहे हैं। क्या इस देश का संविधान लड़के और लड़की को एक अधिकार नहीं देता? क्या लड़की का आधी रात को घूमना कानूनन अपराध है? ऐसे में महात्मा गांधी याद आते हैं जिन्होंने कहा था कि जब इस देश में आधी रात को भी महिलाएं आज़ाद और बेफिक्र घूमेंगी तब मैं मानूंगा कि अपना देश आज़ाद हुआ है।

लड़की को न्याय देने की बजाय बेटी बचाओ अभियान वाली पार्टी आरोपी को ही बचाने में लगी हुई है। लेकिन मीडिया और समाज का एक बड़ा तबका उनके खिलाफ खड़ा है और ये देखना राहत की बात है।

अब चलते हैं छत्तीसगढ़, वहां माओवाद प्रभावित ज़िला है दंतेवाड़ा। इसी ज़िले के मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर है पालनार। यहां केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के जवानों पर लड़कियों के एक स्कूल के हॉस्टल में घुसकर बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगा है। हॉस्टल वॉर्डन ने पुलिस में इस बात की लिखित शिकायत दर्ज करवाई है। दरअसल 31 जुलाई को कुछ सरकारी अधिकारी, CRPF जवान एक टीवी चैनल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उस स्कूल में पहुंचे थे। रक्षाबंधन के लिये आयोजित उस कार्यक्रम में जवानों को स्कूली लड़कियों ने राखी बांधी। इस बीच कुछ लड़कियां बाथरूम गयीं, जहां तलाशी के नाम पर CRPF के जवानों ने उनके साथ छेड़खानी की।

सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के मुताबिक, “CRPF के सिपाहियों ने लड़कियों को धमकाते हुए कहा कि हम तुम्हारी तलाशी लेने आये हैं, तलाशी के नाम पर CRPF के सिपाहियों ने तीन लड़कियों के स्तन बुरी तरह मसले। इनमे से एक लड़की शौचालय के भीतर ही थी तो तीन सिपाही भी शौचालय में घुस गए। पन्द्रह मिनट तक तीनों सिपाही उस आदिवासी लड़की के साथ शौचालय के भीतर रहे। बाहर खड़ी लड़कियों को दूसरे सिपाही डराकर, चुप करवाकर पकड़े रहे। इसके बाद लडकियां अपने कमरे में चली गईं और CRPF वाले अपने दल में शामिल हो गए। कार्यक्रम पूरा होने के बाद सभी सिपाही और अधिकारी स्कूल से बाहर चले गए। लड़कियों ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में रात को अपनी वॉर्डन द्रौपदी सिन्हा को बताया, वॉर्डन ने यह खबर एसपी और कलेक्टर तक पहुंचा दी। अगले दिन कलेक्टर और एसपी पालनार पहुंचे, लेकिन वो लड़कियों से मिलने स्कूल में नहीं आए, बल्कि दोनों अधिकारियों ने  CRPF कैम्प में पीड़ित लड़कियों को बुलवाया। हॉस्टल की वॉर्डन दो लड़कियों को लेकर CRPF के कैम्प में गईं। वहां कलेक्टर और एसपी ने दोनों पीड़ित लड़कियों को बुरी तरह धमकाया और किसी को इस घटना के बारे में बताने से मना कर दिया, लेकिन पूरे पालनार गांव में यह खबर फ़ैल गई।”

फिलहाल स्कूल में लड़कियों से समाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को नहीं मिलने दिया जा रहा है, पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है। कोई आश्चर्य की बात नहीं अगर सरकार और प्रशासन इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश करे। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने अज्ञात वर्दीधारी लोगों पर केस दर्ज किया है। जबकि घटना के दिन स्कूल में बड़े सरकारी अधिकारी और 100 के करीब CRPF के जवान मौजूद थे। यह पहला मामला नहीं है जब जवानों पर बस्तर इलाके में छेड़खानी और महिलाओं के खिलाफ हिंसा की शिकायत आई है। सरकार हमेशा अपनी छवि बचाने के लिये ऐसे मामलों को दबाने की कोशिश करती रही है। खुद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि बीजापुर में 2015 में 16 आदिवासी महिलाओं के साथ सुरक्षा जवानों ने बलात्कार और हिंसा की थी।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहां सरकार से नहीं देश के इंसाफपसंद लोगों से है, मीडिया से है। सरकार छत्तीसगढ़ में भी चुप है और चंडीगढ़ में वो मामले को दबाने की कोशिश कर रही है। बस फर्क यह है कि चंडीगढ़ के मामले में आम नागरिक और मीडिया मुखर होकर बोल रहे हैं। लेकिन बस्तर में बच्चियों के साथ हुए छेड़खानी के मामले में पूरे देश में शांति है, मीडिया में चुप्पी छाई है। आखिर ये चुनी हुई चुप्पी कब तक?

आखिर कब तब हम सुविधानुसार महिलाओं पर हो रही हिंसा पर बोलेंगे और चुप रह जाएंगे? क्या सिर्फ इसलिए कि पालनार की बच्चियां आदिवासी समुदाय से हैं, जिनकी आवाज़ कथित मुख्यधारा से लगभग गायब कर दी गई है? क्या हम सिर्फ कथित मुख्यधारा के लोगों के लिए ही दुखी होंगे और उन्हें ही न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ेंगे? निर्भया के लिये पूरा देश बोलता है तो फिर बस्तर और कश्मीर में हो रहे बलात्कारों पर चुप्पी क्यों साध लेता है?

सोचिये, इस सेलेक्टिव विरोध से बचिये। महिलाओं पर हो रहे किसी भी तरह की हिंसा का विरोध कीजिए, बिना ये तय किये कि वे शहर की हैं, या गांव की। वो दिल्ली की हैं या बस्तर की। तभी इस पागलपन को रोक पायेंगे, वैसे भी बहुत देर हो चुकी है…

फोटो प्रतीकात्मक है

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