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“मेरे अंदरूनी कपड़े से समाज की सभ्यता और संस्कृति को कोई खतरा नहीं”

जाने कितने ही लोगों ने की बातें वो बातें जो ज़रूरी है, महत्वपूर्ण है और साथ ही साथ सतही भी है। जाने कितने ही लोगों ने लिखा बेबाक होकर बिलकुल खुलकर पर हुआ कुछ भी नहीं समाज वहीं है उसकी सोच वहीं है। जहां कितने ही सालों से वो सड़-गल कर बदबू दे रही है और उस बदबू से सभी का पाला पड़ता है, मेरा-तुम्हारा हम सबका।

दो दिन पहले की बात है शाम कुछ आठ बजे की। मैं बस से घर जा रही थी। बस से उतरने के बाद मैं अपनी धुन में घर की तरफ बढ़ रही थी, शाम थोड़ी ज़्यादा हो गयी थी तो मैं जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाह रही थी। एक लड़का जो शायद बस से मेरे ही साथ उतरा था वो भी मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। कभी मेरे आगे चलता तो कभी मेरे पीछे। कभी आगे चलकर रुक जाता तो कभी बगल में आकर मुझे देखता। मुझे कुछ अजीब लग रहा था उसे देखकर, थोड़ा सा डर भी लगा। खैर इस सब को देखकर मैं उसे अनदेखा कर रही थी और हम सब ज़्यादातर ऐसा ही कुछ करते हैं। अक्सर लड़कियों का पीछा करना, उनपर छिंटाकशी करना इतना आम और स्वीकार है समाज में कि हमें बचपन से ही इन चीज़ों को नज़रअंदाज करना सीखाया जाता रहा है।

थोड़ी देर बाद वही लड़का पास आकर मुझे रोकता है और कुछ इशारे से कहता है। पहले थोड़ा सा समझ नहीं पाई। फिर मैंने पूछा कि क्या कोई बात है ?

तो वो चुप रहकर बस इशारा ही करता रहा। मैं रुक गई और इस बार मैं उसका इशारा समझने की कोशिश करने लगी और समझी भी। दरअसल वो मुझे मेरे बांए कंधे से मेरी ब्रा का स्ट्रैप दिखा रहा था जो मेरे कुर्ते से बाहर दिख रहा था। और ये बात बताते समय उसके चेहरे पर अजीब सी हंसी थी। ऐसा लग रहा था  जैसे वो कोई जंग जीता हो या उसने मेरी लुटती हुई इज़्जत बचाई हो या फिर उसने कोई बहुत ही सराहना वाला काम किया हो।

मैं असहज हो गयी। मुझे मंज़ूर नहीं उसकी ये मुस्कान जो उसने उस वक्त मुझे देखकर दी। मैंने अपनी ब्रा को ठीक नहीं किया जैसे थी वैसे ही रहने दिया और पूछा क्या तुम्हें कोई परेशानी है मेरी ब्रा से? या कोई दिक्कत? अब वो गुस्से में मुझे देखने लगा और धीरे से निकल गया। मैंने उसको पलटकर सवाल किया जिससे मैं थोड़ी ठीक महसूस करने लगी।

ये कोई पहली घटना नहीं है। हमारे घरों में, हमारे दोस्तों के बीच हर जगह देखती हूं कि ब्रा के स्ट्रैप निकले हैं, क्लिवेज दिख रहे हैं, आंचल ठीक कर लो जैसे कमेंट हम सभी लड़कियों को सुनाया ही जाता रहा है।

क्या ज़रूरी है कि आपको अपने ही कपड़ों के लिए बताया जाए और वो भी वो कपड़े जो साधारण हैं। कपड़ों की ही तरह मैं ठुकराती हूं ऐसे लोगों को जो साधारण को साधारण नहीं रहने देते। तुम मुझे रोककर मुझे बता रहे हो मुझे मेरी ब्रा के बारे में तुम कोई हक नहीं रखते।

तुमसे सवाल है- अगर तुम इतने ही समझदार और शरीफ हो तो बोलो मेरे कंधों के पास क्यों ही नज़रें थी तुम्हारी? लड़कियों के ये साधारण कपड़े धूप में खुले सूखाये नहीं जाते, एक अजीब सा छिपाव दिखता है। दुकानों में आप साधारण तरीके से ये कपड़े खरीद नहीं पाते।

अपने कॉलेज के दिनों में हमने एक नाटक किया था अनसिविलाइज्ड डॉटर्स। उसमें हमने बताने कि कोशिश की थी कि लड़कियों के अंदरुनी कपड़ों को लेकर सहज होने की ज़रूरत है। इन कपड़ों से समाज की सभ्यता और संस्कृति को कोई खतरा नहीं है।

उन सभी मर्दों के लिये, उस समाज के लिये जो इन कपड़े के टुकड़ों से असहज हो जाते हैं, उनकी संस्कृति की सांस फूलने लग जाती है के लिये कुछ लिखा है-

मेरे अंदरूनी कपड़ों,

हां तुम्हें उतार कर फेंका जाएगा बिना झिझक के एक दिन और सजाया जाएगा घर की दिवारों पर या उन बालकनियों पर जहां केवल सजाए जाते हैं कुछ पुराने खाली पिंजरे, जहां सजाए जाते हैं कुछ बेजान प्लास्टिक के पेड़ और कुछ फूल, तुम्हें बरसों से छुपाया जा रहा कभी अपनी गीली सलवार के नीचे तो कभी अपनी कमीज़ के नीचे, तुम रहे हो हर घर में हर उस अलमारी  के कोने मे जहां अंधेरा ज़्यादा था तुम्हें छुपाया गया है हर उस इंसान से जो तुम्हारे बारे में जानने को इच्छुक था, क्या हमेशा से केवल तुम्हें छुपाया ही जाएगा? मैं चाहती हूं तुम भी औरों की तरह यहां वहां पड़े रहो बिना हिचक के और रहो औरों की तरह साधारण जिसे देख रहस्य सा महसूस ना हो।

तुम्हें भी ज़रूरत है धूप की तुम्हें ज़रूरत है साधारण होने की, केवल साधारण

मेरे रहस्यमय कपड़े मेरे अंदरूनी कपड़े !

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